मोदी मैजिक, योगी के हिन्दुत्व और मायावती की कुर्बानी से यूपी में बंधा भाजपा के सिर पर सेहरा
2007 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली पार्टी बसपा मात्र एक सीट पर सिमट के रह गयी
हरीश सिंह
‘यूपी के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के सिर पर जहां मोदी का जादू सिर चढ़ कर बोला, वहीं योगी का हार्ड हिन्दुत्व और लााभर्थियों को मिले योजनाओं का लाभ भी काम आया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह भी है कि भाजपा को जिताने के लिये मायावती ने अपनी कुर्बानी दे दी। जबकि इसके उलट अखिलेश अपने साये से हिन्दुत्वविरोधी छवि को नहीं हटा पाये और न ही अपने बड़बोलेपन पर लगाम लगा सके। जो सपा की हार के एक कारणों में शामिल है।”
उत्तरप्रदेश में चुनाव की घोषणा से पहले शुरू हुआ टोटी चोर, चिलमजीवी, हिजाब, जिन्ना, पाकिस्तान, मंदिर, मस्जिद, बुलडोजर जैसे शब्दों पर अब विराम लग चुका है। पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा अब यूपी में सरकार बनाने जा रही है और समाजवादी पार्टी विपक्ष में बैठकर हार का चिंतन करने में जुट गयी है। भाजपा की जीत के पीछे मोदी के जादू के साथ योगी का हार्ड हिन्दुत्व भी खूब कारगर रहा। वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना सहित गरीबों को बांटे गये राशन के साथ बिना भेदभाव के सभी वर्गों व धर्मो के लोगों को मिले लाभ ने भी भाजपा का जादू बरकरार रखा। चुनाव में योगी ने जहां जोरदार वापसी की वहीं नोएडा जैसे मिथक को भी तोड़ दिया। लेकिन भाजपा की जीत में बसपा प्रमुख मायावती की कुर्बानी को नकारा नहीं जा सकता। पूरे चुनाव में मायावती ने सिर्फ सपा को निशाने पर रखा और 2007 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली पार्टी मात्र एक सीट पर सिमट के रह गयी, किन्तु भाजपा को मंजिल तक पहुंचा दिया। चुनाव में बसपा का बेस वोट बैंक भाजपा काफी हद तक अपने पाले में लेने में कामयाब रही जिसका उसे त्वरित लाभ मिला। यदि भाजपा दलितों को अपना बेस वोटबैंक बनाने में कामयाब रही तो 2024 में भी उसे काफी लाभ मिल सकता है।
गौर करने वाली बात है कि बसपा ने यूपी चुनाव में 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़ा किये जो सपा के उम्मीदवार की जाति के रहे। जिसमें 91 मुस्लिम बहुल और 15 यादव बहुल सीटें शामिल हैं। इन सीटों पर सपा के जीत की काफी संभावना थी किन्तु बसपा ने वोट का बंटवारा कर दिया। जिसके कारण इन 122 सीटों में 68 सीटें भाजपा गठबंधन ने जीत ली। अखिलेश के सामने एक और बड़ी चुनौती रही कि वे मंदिरों का चक्कर लगाने के बाद भी मुस्लिम सरपरस्त पार्टी की छवि से बाहर नहीं निकल सके, या फिर यह भी कह सकते हैं कि भाजपा ने उन्हें इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने ही नहीं दिया। सपा मुखिया अखिलेश यादव सहित सपा के कई नेताओं खासकर बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने जिस तरह से अफसरों को धमकाया। उससे अफसर कितना डरे यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु काफी संख्या में हिन्दू वोटर सपा से छिटक गये। साथ ही भाजपा उम्मीदवारों पर कई जगह विशेषकर पश्चिम में सपा-रालोद समर्थकों ने जिस तरह हमले किये उससे भाजपा नेताओं द्वारा सपा को गुण्डापार्टी के आरोपों को बल दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि अखिलेश—जयंत की जोड़ी जाट वोटों को अपने पाले में पूरी तरह नहीं ला पायी। 30 सीेटों पर लड़ने वाली रालोद महज 8 सीटों पर सिमट गयी। पश्चिम में सपा की भूल यह भी रही कि उसने गैर जाटव दलित वोटों पर ध्यान ही नहीं दिया। जाति आधारित पार्टियों का गठबंधन सपा को नुकसान ही पहुंचाया।
