योगी आदित्यनाथ: महाराज से मुख्यमंत्री तक का डगर,रहा साफ सुथरा सफर

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सियासी सफरनामा

ईमानदारी,स्पष्टवादीता, कड़क मिजाजी तीखे तेवर,योगी जी के जेवर

हिन्दू सियासत के शक्तिपीठ बने बाबा

अमित मौर्या

अमित मौर्या

वाराणसी/लखनऊ/अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सफेदपोशों की सम्पत्ति को जमीदोज करवाने के कारण बुलडोजर बाबा नाम से मशहूर हो चुके योगी आदित्यनाथ अब एक ब्रांड बन चुके हैं। यूपी की सियासत में हिंदुत्व के दीप को और प्रदीप्त करने वाले योगी आदित्यनाथ देश के उन नेताओं में शुमार हैं। जो अपनी बेबाकी ईमानदारी और स्पष्टवादी के लिये जाने जाते हैं।इनकी छवि मात्र हिंदूवादी विचारों के प्रश्रय दाता के तौर पर नहीं आंकी जाती बल्कि यह हिंदुत्व के लिये नीति नियत निष्ठा को अपने जीवन में पूर्णतया आत्मसात करने वाले हैं।यह अपने कार्यकाल में “फर्जी और मनमर्जी”करने वालों पर नकेल कसते रहे हैं। सरकारी विभागों में भ्र्ष्टाचार पर इनके तेवर सदैव तीखे रहें। यह उन नेताओं में जाने जाते हैं जो अंदर औऱ बाहर से एक जैसा हो यानी व्यक्तित्व व्यहवार विचार एकदम पारदर्शी हैं।

गढ़वाल से गोरखपुर :

यूपी के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के गढ़वाल में 5 जून1972 को क्षत्रिय परिवार में जन्में योगी आदित्यनाथ सन्यासी बनने से पहले अजय सिंह बिष्ट नाम से जाने जाते थें। योगीजी शुरू से ही तेज तर्रार बताये जाते हैं। स्नातक की पढ़ाई करते हुए योगीजी आरएसएस की छात्र इकाई एवीबीपी से जुड़ गयें थें। फिर वह गढ़वाल को छोड़कर गोरखपुर आ गयें। यहां गोरखनाथ मन्दिर के महंत अवैद्यनाथ का सानिध्य मिला। और आज से 24 वर्ष पूर्व योगी आदित्यनाथ उनके उत्तराधिकारी बन गयें। योगीजी गोरक्षपीठ की विरासत और सियासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में मात्र 26 साल की उम्र में गोरखपुर लोकसभा से बीजेपी सांसद के रूप राजनीति में पदार्पण कियें। वह सबसे कम उम्र के सांसदों में गिने गयें।
फिर वह लगातार गोरखपुर से निर्वाचित होते रहें।

पूर्वी यूपी से पूरे यूपी में हिंदुत्व की जान औऱ शान बने :

मुख्यमंत्री बनने के पूर्व से ही योगी आदित्यनाथ का पूर्वी उत्तर प्रदेश में तूती बोलती आ रही है। यह गोरखनाथ मन्दिर के महंत के साथ ही शुद्ध हिंदुत्वादी नेता के तौर पर प्रचलित हो गयें थें। योगी जी ने हिंदू युवा वाहिनी संगठन की स्थापना की जिसकी तूती गोरखपुर के आसपास के इलाकों में जबरदस्त रही आज के समय में यह संगठन पूरे उत्तर प्रदेश में चर्चित है।
योगी आदित्यनाथ कि यह खूबी बताई जाती है कि यह गलत बात पर बीजेपी से भिड़ जाते हैं। आज से एक दशक पूर्व एकबार अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को पार्टी से टिकट न मिलने पर वह पार्टी से रार ठान लिये थें। बाद में संघ ने नाराजगी दूर कराई।
2017 में जब बीजेपी पूर्ण बहुमत से आई तो योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुयें। इसके बाद
यह हिंदुत्व के प्रचंड पुरोधा के रूप में उभरें। अपने कड़क मिजाजी की बदौलत यह जनता में लोकप्रिय होते गयें।
भाजपा की दोबारा जीत से योगी का कद बीजेपी में और बढ़ गया है।करीब तीन दशक बाद यूपी में कोई पार्टी दोबारा सत्ता में आई है।
योगी आदित्यनाथ ने उस मिथक को भी तोड़ दिया जिसके अनुसार नोएडा जाने वाले किसी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाती है। इन्होंने विपक्षी दलों के तमाम आरोपों के बावजूद उनको खारिज करते हुए प्रदेश में बीजेपी की विजय पताका फहराया।यह राजनीतिक जीवन में पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा. हालांकि उनके उम्मीदवार घोषित होने से पहले अयोध्या और मथुरा से भी उनके मैदान में आने की अटकलें थीं लेकिन पार्टी ने इन्हें गोरखपुर से लड़ाया और भारी मतों से जीत दर्ज की।
योगी आदित्यनाथ मठ से निकलकर राजनीति में हिंदुत्ववादी राजनीति के शक्तिपीठ बन चुके हैं।

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