ओवरलोडिंग वाहनों का विधि विरूद्ध तरीके परिवहन जारी,जिम्मेदार आंख बंद किये है बारी -बारी
धरती कांप उठती है! चकिया से सैदुपुर मार्ग पर ओवरलोड वाहनों का आतंक

● रात की सड़कों पर मौत का पहिया, दिन में चुप्पी साधे विभाग
● ओवरलोड ट्रैक्टरों की दहाड़ से हिल रही चंदौली की धरती, प्रशासन मौन
● अवैध बोगा ट्रैक्टरों का बोलबाला, जनता की सांसें अटकीं
● कागजों में कार्रवाई, जमीन पर दुर्घटनाएं यही है सरकारी कहानी
● बिना फिटनेस, बिना परमिट, बिना डर चल रहे हैं मौत के पहिए
● चकिया, सैदुपुर, सिकंदरपुर बन चुके हैं ‘खनन माफिया कॉरिडोर’
● ग्रामीणों की पुकार हम कब तक मरते रहेंगे?
● सरकार के नारे गूंजते हैं, लेकिन सड़क पर राज करता है अवैधता का साम्राज्य
◆ राजकुमार सोनकर
चकिया (चंदौली)। रात गहराती है, तो सड़कें थरथराने लगती हैं। ओवरलोड बोगा ट्रैक्टरों की गर्जना, ट्रकों की तेज हेड लाइटें, और ब्रेक की चीख यह सब इस मार्ग पर हर रात की सच्चाई बन चुका है। चकिया से सैदपुर, सिकंदरपुर, और बिहार की ओर जाने वाले इन मार्गों पर अवैध ओवरलोड वाहनों का आतंक उस स्तर पर पहुंच चुका है कि अब स्थानीय लोग रात में नींद नहीं ले पाते। जिन रास्तों से कभी साइकिल और बैलगाड़ी गुजरती थी, वहां ओवरलोड ट्रक, ट्रैक्टर और डंपर के रूप में अब मौत दौड़ती है। ऐसा लगता है जैसे धरती कांप रही हो… दीवारें हिलती हैं, नींद उड़ जाती है।
रात की सड़कों पर मौत का मेला
स्थानीय लोगों का कहना है कि इन वाहनों का संचालन रात के समय चरम पर होता है। दिन में पुलिस या प्रशासन की मौजूदगी के कारण ये कुछ कम दिखाई देते हैं, लेकिन रात ढलते ही रास्ता इनका राजमार्ग बन जाता है। हर 2 से 3 मिनट में एक ओवरलोड ट्रैक्टर या ट्रक गुजरता है। 40 से 50 टन भार के साथ, जबकि अनुमति केवल 16 से 20 टन की होती है। इन वाहनों में न तो लाइटें ठीक होती हैं, न फिटनेस, न वैध ड्राइविंग लाइसेंस। खुलेआम चलता है अवैध खनन, गिट्टी, बालू, मिट्टी का कारोबार , और खामोश रहती हैं जांच टीमें।
ग्रामीणों का कहना है कि हम रात में दरवाजे बंद करके सोते हैं, लेकिन सायरन और गड़गड़ाहट फिर भी सुनाई देती है। लगता है जैसे घर के भीतर ट्रक घुस जाएगा।
मौत का लाइसेंस ‘ओवरलोडिंग’
ओवरलोड वाहनों की समस्या केवल कानून उल्लंघन नहीं है, यह मौत का लाइसेंस है। चकिया से इलिया, सैदपुर और ढोड़नपुर मार्ग तक, इन वाहनों की धौंस ऐसी है कि दोपहिया वाहन या पैदल यात्री इन्हीं से बचते फिरते हैं। सड़कें टूट चुकी हैं, किनारे उखड़ गए हैं। गिट्टी और मिट्टी गिरने से सड़क पर फिसलन रहती है। अक्सर यह फिसलन किसी मासूम की जिंदगी छीन लेती है।
‘कागजी कार्रवाई’ की कहानी
चकिया से लेकर सैदपुर तक हर थाने में दर्ज हैं अवैध वाहनों की शिकायतें। लेकिन हकीकत यह है कि कार्रवाई सिर्फ फाइलों में होती है।पुलिस कभी कभार चालान काटती है, पर वाहन कुछ घंटों में ही छुड़वा लिए जाते हैं। कुछ अधिकारियों की ‘चुप्पी’ खुद गवाही देती है कि यह नेटवर्क सिर्फ ड्राइवरों का नहीं, बल्कि खनन, परिवहन व प्रशासन का संगठित तंत्र है। कागजों में होती है कार्रवाई सड़क पर अवैधता चलती रहती है।
