योगी जी: कैसे मिले जनता को न्याय, जब पुलिस ही करे अन्याय !

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जनता के रक्षक ही अपराध में शामिल होंगे तो उम्मीद किससे किया जाय

सोनू खान
सोनू खान

पुलिस अब अपराधियों के लिये नहीं बल्कि आम जनता के लिए दहशत का सबब बनती जा रही है। पुलिस के कामकाज का सिलसिला लापरवाही से शुरु होते हुए दबंगई, अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग तक जा पहुंचा है।पुलिस और कानून व्यवस्था हमें सिर्फ सुरक्षा देते ही नहीं हैं उसका अहसास भी कराते हैं। ये अहसास ही तमाम अपराधों पर लगाम कस देता है, लेकिन जब कानून के रखवाले पुलिसवाले ही अपराधियों की तरह काम करने लगें तो हमारी-आपकी हिफाज़त का क्या होगा। राजनीति में बात इसी मुद्दे की क्योंकि एक ओर मुख्यमंत्री योगी का अपराधियों को फरमान है कि या तो सुधर जाओ, वरना यूपी छोड़ दो लेकिन जिनके बूते सीएम साहब अपराधियों पर नकेल कसना चाह रहे हैं वो पुलिसवाले खुद अपराधियों की तरह कठघरे में नज़र आ रहे हैं।

अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची से दरिंदगी के मामले में पुलिसवाले सस्पेंड हैं, तो नोएडा में एक चौकी इंचार्ज ने पुलिसवालों के साथ मिलकर ब्लैकमेलिंग का गैंग बना रखा था। बागपत में एक किसान पुलिस पर थर्ड डिग्री टॉर्चर का आरोप लगा रहा है तो गोंडा में पुलिसवालों ने हद ही कर दी। बहुत पहले ही मर चुके एक शख्स पर मुकदमा दर्ज करा दिया और उसका बयान तक दर्ज कर लिया

सरकार बदलती है, मगर महकमा ज्यों के त्यों रहता है

जब भी कोई नई सरकार सत्ता में आती है तो अपराध को लेकर उनके आश्वसन बड़े होते है. रोक थाम करने के लिए नई हेल्प लाइन निकालते है. क़ानून में बदलाव करके अधिक सशक्त बनाते है. ये सब दिखावे के बावजूद अपराध पर कोई रोक नहीं लगी है.

शासन व प्रशासन के मिलीभगत से फल फूल रहे गुनाहगार

ऐसे में गुनाहगारों की साठगाठं स्थानीय पुलिस से लेकर सफ़ेद पोशो के साथ नाकारा नहीं जा सकता,एेसे अनेक मामले सामने आए है जिसमें नेताओं व पुलिस की देख रेख में अपराधी बेपरवाह होकर घटना को अंजाम दे देते हैं।

आखिर क्या है कार्यप्रणाली समाज के रक्षकों की

एक तो बढते हुए अपराधों ने जनता के नाक में दम कर दिया है. ऊपर से कार्यवाही के नाम पर दिलासा के चलते लोगों का गुस्सा पुलिस पर परवान चढ़ रहा है. इस स्थिति में यह समाज के रक्षक पुलिस अपने ही कर्त्तव्य से भाग कर अपराध का साथ दे रहे है.

चंद पुलिस वालों को छोड़ अधिकतर पुलिस हफ्ता वसूलने में माहिर है. यहा तक सब ठीक हैं मगर पुलिस बलात्कार जैसा शर्मसार कर देने वाला अपराध भी बड़ी ही आसानी से लगा देती है, उसको तो पैसे से मतलब होता है। और हद तो तब है जब सच में यौन पीड़िता की केस तक दर्ज नहीं की जाताहै। खाकी वर्दी के लिए ये इससे घृणास्पद बात और क्या हो सकती है.

अन्य भी कई किस्से है जिसमें पुलिस ने बलात्कार जैसे अपराध किए है

इसी साल का वाकया उत्तर प्रदेश के जनपद ललितपुर का है जिसमें कस्टडी में रही एक किशोरी के साथ थाना प्रभारी ने थाने ले जाकर दुष्कर्म किया. ढेड साल पहले यूपी के कोतवाली क्षेत्र की पुलिस चौकी लालपुर में भी पुलिसकर्मियों ने धार्मिक स्थल पहुंची युवती से दुष्कर्म किया था. इस मामले में सभी आरोपियों पर मुकदमा हुआ और एक आरोपी को बर्खास्त कर दिया गया था. तब तत्कालीन एसएसपी को भी कुर्सी गंवानी पड़ी थी.

सरकार को इन सभी मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए. आखिर समाज के रक्षक ही शर्मनाक अपराध क्यों लगातार कर रहे है? इस के बारे में सोच विचार करते हुवे, कोई हल जरुर निकालना चाहिए.

कोई भी समस्या क्यों हो रही है, ये जाने बगेर केवल अपराधी को दंड देने से कोई मतलब नहीं बनता. घटनाओं का कारण अगर सामने आता है, तो इसे जड़ से निकालने में अधिक सहायता होगी और तब जाके एक सुरक्षित समाज बनेगा. जनता समाज के रक्षकों को नैतिकता का पाठ पढ़ना ही होगा।

-अचूक संघर्ष-

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