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ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक बलिया में फर्जी डॉक्टर मिथिलेश दीक्षित की तैनाती का खेल,ये आखिर कब जाएगा जेल ?

        • फर्जी डिग्री और सर्टिफिकेट का खेल – बलिया से गाजीपुर तक फैला नेटवर्क
        • पूर्व सैनिक का आरोप रजिस्ट्रेशन नंबर पर दर्ज है किसी और का नाम
        • वाराणसी ईसीएचएस हेडक्वार्टर पर सवाल हर साल पुनर्नियुक्ति की मंजूरी क्यों?
        • शिकायतें हुईं नजरअंदाज – एनएमसी व डीएम बलिया की चुप्पी
        • अशर्फी हॉस्पिटल से ईसीएचएस तक डॉ. दीक्षित का विवादित सफर
        • ईसीएचएस प्रणाली में भ्रष्टाचार 11 महीने बाद भी फर्जी सर्टिफिकेट पर पुनः नियुक्ति कैसे
        • गाजीपुर में जारी ‘फर्जी डाक्टर’ का खेल गंभीर खतरे में मरीजों की जिंदगी

 

बलिया के ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। पूर्व सैनिक दिलीप कुमार सिंह ने आरोप लगाया है कि यहां तैनात मेडिकल ऑफिसर डॉ.मिथलेश दीक्षित की नियुक्ति फर्जी डिग्री और रजिस्ट्रेशन के आधार पर की गई है। शिकायत राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग से लेकर जिला प्रशासन तक दर्ज कराई गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सवाल यह है कि जब हर साल सर्टिफिकेट वेरीफिकेशन होता है, तो ऐसे डॉक्टर कैसे 7-8 वर्षों से लगातार नियुक्त हो रहे हैं? क्या इसमें विभागीय मिलीभगत शामिल है। मगर हैरानी की बात यह है कि अब तक इस मामले में किसी भी स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई। आरोप है कि हर साल होने वाले सर्टिफिकेट वेरीफिकेशन के बावजूद विभागीय मिलीभगत के चलते मिथलेश दीक्षित को 7-8 सालों से लगातार नियुक्त किया जा रहा है। यह केवल बलिया तक सीमित नहीं, बल्कि गाजीपुर तक फैला एक नेटवर्क है। सवाल यह है कि क्या ईसीएचएस जैसी संवेदनशील संस्था, जो देश की सेवा कर चुके पूर्व सैनिकों की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बनी है, उसमें भी भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा गहरे तक पैठ चुका है?

 

 

बलिया में फर्जी डॉक्टर की तैनाती!

बलिया ज़िले के ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक से एक गंभीर खुलासा हुआ है जिसने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी है। आरोप है कि यहां मेडिकल ऑफिसर के पद पर तैनात डॉ. मिथलेश दीक्षित ने फर्जी डिग्री और रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर नौकरी पाई है। यह खुलासा किसी आम नागरिक ने नहीं, बल्कि एक पूर्व सैनिक और पूर्व कर्मचारी दिलीप कुमार सिंह ने किया है, जिन्होंने इस घोटाले की शिकायत नेशनल मेडिकल कमीशन से लेकर जिलाधिकारी बलिया तक दर्ज कराई है।

फर्जी डिग्री और सर्टिफिकेट का खेल

पूर्व सैनिक दिलीप कुमार सिंह ने आरोप लगाया है कि डॉ. मिथलेश दीक्षित ने जो मेडिकल रजिस्ट्रेशन नंबर 24080 प्रस्तुत किया है, वह असल में किसी रामकुमार नामक व्यक्ति के नाम पर दर्ज है। नेशनल मेडिकल कमीशन की आधिकारिक वेबसाइट पर यह तथ्य साफ दिखाई देता है। यानी जिस नंबर पर दीक्षित अपनी पहचान बना रहे हैं, वह उनका है ही नहीं। यही नहीं, कई अन्य सर्टिफिकेट और डिग्रियां भी संदिग्ध पाई गईं। आरोप है कि यह खेल सिर्फ बलिया तक सीमित नहीं, बल्कि गाजीपुर में भी इसी तरह के फर्जी डॉक्टर सक्रिय हैं। यह एक संगठित नेटवर्क है जो फर्जी डिग्रियों के दम पर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है।

पूर्व सैनिक का आरोप रजिस्ट्रेशन नंबर पर दर्ज है किसी और का नाम

दिलीप कुमार सिंह का कहना है कि उन्होंने जब डॉ. मिथलेश दीक्षित के दस्तावेजों की जांच की तो कई विसंगतियां मिलीं। सबसे बड़ा सवाल रजिस्ट्रेशन नंबर 24080 को लेकर है। एनएमसी की साइट पर यह नंबर रामकुमार नामक डॉक्टर को आवंटित है। फिर भी मिथलेश दीक्षित उसी नंबर के आधार पर वर्षों से मेडिकल प्रैक्टिस कर रहे हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी खामी नहीं, बल्कि एक कानूनी अपराध है। भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम और एनएमसी की गाइडलाइंस के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति बिना मान्य पंजीकरण के न तो खुद को डॉक्टर कह सकता है और न ही मरीजों का इलाज कर सकता है।

ईसीएचएस हेडक्वार्टर पर सवाल हर साल पुनर्नियुक्ति की मंजूरी क्यों?