माफियाओं का कॉरिडोर चकिया से बिहार तक
सोनभद्र और मिर्जापुर से निकली खनन सामग्री ट्रकों और ट्रैक्टरों में भरकर चकिया होते हुए बिहार पहुंचाई जाती है। सैदपुर और सिकंदरपुर मार्ग अब माफिया कॉरिडोर बन चुके हैं। इन मार्गों पर रात में 200 से 300 तक ओवरलोड वाहन गुजरते हैं, जो 50 किलोमीटर की यात्रा में 4 से 5 चेकपोस्ट पार करते हैं लेकिन कहीं रोके नहीं जाते। जवाब साफ है ‘वसूली व्यवस्था’ सब कुछ सुलझा देती है। हर वाहन से ‘कट’ तय है और जब ऊपर तक हिस्सेदारी तय हो जाती है, तो नियम और कानून औपचारिकता बन जाते हैं।
प्रशासन और विभाग जिम्मेदारी या मजबूरी
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि हमारी टीम सीमित है। हर रात गश्त नहीं हो पाती। वाहन चालाक चकमा देकर भाग जाते हैं। क्या जनता इसलिए मरे क्योंकि पुलिस के पास पेट्रोल नहीं, या गश्ती वाहन कम हैं! परिवहन विभाग का कहना है कि जिन वाहनों के पास वैध परमिट नहीं, उनके विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है। यह पूछने पर कि कितने वाहन पकड़े गए, कितने वाहन जब्त हुए। इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला।खनन विभाग का कहना है कि कई वाहन पट्टाधारी बताकर निकल जाते हैं, इसलिए पकड़ पाना कठिन है।
राजनीति और संरक्षण का खेल
सूत्रों की मानें तो कुछ वाहन मालिक राजनीतिक नेताओं और दबंग कारोबारियों से जुड़े हैं। इसीलिए कोई अधिकारी खुलकर कार्रवाई नहीं कर पाता। यदि किसी ने ज्यादा सख्ती दिखाई, तो फोन ऊपर से आ जाता है कि वाहन छोड़ दो, जांच बाद में कर लेना।
ग्रामीणों की टूटती उम्मीदें
गांव में भय का माहौल रहता है, लोग अब प्रशासन पर भरोसा नहीं करते। ग्रामीणों का कहना है कि जिलाधिकारी, विधायक को बताने के बाद भी कार्रवाई नहीं होती है।
मूल कारण पांच स्थायी रोग
1. संसाधनों की कमी : पुलिस व परिवहन विभाग के पास न मोबाइल वजन पुल, न पर्याप्त टीम।
2. राजनीतिक संरक्षण : वाहन मालिकों का नेताओं से सीधा संबंध।
3. कानूनी जटिलता : जब्ती के बाद अदालत से आसानी से रिहाई।
4. जन-भागीदारी का डर : शिकायत करने वालों को धमकियां, फर्जी मुकदमे।
5. विभागीय मिलीभगत : निचले स्तर से ऊपर तक हिस्सेदारी तय।
* चकिया से सैदपुर मार्ग पर रात में ओवरलोड वाहनों की अवैध आवाजाही।
* वाहनों में फिटनेस, परमिट, ड्राइविंग लाइसेंस का अभाव।
* कई दुर्घटनाओं में जानें जा चुकीं, प्रशासन मौन।
* खनन सामग्री की अवैध ढुलाई सोनभद्र-मिर्जापुर से बिहार तक।
* कागजी कार्रवाई बन गई मजाक, वसूली तंत्र सक्रिय।
* ग्रामीणों में भय और आक्रोश।
* राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिली भगत का खुला खेल।