इसके इतर देखा जाय तो मोदी-योगी की जोड़ी सपा पर लगातार हमलावर रही। उन्होने हर बात को हिन्दुत्व से जोड़े रखा। जो शुरूआत अमित शाह ने केरोना से की थी, वह आखिरी चरण तक कायम रहा। आखिरी चरण में मोदी का तीन दिन तक काशी प्रवास यह संदेश दिया कि भाजपा ही हिन्दुओं की असली शुभचिंतक हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि भाजपा ने पिछली बार 39 प्रतिशत के मुकाबल इस बार 2 प्रतिशत अधिक यानि 41 प्रतिशत वोट हासिल किया। फिर भी सीटों की संख्या कम ही रही। इस बार के चुनाव में बसपा ने 12.8 प्रतिशत प्राप्त किया जो पिछली बार से 10 प्रतिशत कम रहा। 2017 में बसपा का वोट शेयर 22.9 प्रतिशत था। सपा का वोट भी 10 प्रतिशत बढ़ा, सीटें भी बढ़ी किन्तु बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पायी। माना जा रहा है कि सपा ने भाजपा के सवर्ण वोटों में सेधमारी की, किन्तु उसकी भरपाई भाजपा ने बसपा के कोर वोटबैंक से कर लिया।
भाजपा की जीत में अयोध्या का राममंदिर और काशी विश्वनाथ कारिडोर ने भी अहम भूमिका निभायी। यह दोनों धार्मिक स्थल भाजपा के हिन्दुत्ववादी चेहरे को मजबूत करने में कामयाब रहे। अयोध्या राममंदिर और काशी विश्वनाथ कारिडोर के क्षेत्र की सीट पर सपा से भाजपा का काफी करीबी मुकाबला रहा। यदि मोदी का रोड काशी में नहीं होता तो शायद ही यह सीट भाजपा के पाले में जाती। इन्हीं दो मंदिरों ने पूरे प्रदेश में भाजपा के हिन्दुत्व का माहौल बनाया। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी मोदी का जादू वोटरों पर चला। भाजपा ने मोदी का इस्तेमाल वहां अधिक किया जहां योगी से कुछ लोगों में नाराजगी झलक रही थी। जिस जगह भाजपा को कमजोर माना जा रहा था। वहां मोदी ने 19 जनसभायें करके लगभग 192 सीटों पर प्रभाव डाला जिसमें 134 सीटें भाजपा ने जीत ली।
यूपी चुनाव में बाबा का बुलडोजर भी प्रतीक बन गया। योगी ने लगभग हर रैलियो में बुलडोजर की चर्चा की। बुलडोजर चलाने की बात तो अखिलेश यादव ने भी किया, लेकिन वे यह नहीं बता पाये कि उनका बुलडोजर किसपर चलेगा। क्योंकि बाबा के बुलडोजर का प्रयोग अपराधियों और माफियाओं पर किया गया था। योगी ने बुलडोजर को माफिया के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई का सिंबल बना दिया। उसे लोगों ने कानून व्यवस्था के सुधार के रूप में देखा किन्तु अखिलेश ने जब बुलडोजर का जिक्र किया तो उसे लोगों ने माफियाओं के संरक्षण और बदले के रूप में ले लिया। जिसका असर भी चुनाव परिणाम पर देखा गया।
