भदोही का पिछड़ापन यहाँ के बेईमान और धोखेबाज नेताओं के आचरण को दर्शाता है
-आलोक ओझा-
क्या आपको याद है,रमेशचंद्र बिंद (वर्तमान सांसद-भदोही) ने सार्वजनिक मंच से जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहने ब्राह्मणों को चिन्हित कर मारने व अपमानित करने जैसे शब्दों का प्रयोग किया था ? फिर भी केंद्रीय और राज्य स्तर के नेताओं ने उन्हें सांसद का टिकट दे कर ब्राह्मणों के मुँह पर जोरदार थप्पड़ जड़ने का काम किया, और लोग इतने मजबूर थे कि ऐसे विधर्मी को मतदान कर आए, नेताओं के नजरों में भदोही की जनता इतनी मजबूर है कि उसे ऐसे- ऐसे निकम्मे नेता थोप दिए जाते हैं जो भदोही के माथे पर कलंक हैं, कभी फूलनदेवी, कभी बलिया के ठाकुर साहेब तो कभी मिर्जापुर से रमेश बिंद हमें ऐसे लोगों को कब तक ढोना पड़ेगा?
यज्ञोपवीत ब्राह्मणों का ही नही बल्कि समस्त सनातनियों का संस्कार है, यह हमारे संस्कारों में से एक है, हमारे धर्म जन्म से पहले भी होते हैं और मृत्योपरांत भी किया जाता है जिसे अंत्योष्टि के नाम से जाना जाता है, भदोही का दुर्भाग्य सर्व विदित है कि भदोही का सांसद सनातनधर्मी नही, बल्कि सनातन का दुश्मन है, धर्म का भक्षक है, फिर भी कुछ चेला चापड़ उसके पक्ष में दंभ भरते रहते हैं, अब केंद्रीय नेतृत्व और सांसद को जवाब देने का समय आ गया है की आखिर ऐसे लोगों को हम पर क्यों थोपा गया, जो 5 वर्ष का समय इस वर्तमान सांसद ने नष्ट किया उसका असली जिम्मेदार कौन है?
पूर्व विधायक समेत अपने ही पार्टी के लोग ऊँगली उठाने लगे सांसद रमेश बिन्द पर:
भदोही के निवर्तमान विधायक समेत औराई के दीनानाथ भास्कर समेत कई सांसद रमेश बिन्द के कार्य पद्धति पर ऊँगली उठाने लगे। उनके माध्यम से किये जाने वाले विकास पर रोक लगाना सांसद का परम कर्तब्य बनाता जा रहा है जिससे कोई भी विकास कार्य नही हो पाता भदोही के तीनो विधानसभा या पूरे लोकसभा क्षेत्र में।
भदोही मे रेड जोन मे पहुंच गया पानी का जल स्तर लेकिन अभी भी कोई समुचित बव्यवस्था मौजूदा सरकार के माध्यम से नहीं हुयी.जल है तो कल है का नारा बन कर रह गया है भदोही जनपद मे.
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार हर विभाग में यही स्थिति है, हमारे भदोही के जिस नेता और अधिकारी को हम अपना सेवक बना कर कुर्सी पर बैठाए- वे सब मिलकर हमें ही लूटने का कार्य किए जा रहे हैं, न जाने किस दबाव और मजबूरी में लोग खुलकर इनका विरोध भी नही कर पा रहे? प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज उठाये, यदि कोई हमारे साथ गलत कर रहा है तो उसे तत्काल टोकें ताकि उसकी हिम्मत न बढ़े, हालांकि, ऐसा हो बहुत कम पाता है, लोग चुपचाप अन्याय सहते रहते हैं, और आवाज नही उठाते, प्रतिकार नही करते, वे यह जानते हुए भी कि उनके साथ गलत किया जा रहा है, ऐसा कोई झंझट या कानूनी पचड़े में फंसने से बचते हैं, बस हमारी यही मानसिकता पूरे सिस्टम का नुकसान पहुचा रही है।
अक्सर कुर्सी पाने के बाद जनप्रतनिधि जनता के अरमानों को कुचल देता है, विडंबना ही कहेंगे, जिन्हें हम सिर आंखों पर बैठाते हैं,जब वे ही अधिकारों का दमन करते हैं तो हम उनका भी विरोध नहीं कर पाते, सिस्टम भी सबकुछ देखते हुए अन्याय के खिलाफ चुप रहता है, आज अन्याय हर क्षेत्र में हो रहा है, बात चाहे बुनियादी सुविधाओं की हो या मौलिक अधिकारों की, आए दिन धरना प्रदर्शन होते हैं,ज्ञापन दिए जाते हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होती है, हमें स्पष्ट संदेश देना होगा।
-अचूक संघर्ष