कैसे हो अवैध निर्माण पर कार्रवाई,जब जिला प्रशासन ही करे ढिलाई !

वीडीए सीलिंग टीम जेई रोहित कुमार व सुपरवाइजर टीम बंधक, अवैध निर्माण, अफसर नदारद, कानून बेहाल
वाराणसी की सड़कों पर कानून की हार
काशी की मर्यादा पर दबंगई का धब्बा
सड़क पर बंधक बने वीडीए कर्मचारी
पुलिस पहुंची मगर देर से, कानून झुका दबंग के आगे
नोटिस पर नोटिस, कार्रवाई का ढोंग
अवैध निर्माण माफिया का शहरव्यापी जाल
जनता की जान खतरे में, स्मार्ट सिटी सपना अधूरा
कानून की किताब मोटी, पर दबंगई भारी
वाराणसी। जिसे काशी कहा जाता है सभ्यता, धर्म और मर्यादा का प्रतीक। यह वह नगरी है जहां गंगा की धारा मोक्ष देती है और जहां भगवान विश्वनाथ की नगरी का आदर्श हमेशा धर्म की विजय का रहा है। लेकिन इसी काशी की गलियों में अब दबंगई का नंगा नाच हो रहा है।अर्दली बाजार की सड़कें, जो कभी व्यापारी संस्कृति और सामाजिक आचार का प्रतीक थीं, अब सत्ता और प्रशासन की नाकामी की गवाह बन चुकी हैं। यहां कानून की नहीं, दबंगई की गूंज सुनाई देती है। वीडीए की टीम जब अवैध निर्माण सील करने पहुंची तो उन्हें न्याय का पहरेदार समझना चाहिए था, लेकिन उसी पवित्र धरती पर वे खुद बंधक बना लिए गए। यह दृश्य सिर्फ एक घटना नहीं था, बल्कि उस काशी के माथे पर धब्बा था जिसे लोग मर्यादा, अनुशासन और न्याय की राजधानी कहते हैं। जिस शहर की सभ्यता दुनिया को नियम और धर्म सिखाती है, उसी शहर में कानून खुद बंधक बन जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार अर्दली बाजार में अवैध निर्माण सील करने पहुंची वीडीए की टीम को भवन स्वामी ने दिनदहाड़े बंधक बना लिया। सड़क पर घंटे भर चला यह नाटक न केवल प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि गंगा पार के इस महानगर में असली हुकूमत किसकी है।
जब सड़क बन गई अखाड़ा
अर्दली बाजार का तिराहा। रोजाना सैकड़ों दुकानदार और हजारों राहगीरों से गुलजार यह इलाका अचानक अफरा-तफरी का गवाह बना। वीडीए टीम मकान मालिक मनोज पांडेय की तीन मंजिला इमारत को सील करने अवर अभियंता रोहित कुमार के नेतृत्व में टीम पहुंची और औपचारिक प्रक्रिया पूरी की। पट्टे से सील लगाई, दीवार पर मोटे लाल अक्षरों में लिखा यह भवन अवैध निर्माण के कारण सील किया गया है। लेकिन यह कार्रवाई मनोज पांडेय और उनके परिजनों को नागवार गुजरी। कुछ ही मिनटों में पूरा माहौल बदल गया। परिवार के लोग और समर्थक जुटे और टीम को घेर लिया और शर्त रखा कि सील पट्टा हटाओ और लिखावट मिटाओ, तभी निकलने देंगे। सड़क पर देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई और प्रशासनिक मशीनरी मूकदर्शक बनी रही।
पुलिस की देरी और दबंगई की जीत
करीब एक घंटे तक हंगामा चलता रहा। भीड़ मजे लेती रही, वीडीए कर्मी भयभीत रहे और भवन मालिक दबंगई दिखाते रहे।जोनल अधिकारी शिवाजी मिश्रा का फोन तो कैंट थाना प्रभारी उठा ही नही रहे थे तो शिवाजी जी ने फिर एसीपी कैंट को प्रकरण से अवगत कराया, तब एसीपी कैंट नितिन तनेजा और कैंट थाना प्रभारी शिवाकांत मिश्रा के निर्देश पर अर्दली बाजार पुलिस चौकी पुलिस के कर्मी पहुंचे और कर्मचारियों को मुक्त कराया, लेकिन तब तक दबंग अपनी शर्तें मनवा चुके थे। विवश होकर कर्मचारियों को मकान से पट्टा हटाना पड़ा। दीवार पर लिखे शब्द भी मिटा दिए गए। यानी कानून मिट गया, दबंगई जीत गई।
