हिंदु परंपराओं में अक्षय तृतीया (वैशाख मास के शुक्ल पक्ष का तीसरा दिन) बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए कामों का कभी क्षय (हानि) नहीं होती। वो हमेशा बने रहते हैं। इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है, अबूझ मुहूर्त यानी इस दिन कोई भी काम ग्रह स्थिति और शुभ मुहूर्त देखकर नहीं किया जाता। पूरा दिन ही शुभ मुहूर्त माना गया है। ऐसा क्यों है कि इस तिथि को अक्षय यानी जिसका कभी क्षरण ना हो, जो हमेशा कायम रहे, कहा जाता है। इसके पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं। ये तिथि भगवान परशुराम के जन्म से लेकर गंगा के धरती पर आने और कृष्ण-सुदामा के मिलन तक से जुड़ी है।
अक्षय तृतीया को सबसे ज्यादा भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। परशुराम उन आठ पौराणिक पात्रों में से एक हैं जिन्हें अमरता का वरदान मिला हुआ है। इसी अमरता के कारण इस तिथि को अक्षय कहते हैं, क्योंकि परशुराम अक्षय हैं। भगवान परशुराम के जन्म के अलावा भी कुछ और पौराणिक घटनाएं हैं, जिनका अक्षय तृतीया पर घटित होना माना जाता है।