सोनिका मौर्या
वाराणसी।यकीनन मुझे आपको या लगभग सभी को कब्र और कब्रिस्तान के नाम पर अंदर झुरझुरी सी आ जाती है।और बात जब कब्र में दफन मुर्दों के बगल में सोने की हो तो कइयों के कलेजे हलक तक छलक कर आ जायेंगे। ऐसा इसलिए भी क्योंकि किस्सों कहानियों में तमाम ऐसी घटनाओं का ज़िक्र है जब कब्रिस्तान के बगल से गुजर रहे किसी व्यक्ति का प्रेतात्माओं से वास्ता पड़ा हो। और बहुतों के कब्रिस्तान भूतों आत्माओं का बसेरा होता है। मगर इन सब कथित भूतों आत्माओं की कहानियों को से इतर एक पूरा परिवार कब्रिस्तान के मुर्दों के बीच उन्ही कब्रों से सटकर सोता है। जी हां वाराणसी के लहरतारा कोरौत मार्ग के लोहता गेट नम्बर पांच के पास गुजरते सड़क से सटा एक छोटा सा कब्रिस्तान है।
उसी कब्रिस्तान के खाली जमीन पर घुमन्तु मुसहर परिवार कुछ ईंट और पुराने प्लास्टिक बोरे को जोड़कर मड़ई बनाकर रह रहे हैं। जिनमें महिलाओं पुरुषों के साथ छोटे बच्चे और उनके पालतू जानवर भी। कब्रिस्तान में नीम और पाकड़ के पेड़ हैं। जिनके नीचे बैठकर इनके बच्चे खेलतें हैं। पूछने पर की डर नही लगता वह मुस्कुराते हैं। जैसे मन ही मन कह रहे हों कि मुर्दों से ज्यादा जिंदो से डर लगता है।
यहाँ रहने वाले बताते हैं कि डर नाम की कोई चीज ही इन्हें नजर नही आती। यह बड़े मजे से रहते आ रहे हैं। रोज इन्ही कब्रों के बीच इनका भोजन बनता है. दिनभर काम और रात होते ही घुप्प अंधेरे के बीच यहीं सब उन्हीं कब्रों से सटकर सो जाते हैं। न कोई डर न कोई भय। सोचिये हमें कोई महंगे शर्त भी लगाये तब भी हम शायद ही इन कब्रो के बीच एक रात रहने सोने खाने की सोचें। यहां इनका पूरा कुनबा यहां आबाद हो चुका है।