समाजवादी पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान अवारा पशुओं और बेरोजगारी का मुद्दा भी उठाया, लेकिन उनके बेरोजगारी दूर करने वाले वादे पर लोग भरोसा नहीं कर सके। 300 यूनिट बिजली का वादा करना भी लोगों के दिमाग में नहीं उतर पाया। क्योंकि उसके जवाब में भाजपा याद दिलाती रही कि जो चार घंटे ही बिजली देते थे, वे अब कैसे देंगे। न बिजली होगी और न ही बिल आयेंगे। वहीं फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले अवारा पशुओं की समस्या को अखिलेश उठाते रहे किन्तु उससे निदान कैसे दे पायेंगे। यह नहीं बता पाये। जिससे लोगों को यहीं लगा कि एक बार फिर गौधन के हत्या की छूट मिल जायेगी। धर्म से जुड़े गौधन के मुद्दे अपना असर इसलिये नहीं डाल पाये कि लोगों को फसल का नुकसान होना कबूल था किन्तु उनकी हत्या किया जाना नही। आवारा पशु पश्चिम में बड़ा मुद्दा था। जिसका डर भाजपा को और उम्मीद सपा को थी किन्तु यहां पर भी भाजपा ने 60 प्रतिशत सीटें जीत ली। पश्चिम यूपी में हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में अमित शाह की चाणक्य नीति ने अहम रोल निभाया। किसानों के मुद्दे यहां जोरों पर थे किन्तु चाणक्य नीति से हिन्दू वोटों का इस तरह ध्रुवीकरण हुआ कि सपा जिस केन्द्रीय मंत्री अजय टेनी के बेटे द्वारा किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का मामला उठाया, वहां भी भाजपा ने 8 में सभी सीटों पर जीत दर्ज की।
हालांकि चुनाव में अखिलेश समर्थकों का जोश जूनून बनकर दिखायी दिया। सपा की रैलियों में उनके समर्थकों का उत्साह चरम पर देखा गया। इसी भीड़ को देखकर अखिलेश अपनी जीत के प्रति आश्वस्त भी दिख रहे थे। जिसका असर यह हुआ कि सपा 77 सीटों की बढ़त करके 125 सीटें हासिल कर ली। किन्तु यह भी गौर करना होगा कि रैलियों की भीड़ से समर्थकों के उत्साह का पता चलता है। न कि सरकार का।
चुनाव में सामान्यत: 5 प्रतिशत वोट सरकार बदल देता है। पिछली बार भाजपा का वोट 39 प्रतिशत था। इस बार 41 प्रतिशत हो गया। जिससे साफ पता चलता है कि एक नया और बड़ा वर्ग भाजपा के समर्थन में आता दिखा है। वहीं बसपा का वोट प्रतिशत देखें तो साफ पता चलता है कि यह वोट बसपा से भाजपा में शिफ्ट हुआ है। जिसे भाजपा लोकसभा चुनाव तक संभाल कर रखना चाहेगी। इस जीत के बाद माना जा सकता है कि भाजपा फिर किसान कानून पर विचार कर सकती है। साथ ही समान नागरिक संहिता ओर जनसंख्या बिल जैसे फैसलों में तेजी और मथुरा में मंदिर समेत हिंदुत्व को बढ़ाने जैसी गतिविधियों पर जोर होगा। इस चुनाव से योगी का कद बढ़ा है। यूपी की भारी जीत से योगी का चेहरा केन्द्रीय नेताओं के रूप में देखा जाने लगा है। भाजपा ने पूरा चुनाव हिंदुत्व और माफिया के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर लड़ा। ऐसे में आने वाले समय में हिंदुत्व की गतिविधि तेज होगी। कानून व्यवस्था में माफिया पर कार्रवाई में तेजी आएगी।
हमेशा चुनाव के मूड में रहने वाली भाजपा के पंख जीत के बाद कुलांचे भरने लगे हैं। मायावती चाहे जिस कारणवश भाजपा के प्रति हमलावर न हो किन्तु इसका असर उनके मतदाताओं पर पड़ने लगा है। सरकार द्वारा दी जाने वाली लाभार्थी योजनाओं का लाभ पाकर दलित अब भाजपा को अपना खयाल रखने वाली पार्टी के रूप में देखना शुरू कर दिये हैं। जो आगे भी भाजपा संभाल कर रखना चाहेगी। जबकि सपा को नुकसान और भाजपा को लाभ पहुंचाने वाली मायावती की यह कुर्बानी आगामी चुनाव में क्या गुल खिलायेगी। यह भी देखना दिलचस्प होगा।