जनता अधिकारियों को सर, साहब, महोदय, जनाब से सम्बोधित करते हैं, मगर क्या वह जनता को आदरसूचक सम्बोधन देते हैं?
सरकारी अधिकारी स्वयं को बादशाह और जनता को गुलाम समझते हैं
–अजय नायर-
आजकल सरकारी अधिकारी ना जाने क्या खुद को समझने लगते है। जनता से बात ऐसे करते है। जैसे जनता कोई कीड़ा मकोड़ा हो। जब कोई व्यक्ति की सरकारी दफ्तर में किसी काम के सिलसिले जाता है। अपनी बात अधिकारी से कहना चाहता है। तो अधिकारी उसे ऐसे नजर अंदाज करता है। जैसे कोई उनसे भीख मांगने आया हो। अपनो से बड़े बुजुर्गो से कैसे बात करना चाहिए। उन्हे पता ही नही होता। दूसरी बात अधिकारी के टेबल के सामने दो कुर्सी होती है पता नही किसलिए होती है। मुझे लगता है जनता के लिए जो भी अपना निवेदन लेकर दफ्तर में आए यहां बैठ कर बात कर सके, चर्चा कर सके। लेकिन वास्तव में ऐसा नही होता। अफसर के सामने खड़े ही होकर बात करना पड़ता है। ना कभी कोई अफसर आपको बैठने को कहेगा। सिर्फ उन लोगो को बैठने का पूरा अधिकार मिलता है । जो बड़ी बड़ी गाड़ियों से सूट बूट पहनकर आते है। कहने का मतलब एक गरीब इंसान को नजरंदाज किया जाता है । क्योंकि अफसर के सामने गरीब व्यक्ति बैठ जाए तो अफसर की इज्जत चली जाएंगी। हमे ऐसा लगता है.
आप सभी ने एक बात गौर किया होगा की हम अक्सर इन अधिकारियों को सर, महोदय, जनाब, आदरणीय, इन शब्दो से पुकारते है कभी उनका नाम नही लेते उन्हे सम्मान से ही बुलाते है।लेकिन कभी आपने देखा है।ये महाशय आपको सर, श्रीमान, या कोई आदर सूचक सब्दो से आपको बुलाएगा कभी नही। यहां तक उनके दफ्तर में काम करने वाले बुजुर्ग कर्मचारी को उनके नाम से ही बुलाता है। जब ये अधिकारी बड़े बुजुर्गो को मान सम्मान नही दे पाते तो। फिर हमे इन्हे सम्मान देना चाहिए या नहीं ये हम पर निर्भर करता है.
हमारे हिसाब से ऐसा कोई कानून नहीं बना जहां अधिकारी को सर बोलना ही चाहिए ऐसा लिखा हो।
अगर सर ना भी बोले तो कोई क्या कर सकता है। लेकिन हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता हमे सिखाती है की बड़े बुजुर्गो को आदर सम्मान करना चाहिए। तो फिर ये अधिकारी जनता से आदर से पेश क्यों नही आती। इनके जबान में मिठास के बजाय कड़वाहट क्यों होती है। अकड़ कर क्यों बात करते है। जो बात हमे समझ नही आ रही उसका समाधान सही ढंग से क्यों नही दिया जाता।
हर सरकारी कर्मचारी जनता की सेवा के लिए है और उसे जन सेवा के लिए सदा खड़ा होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति कुछ जानकारी हासिल करना चाहता है तो उस विभाग के अधिकारी का पूर्ण कर्तव्य है की उस व्यक्ति को पूर्ण जानकारी प्रदान करे। ना की ये कहे बाहर बोर्ड पर लिखा है। जाकर पड ले। अगर कोई अनपढ़ हो तो तो क्या करेगा। कैसे पड़ेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं। गरीब को अक्सर ठोकर खाना ही होता है।
हम ये नही कहते की सभी उच्च स्तरीय अधिकारी एक समान होते है। कुछ तो वाकई देवतुल्य होते है चाहे छोटा हो या बड़ा सभी से एक जैसे बात करतें है समान सम्मान देते है। कभी अपने पद का उन्हे घमंड नहीं होता। लेकिन कुछ अधिकारी खुद को प्रधान मंत्री समझ लेते है। जनता से ऐसे व्यवहार करते जैसे हम इनके गुलाम हो। जनता के सवालों का जवाब देना, उनकी सहायता करना आपका कर्तव्य है। उससे आप मुकर नही सकते।
जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से ही इन सभी सरकारी अधिकारी की तनख्वा निकलती है। इनका घर चलता है। तो फिर जनता के साथ ही ऐसा बुरा बरताव क्यों ? जनता के साथ तमीज से बरताव क्यों नही करते। क्या इन्हे शर्म आती है। या फिर कुछ और ही।
इस लेख के माध्यम से बस इतना ही कहना चाहूंगा कि कोई भी सरकारी अधिकारी खुद को भगवान समझने की कोशिश न करे। आप सिर्फ और सिर्फ जनता के के एक सेवक हो और जन सेवक बनकर ही रहने में भलाई है। जनता से नम्रता से पेश आए उनकी सहायता करे। ना की उनका अपमान जनता से ही आपका घर चलता है। जिस दिन जनता अपने पर आ गई । ना घर रहेगा ना कोई पद।
-अचूक संघर्ष-