नोटिस का ढोंग कागजी कार्रवाई की पोल
इस मकान को लेकर वीडीए ने पहले ही कई नोटिस जारी किए थे। 8 नवंबर 2024 काम रोकने का आदेश।10 मई 2025 और 1 सितंबर 2025 दोबारा चेतावनी, नक्शा दाखिल करने को कहा गया। लेकिन मालिक ने कोई जवाब नहीं दिया और निर्माण जारी रखा। सवाल यह है कि अगर तीन-तीन नोटिस के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो नोटिस का क्या महत्व है।
अवैध निर्माण का शहरव्यापी नेटवर्क
यह घटना कोई अपवाद नहीं है। पूरे वाराणसी में अवैध निर्माण का जाल फैला है। वीडीए अधिकारियों पर आरोप लगता है कि उनकी मिलीभगत और रिश्वत के बिना कोई निर्माण संभव नहीं। पुलिस की चुप्पी दबंगों पर कार्रवाई का साहस नहीं, उल्टे दबाव में समझौता कराया। हर बड़ा बिल्डर या भवन स्वामी किसी न किसी दल से जुड़ा है और उसे राजनैतिक संरक्षण मिलता है।
इसी का नतीजा है कि वाराणसी में गली-गली अवैध बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गई हैं।
जनता पर असर जान जोखिम में
अवैध निर्माण केवल नियमों की अवहेलना नहीं, यह जनता की जिंदगी के लिए खतरा है। संकरी गलियों में बहुमंजिला इमारतें दम घोंट रही हैं। अग्निशमन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सड़कें, नालियां और पार्किंग की जगहें कब्ज़ा ली जा रही हैं। बारिश में जलभराव और हादसों का खतरा बढ़ गया है। वीडीए आफिस से महज 1 किलोमीटर दूर होने पर भी अफसर क्यों नहीं पहुंचे? पुलिस ने दबंग को गिरफ्तार क्यों नहीं किया? तीन नोटिस के बावजूद निर्माण जारी क्यों रहा?
क्या इस पूरे खेल में रिश्वत और राजनीतिक दबाव शामिल है। क्या वाराणसी का भविष्य दबंगों के हाथों में है? यह घटना उस सच्चाई का आईना है जहां कानून सिर्फ कागजों में है। अफसर आदेश देते हैं, मगर मौके से गायब रहते हैं। कर्मचारी अपनी जान बचाकर भागते हैं।दबंग और माफिया प्रशासन को चैलेंज करके जीत जाते हैं। कहने को तो काशी के स्मार्ट सिटी बनाने का सपना है, लेकिन जमीनी हकीकत माफियाओं की नगरी है।
जनता का गुस्सा और अविश्वास
स्थानीय लोगों ने कहा कि यह पहली बार नहीं है। हर महीने कहीं न कहीं ऐसा हंगामा होता है। लोग सवाल पूछते हैं क्या सरकार सिर्फ कमजोरों पर सख्ती करती है। कानून सिर्फ छोटे दुकानदारों और गरीबों के लिए हैं।
क्या दबंगई ही असली सत्ता है। इस अविश्वास ने जनता को प्रशासन से दूर कर दिया है।
कानून की हार, दबंगई की जीत
अर्दली बाजार की घटना ने साबित कर दिया कि वाराणसी में कानून की किताबें मोटी जरूर हैं, लेकिन उनका वजूद कागज से बाहर नहीं निकलता। वीडीए का सील पट्टा दबंगई के आगे टिक नहीं सका। पुलिस की मौजूदगी में भी भवन मालिक की जीत हुई। जब सरकारी कर्मचारी ही सुरक्षित नहीं, तो आम नागरिक किस पर भरोसा करे।
* अर्दली बाजार में वीडीए टीम बंधक, भवन स्वामी की दबंगई
* अवर अभियंता समेत आधा दर्जन कर्मचारी फंसे
* अफसर मौके से नदारद, आफिस मात्र 1 किमी दूर
* पुलिस पहुंची लेकिन दबंग के आगे कानून झुक गया
” तीन नोटिस के बावजूद निर्माण जारी
* अवैध निर्माण माफिया, राजनीति और प्रशासन की मिलीभगत उजागर
* जनता की जान खतरे में, कानून पर अविश्वास गहरा