ईसीएचएस की व्यवस्था यह है कि हर 11 महीने बाद सभी कर्मचारियों और डॉक्टरों के दस्तावेजों की जांच होती है। इसके बाद ही पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी होती है। मगर चौंकाने वाली बात यह है कि मिथलेश दीक्षित हर साल इस प्रक्रिया से पास होकर फिर से नियुक्त हो जाते हैं। वाराणसी ईसीएचएस हेडक्वार्टर और बलिया पॉलीक्लिनिक के अधिकारी आखिरकार किस आधार पर इनकी फाइल को क्लियर कर देते हैं। क्या यह महज़ लापरवाही है, या फिर इसमें मोटी रकम लेकर फर्जी दस्तावेजों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया जाता है।

शिकायतें हुईं नज़रअंदाज़ नेशनल मेडिकल कमीशन और डीएम बलिया की चुप्पी

दिलीप कुमार सिंह ने इस मामले की शिकायत नेशनल मेडिकल कमीशन को की। इसके अलावा उन्होंने जिलाधिकारी बलिया को भी पत्र भेजकर कार्रवाई की मांग की। मगर अब तक किसी भी स्तर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। एनएमसी जैसी संस्था, जिसे मेडिकल शिक्षा और पंजीकरण की पूरी व्यवस्था की निगरानी करनी है, यदि ऐसी शिकायत पर चुप रहती है तो यह उसकी विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल है। वहीं डीएम बलिया की निष्क्रियता स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत की ओर इशारा करती है।

अशर्फी हॉस्पिटल से ईसीएचएस तक डॉ. दीक्षित

सूत्रों के अनुसार, डॉ. मिथलेश दीक्षित पहले बलिया के अशर्फी हॉस्पिटल में काम करते थे। वहीं से उन्होंने धीरे-धीरे नेटवर्क तैयार किया और ईसीएचएस तक पहुंच बनाई। आरोप है कि इसी दौरान उन्होंने फर्जी डिग्रियों और सर्टिफिकेट्स का सहारा लिया। पूर्व कर्मचारी बताते हैं कि अशर्फी हॉस्पिटल में भी उनकी कार्यशैली को लेकर कई बार सवाल उठे थे। लेकिन मजबूत पकड़ और राजनीतिक-प्रशासनिक रिश्तों के कारण उन पर कभी कार्रवाई नहीं हुई।

नेशनल मेडिकल कमीशन प्रणाली में भ्रष्टाचार

ईसीएचएस की सबसे बड़ी कमजोरी यही सामने आई है कि दस्तावेजों की जांच महज़ औपचारिकता बनकर रह गई है। हर 11 महीने पर होने वाला सर्टिफिकेट वेरीफिकेशन एक खानापूर्ति है। अधिकारी दस्तावेज देखे बिना साइन कर देते हैं। यह सिर्फ मिथलेश दीक्षित का मामला नहीं है। ईसीएचएस के कई पॉलीक्लिनिकों में इसी तरह 7-8 सालों से कर्मचारी और डॉक्टर काम कर रहे हैं। जब तक कोई पूर्व सैनिक या कर्मचारी खुलकर सामने नहीं आता, तब तक इनकी पोल नहीं खुलती।

‘फर्जी डॉक्टर’ का खेल जारी खतरे में मरीजों की जिंदगी

दिलीप कुमार सिंह का कहना है कि यह खेल गाजीपुर में भी जारी है। वहां भी कई डॉक्टर और कर्मचारी फर्जी डिग्रियों के सहारे नौकरी कर रहे हैं। यह स्थिति बेहद खतरनाक है क्योंकि ईसीएचएस का मकसद है कि देश के पूर्व सैनिकों और उनके परिजनों को उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधा मिले। मगर जब ऐसे पॉलीक्लिनिकों में ही फर्जी डॉक्टर बैठेंगे, तो यह सीधे तौर पर मरीजों की जान से खिलवाड़ है। छोटे-मोटे इलाज से लेकर गंभीर बीमारियों तक का उपचार जब गैर-प्रमाणित व्यक्ति करेगा, तो हादसे और मौतें अवश्यंभावी हैं।

डॉ. दीक्षित ने आरोपों से किया इंकार

जब इस पूरे मामले पर डॉ. मिथलेश दीक्षित से संपर्क किया गया, तो उन्होंने सभी आरोपों का सिरे से खंडन किया। उनका कहना है कि उनके पास वैध डिग्री और रजिस्ट्रेशन मौजूद है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ यह साजिश कुछ असंतुष्ट कर्मचारियों द्वारा रची जा रही है। हालांकि अब तक उन्होंने अपने पक्ष में कोई ठोस दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किया है। न ही यह साफ कर पाए हैं कि रजिस्ट्रेशन नंबर 24080 पर उनका नाम क्यों नहीं है। ईसीएचएस बलिया पॉलीक्लिनिक का यह मामला सिर्फ एक डॉक्टर तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसे तंत्र की पोल खोलता है जिसमें विभागीय मिलीभगत, फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार गहराई तक घुसा हुआ है। हर साल होने वाले वेरीफिकेशन को महज औपचारिकता बना दिया गया है।

* अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी डॉक्टर सालों से काम कर रहे हैं।
* शिकायतों को दबा दिया जाता है और पीड़ित पूर्व सैनिकों की आवाज अनसुनी रह जाती है।
* फर्जी डिग्री और गलत रजिस्ट्रेशन नंबर से मेडिकल ऑफिसर की नियुक्ति।
* शिकायतकर्ता पूर्व सैनिक दिलीप कुमार सिंह का आरोप
* एनएमसी रजिस्ट्रेशन नंबर 24080 पर नाम दर्ज रामकुमार का, न कि मिथलेश दीक्षित का।
* 7-8 वर्षों से लगातार नियुक्ति, हर साल सर्टिफिकेट वेरीफिकेशन के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं।
* विभागीय मिलीभगत का आरोप अधिकारी और कर्मचारी जानबूझकर चुप।
* बलिया के साथ गाजीपुर में भी जारी है फर्जी नियुक्ति का खेल।
* पूर्व में अशर्फी हॉस्पिटल में कार्यरत रहे मिथलेश दीक्षित।

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