…जब नटवरलालों ने बेच दिया था भारत का पीएम हाउस, रजिस्‍ट्री भी हुई

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फर्जीवाड़े की एक से बढ़कर एक कहानियां सुनी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास को ही बेच दिया गया था? जी, यह घटना सही है। ब्रिटेन में बसने वाला एक प्रवासी भारतीय (NRI) इस फर्जीवाड़े का शिकार हुआ। घटना वर्ष 2005-07 की है। उसने तब नई दिल्ली के तत्कालीन 7 रेस कोर्स रोड और अब लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास को खरीद लिया था, लेकिन जब उसे इस पर कब्जा नहीं मिल सका तो उसने ब्रिटेन की अदालत का रुख किया और उस ब्रिटिश कोर्ट ने खरीदार के पक्ष में आदेश भी पारित कर दिया। अदालत ने ब्रिटेन स्थित भारतीय उच्चायोग को अपने आदेश की तामील करावने को कहा, तब जाकर पूरे मामले का भंडाफोड़ हुआ। तत्कालीन नौकरशाह आरवीएस मणि (RVS Mani) ने अपनी पुस्तक में अपनी पुस्तक ‘भगवा आतंक एक षडयंत्र’ में इस घटना का जिक्र किया है।
आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक में किया फर्जीवाड़े का खुलासा
मणि 2006 से 2010 तक केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा विभाग में तैनात थे। प्रधानमंत्री आवास को बेचे जाने के फर्जीवाड़े की घटना के बारे में वो एक विदेशी उपन्यास और एक बॉलीवुड फिल्म का जिक्र करते हैं। उन्होंने लिखा, ‘कई पाठकों ने मशहूर उपन्यासकार जेफरा ऑर्चर का ‘ऑनर एमंग थीव्स’ जरूर पढ़ा होगा। कहानी का नायक एक छोटा-मोटा अपराधी होता है, जो फर्जीवाड़ा करके अपनी रोजी-रोटी कमाता था। उसने अच्छी-खासी रकम के बदले अमेरिका की स्वतंत्रता के घोषणापत्र को ही धोखाधड़ी कर चुरा लिया था। इसी कहानी का देसी वर्जन बॉलीवुड में बनी फिल्म ‘बंटी-बबली’ है। इस कहानी के किरदार ठग, नकली कागजों के जरिए ‘ताजमहल’ को ही बेच देते हैं।’
जब गृह मंत्रालय में आया पीएमओ से फोन और दंग रह गए लोग
मणि कहते हैं कि ‘प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े होने की एक बड़ी खासियत यह भी है कि आप अलग-अलग तरह की स्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। कई बार तो काल्पनिक नजर आने वाली कहानियां भी सामने आ जाती हैं।’ वो प्रधानमंत्री आवास की बिक्री की घटना को लेकर लिखते हैं, ‘शनिवार की एक शाम जब मैं दफ्तर से घर लौटने की तैयारी कर रहा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से एक फोन आया। हमें किसी बेहद संवेदनशील मसले पर अगले निर्देशों का इंतजार करने के लिए कहा गया। कुछ देर बाद निदेशक (आंतरिक सुरक्षा) के पास एक बंद लिफाफा पहुंचा। लेकिन लिफाफा खोलने पर हम सब भौचक्के रह गए, हम समझ नहीं पा रहे थे कि इस पर हंसें या रोएं?’
किसी NRI ने खरीदा था प्रधानमंत्री आवास
वो आगे बताते हैं, ‘किसी ने फर्जीवाड़े के जरिए ‘सेवन रेस कोर्स’ (अब लोक कल्याण मार्ग) स्थित देश के प्रधानमंत्री के सरकारी आवास को ही बेच दिया था। इसे ब्रिटेन में रहने वाले किसी एनआरआई (प्रवासी भारतीय) ने खरीदा था। उसने न सिर्फ इसको खरीदा था बल्कि अमृतसर के सब रजिस्ट्रार दफ्तर में बाकायदा इसकी रजिस्ट्री भी करवाई गयी थी।’ उन्होंने अपने दावे के लिए अमृतसर के सब रजिस्ट्रार ऑफिस से इसकी पुष्टि कर सकता है। उन्होंने लिखा, ‘कोई देखना चाहे तो अमृतसर जाकर वहां के सब रजिस्ट्रार दफ्तर में 2005-2007 के दौरान हुई रजिस्ट्रियों की लिस्ट में इसका ब्योरा आसानी से तलाश सकता है।’
ब्रिटिश कोर्ट ने दिया था पीएम हाउस खाली करने का आदेश
वो आगे कहते हैं, ‘अब चूंकि खरीदार को संपत्ति पर कब्जा नहीं मिल रहा था लिहाजा वो अदालत पहुंच गया और ब्रिटेन की एक कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाते हुए कब्जे को तामील करवाने का आदेश दे दिया। मैं ठीक से नहीं बता नहीं सकता लेकिन शायद वो ‘शेफील्ड कोर्ट’ या ‘कोवेंट्री कोर्ट’ का फैसला था। अदालत के आदेश को लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को समन कराया गया जिसके बाद उच्चायोग ने कोर्ट के फैसले की प्रति विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गयी।’
अमृतसर के सब रजिस्ट्रार कार्यालय में हुई थी रजिस्ट्री
जब पीएमओ को पता चला कि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा हो गया है तो उसने तुरंत इसकी जानकारी गृह मंत्रालय के आंतरिक विभाग को इससे निपटने को कहा। मणि लिखते हैं, ‘अब आंतरिक सुरक्षा विभाग को पूरे मामले की छानबीन और जांच करने के साथ उसका निपटारा भी कराना था। हालांकि बाद में जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री आवास की रजिस्ट्री करने वाले अमृतसर भू राजस्व विभाग में कार्यरत एक सहायक रजिस्ट्रार को निलंबित करने के साथ नियमानुसार कार्रवाई भी की गई थी।’
हिंदू आतंकवाद की साजिश पर मणि ने लिखी किताब
पूर्व नौकरशाह ने अपनी पुस्तक में इल्जाम लगाया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं शिवराज पाटिल, पी. चिदंबरम, ए आर अंतुले और दिग्विजय सिंह आदि ने चित्रकला जुत्शी, धर्मेंद्र शर्मा, हेमंत करकरे और आरवी राजू जैसे अधिकारियों के जरिए 26/11 के मुंबई हमले को हिंदू संगठनों द्वारा प्रायोजित हमला साबित करने का अजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश की थी।
वो लिखते हैं, ‘यह सार्वजनिक तौर पर विदित है कि हिन्दू आतंकवाद शब्द का दस्तावेजी तौर पर इस्तेमाल पहली दफा ज्वॉइंट सेक्रेटरी (गृह मंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा विभाग) धर्मेंद्र शर्मा ने ही किया था। जुलाई 2010 में पहली बार इस शब्द को एक फाइल में दर्ज किया गया था और इसके लिए संबंधित एजेंसियों से कोई बातचीत नहीं की गई थी।’ उन्हीं धर्मेंद्र शर्मा ने आंतरिक विभाग से मणि का तबादला करवा दिया था। मणि कहते हैं कि यह संभवतः किसी बड़े खेल का हिस्सा था।
-एजेंसियां

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