A village: Where people do not know Narendra Modi and Rahul Gandhi

एक गांव, जहां के लोग नहीं जानते PM मोदी और राहुल गांधी को

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दुनिया में भारत शायद इकलौता ऐसा देश है जहां हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। पिछले कुछ समय की बात छोड़ दें तो लोकसभा चुनाव भी मध्‍यावधि हो जाया करते थे। अगर ये कहें कि भारत में चुनाव की प्रक्रिया सरकारों के गठन से कहीं अधिक एक उत्‍सव जैसा माहौल बनाकर रखती है, तो कुछ गलत नहीं होगा। इस सबके बावजूद मध्य प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां आज भी राजनीति की घुसपैठ नहीं हो पाई है। इस इलाके में जहां पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आकर चुनाव प्रचार कर चुके हैं लेकिन इस गांव तक उनकी पहुंच नहीं हो सकी। गांव के लोग जानते ही नहीं, राहुल और मोदी कौन हैं?
यह है रतलाम लोकसभा संसदीय वन क्षेत्र कट्टीवाडा में आने वाला दबचा गांव। इस गांव को झबुआ नाम से भी जाना जाता है। यहां गांव बहुत उपेक्षित है। स्थानीय लोग गरीबी से जूझ रहे, दुबले-पतले आदिवासी पुरुष अंगौछा लपेटे नजर आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में पूछने पर कहते हैं, शायद नाम सुना है।
गांव में शासन की नहीं है पहुंच
जंगल के बीच बसे इस गरीब अनुसूचित जनजाति के परिवारों की नब्ज टटोलने के लिए एक टीम जब खराब रास्तों से होते हुए यहां पहुंची तो स्पष्ट हो गया कि आखिर क्यों सोशल मीडिया और पारंपरिक तरीकों जैसे सार्वजनिक रैलियों और नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से किया गया चुनाव प्रचार यहां तक नहीं पहुंचता। बंजर पथरीले परिवेश में रहने वाले ये लोग यहां प्रकृति की गोद में रहते हैं। यहां पर राज्य का हस्तक्षेप न के बराबर नजर आता है।
कहते हैं सुना है नाम पर जानते नहीं
गांव में प्रवेश करते ही यहां लगभग 80 घर नजर आते हैं। इन घरों में 300-400 लोग रहते हैं। वहां रहने वाले लोगों में बेहतर नजर आए एक व्यक्ति हीरा भीमला ने मोदी और राहुल गांधी के पूछे जाने पर कहा, ‘मैंने उनके नाम सुने हैं लेकिन नहीं जानता हूं कि वे कौन हैं।’ अगले दरवाजे पर खड़े छह बच्चों के पिता भोदरिया विस्टा ने भी कुछ इसी तरह जवाब दिया। वे भी नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से अनजान थे।
‘मैंने नहीं डाला पर पुल्दा में पड़ गया था मेरा वोट’
भिलाला आदिवासी समुदाय से आने वाले भीमला ने भी कुछ ऐसा ही जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘मैं पिछले चुनावों (2014) के समय अपने घर से दूर था और जब मैं वापस लौटा, तो मुझे बताया गया कि मेरा वोट पुल्दा (फूल) के लिए डाल दिया गया है। वह बोले, ‘छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में मैंने हाथेला (हाथ) के लिए वोट दिया था लेकिन यह भी मुझे पता नहीं था। मुझे किसी ने ऐसा करने को कहा था, इसलिए कर दिया।’ वह हाथ और फूल के बारे में इससे ज्यादा कुछ नहीं जानते।
इनकी नजर में सरपंच ही सबकुछ
अर्जुन निगड़ा ने कहा कि किसी भी पार्टी के पक्ष में वोट देना न देना उन लोगों की परंपरा नहीं है। उन्होंने कहा कि गांव का सरपंच ही उनकी मांगों और इच्छाओं को पूरा करते हैं।
-एजेंसियां

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