Who are the Panchen Lama and what is the dispute with China over them

27 साल से जिसे देखा नहीं गया, कौन है वो दुनिया का सबसे युवा राजनीतिक बंदी?

Cover Story

[ad_1]

चीन ने जब 1995 में तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे अहम व्यक्ति को छह साल की उम्र में जब अपने क़ब्ज़े में ले लिया, तब उन्हें दुनिया का सबसे युवा राजनीतिक बंदी कहा गया था. 27 साल से उन्हें देखा नहीं गया है.
तिब्बती बौद्ध पुनर्जन्म (अवतार) में विश्वास रखते हैं. जब तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे अहम व्यक्ति पंचेन लामा की 1989 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई (कुछ लोगों का मानना है कि चीन सरकार ने उन्हें ज़हर दिलवाया था) तो उनका अवतार जल्द ही होने की उम्मीद ज़ाहिर की गई.
14 मई 1995 को तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख दलाई लामा ने एन पंचेन लामा को पहचाने जाने की घोषणा की. छह साल के गेझुन चोएक्यी न्यीमा को पंचेन लामा का अवतार घोषित किया गया. वो तिब्बत के नाक्शु शहर के एक डॉक्टर और नर्स के बेटे थे.
चीनी प्रशासन को उम्मीद थी कि पंचेन लामा को बिना दलाई लामा के हस्तक्षेप के पहचान लिया जाएगा. दलाई लामा 1959 में तिब्बत छोड़कर भारत आ गए थे और तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया था.
चीनी सरकार ने न्यीमा और उनके परिवार को ही परिदृश्य से बाहर कर दिया और चीनी सरकार के प्रभाव वाले बौद्ध धर्मगुरुओं से ऐसे पंचेन लामा की पहचान करने के लिए कहा जो चीन के इशारे पर चले.
इसके बाद क्या हुआ?
17 मई 1995 को चीन ने उन्हें अपने नियंत्रण में लिया और तब से ही उन्हें लोगों की नज़र से दूर रखा गया. एक बार एक अधिकारी ने साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट को बताया था कि वो उत्तरी चीन के गानझू में रह रहे हैं. एक थ्योरी ये भी है कि उन्हें या तो बीजिंग में या उसके आसपास रखा गया है.
अक्तूबर 2000 में तत्कालीन ब्रितानी विदेश मंत्री रॉबिन कुक ने संसद की सेलेक्ट समिति को बताया था, “हर बार जब हमने गेझुन चोएक्यी न्यीमा का सवाल उठाया…हमें चीन की सरकार ने ये भरोसा दिया कि उनकी सेहत अच्छी है और उनकी अच्छे से देखभाल की जा रही है और उनके परिजन अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं.”
पंचेन लामा इतने अहम क्यों हैं?
दलाई लामा की ही तरह पंचेन लामा को भी बुद्ध के ही एक रूप का अवतार माना जाता है. पंचेन लामा को अमिताभ, यानी बुद्ध के असीम प्रकाश वाले दैवीय स्वरूप का अवतार माना जाता है
जबकि दलाई लामा उनके अवालोकीतेश्वरा स्वरूप के अवतार माने जाते हैं. अवालोकीतेश्वरा को करुणा का बुद्ध माना जाता है.
पारंपरिक रूप से, एक रूप दूसरे स्वरूप का गुरू है और दूसरे के अवतार की पहचान में अहम भूमिका निभाता है.
पंचेन लामा की उम्र और दलाई लामा की उम्र में पचास से अधिक साल का अंतर है, ऐसे में जब दलाई लामा के अवतार की खोज होगी तो ये काम पंचेन लामा ही करेंगे.
जब 1995 में चीनी सरकार ने पंचेन लामा के चयन की प्रक्रिया पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश की थी, हो सकता है वह पहले से इसकी तैयारी कर रही हो.
दलाई लामा ने 2011 में अपने रिटायरमेंट और पुनर्जन्म (फिर से अवतार लेने) को लेकर एक संदेश में लिखा था, “वे कहते हैं कि वे मेरी मृत्यु का इंतज़ार कर रहे हैं और फिर अपनी मर्ज़ी के व्यक्ति को 15वें दलाई लामा के तौर पर मान्यता देंगे.”
क्या पंचेन लामा के बिना कोई और दलाई लामा बन सकते हैं?
दलाई लामा के पुनर्जन्म को तलाशने में पंचेन लामा की भूमिका प्रमुख रहेगी मगर इंटरनेशनल कैंपेन फ़ॉर तिब्बत के उपाध्यक्ष भूचुंग त्सेरिंग ने पिछले साल कहा था, ऐसा नहीं है कि “दलाई लामा के फिर से अवतार लेने की प्रक्रिया पूरी तरह उन्हीं के ऊपर निर्भर करती है.”
उनका अनुमान है कि जब समय आएगा, चीनी प्रशासन “अपने राजनीतिक हितों के लिए उस शख़्स को इस्तेमाल कर सकता है जिसे उसने पंचेन लामा के तौर पर चुना है.”
दलाई लामा ने पिछले साल मार्च में समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा था कि उनका उत्तराधिकारी भारत में भी मिल सकता है, जहां वह ख़ुद औऱ कई सारे तिब्बती पिछले 60 सालों से रह रहे हैं.
उन्होंने कहा था, “भविष्य में अगर आपको दो दलाई लामा देखने को मिलें, एक यहां पर एक स्वतंत्र देश में और दूसरा चीनियों का चुना हुआ, तो कोई (चीनियों के चुने हुए दलाई लामा की) इज्जत नहीं करेगा. तो चीनियों के लिए यह और बड़ी समस्या है.”
उन्होंने यह भी कहा था कि इस साल भारत में तिब्बती बौद्धों की मीटिंग में यह चर्चा हो सकती है कि दलाई लामा के पद को जारी रखने की ज़रूरत है या नहीं.
चीन दलाई लामा से चिढ़ता क्यों है
दलाई लामा 84 साल के तिब्बती आध्यात्मिक नेता है. उन्होंने भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया था. दूसरी ओर चीन तिब्बत पर अपना दावा पेश करता है.
चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है. वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या हैं.
दलाई लामा अमरीका भी जाते हैं तो चीन के कान खड़े हो जाते हैं.
हालांकि 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा से मुलाक़ात की थी.
चीन और दलाई लामा का इतिहास ही चीन और तिब्बत का इतिहास है.
1409 में जे सिखांपा ने जेलग स्कूल की स्थापना की थी. इस स्कूल के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार किया जाता था.
यह जगह भारत और चीन के बीच थी जिसे तिब्बत नाम से जाना जाता है. इसी स्कूल के सबसे चर्चिच छात्र थे गेंदुन द्रुप. गेंदुन आगे चलकर पहले दलाई लामा बने.
विवाद
बौद्ध धर्म के अनुयायी दलाई लामा को एक रूपक की तरह देखते हैं. इन्हें करुणा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
दूसरी तरफ इनके समर्थक अपने नेता के रूप में भी देखते हैं. दलाई लामा को मुख्य रूप से शिक्षक के तौर पर देखा जाता है. लामा का मतलब गुरु होता है. लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं.
तिब्बती बौद्ध धर्म के नेता दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन करते हैं.
1630 के दशक में तिब्बत के एकीकरण के वक़्त से ही बौद्धों और तिब्बती नेतृत्व के बीच लड़ाई है. मान्चु, मंगोल और ओइरात के गुटों में यहां सत्ता के लिए लड़ाई होती रही है. अंततः पांचवें दलाई लामा तिब्बत को एक करने में कामयाब रहे थे.
इसके साथ ही तिब्बत सांस्कृतिक रूप से संपन्न बनकर उभरा था. तिब्बत के एकीकरण के साथ ही यहां बौद्ध धर्म में संपन्नता आई. जेलग बौद्धों ने 14वें दलाई लामा को भी मान्यता दी.
दलाई लामा के चुनावी प्रक्रिया को लेकर ही विवाद रहा है. 13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था.
करीब 40 सालों के बाद चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण किया. चीन का यह आक्रमण तब हुआ जब वहां 14वें दलाई लामा के चुनने की प्रक्रिया चल रही थी. तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा.
कुछ सालों बाद तिब्बत के लोगों ने चीनी शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया. ये अपनी संप्रभुता की मांग करने लगे. हालांकि विद्रोहियों को इसमें सफलता नहीं मिली.
दलाई लामा को लगा कि वह बुरी तरह से चीनी चंगुल में फंस जाएंगे. इसी दौरान उन्होंने भारत का रुख किया. दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे. यह साल 1959 का था.
चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा. तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था.
तनाव
दलाई लामा और चीन के कम्युनिस्ट शासन के बीच तनाव बढ़ता गया. दलाई लामा को दुनिया भर से सहानुभूति मिली लेकिन अब तक वह निर्वासन की ही ज़िंदगी जी रहे हैं.
1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला. दलाई लामा का अब कहना है कि वह चीन से आज़ादी नहीं चाहते हैं, लेकिन स्वायत्तता चाहते हैं.
1950 के दशक से दलाई लामा और चीन के बीच शुरू हुआ विवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है. दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से रिश्ते अक्सर ख़राब रहते हैं.
दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है. भारत का रुख भी तिब्बत को लेकर बदलता रहा है.
अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि चीन को जल्द से जल्द तिब्बती धार्मिक नेता पंचेन लामा के बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए.
माइक पॉम्पियो ने यहाँ तक कहा कि 25 साल पहले चीनी अधिकारियों ने पंचेन लामा का अपहरण कर लिया था, जब वे सिर्फ़ छह साल के थे. अब वे 31 साल के हो गए हैं. अमरीकी विदेश मंत्री ने कहा कि चीन में सभी धर्मों को मानने वालों को बिना दखल के अपनी मान्यताओं को अपनाने की अनुमति होनी चाहिए.
उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि कैसे चीन तिब्बतियों की धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक पहचान को अलग करने की कोशिश कर रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण परेशान अमरीका ने चीन को अब एक नए मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है.
तिब्बत का मामला ऐसा ही है. कोरोना वायरस की उत्पति और चीन की भूमिका को लेकर अमरीका ने पहले ही मोर्चा खोला हुआ है. अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन पर निशाना साधा है.
कोरोना संक्रमण के मामले पर चीन को ज़िम्मेदार ठहराने और इसकी आर्थिक क़ीमत चुकाने को लेकर अमरीका ने कई पहल की है. अब अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने पंचेन लामा का मुद्दा उठाकर चीन को घेरने की कोशिश की है.
-BBC

[ad_2]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *