चन्दौली

चन्द्रप्रभा रेंजर अखिलेश दुबे की ढिठाई, अवैध खनन से चाट रहा मलाई

सेंचुरी की धरती पर माफियाओं का कब्जा, विभागीय मौन ने जंगल को बना दिया खदान

 

● वन विभाग की चुप्पी ने उजाड़ दी हरियाली

● चंद्रप्रभा की पहाड़ियों पर पत्थर माफियाओं का राज

● सेंचुरी में खुलेआम लूट जंगल बना खदान

 

चकिया, चंदौली। चंदौली की हरियाली अब पत्थर के धूल में दम तोड़ रही है। कभी तेंदुओं की गर्जना और मोरों की कूक से गूंजने वाली चंद्रप्रभा सेंचुरी आज ट्रैक्टरों की घरघराहट और हथौड़ों की ठक-ठक में दब चुकी है। शिकारगंज, अलीपुर भगड़ा, गायघाट और गनेशपुर की पहाड़ियां अब वन नहीं, खदान बन चुकी हैं और यह सब वन विभाग की नाक के नीचे हो रहा है। माफिया इतने बेखौफ कैसे हैं, सवाल यह है कि विभाग इतना मौन क्यों हैं। जब डोली संग व्यभिचारी हो तो दुल्हन कब तक सुरक्षित रहेगी यही हाल चन्द्रप्रभा रेंज के रेंजर अखिलेश कुमार दुबे का है दबे की कृपा से ही चंद्रप्रभा की घाटियों में अवैध खनन खुलेआम जारी है, ट्रैक्टर रोज निकलते हैं, और अधिकारी मीटिंग के बहाने बनाकर जिम्मेदारी से बच निकलते हैं। कानूनन प्रतिबंधित क्षेत्र में हो रही यह लूट केवल पर्यावरण नहीं, शासन की साख पर भी प्रहार है। आखिर कब तक जंगलों की हरियाली, अफसरों की खामोशी और माफियाओं की मिलीभगत की बलि चढ़ती रहेगी!

चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का सेंचुरी क्षेत्र

चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का सेंचुरी क्षेत्र, जो कभी हरियाली और वन्य जीवों के लिए जाना जाता था, आज पत्थर माफियाओं की खदान बन चुका है।रेंजर अखिलेश दुबे पैसे की हवस में अंधा व गूंगा व बहरा हो गया है इसकी छत्रछाया में शिकारगंज, अलीपुर भगड़ा, गायघाट और गनेशपुर की पहाड़ियों में दिनदहाड़े पत्थर तोड़े जा रहे हैं। ट्रैक्टर-ट्रॉलियां सुबह से शाम तक जंगल के रास्तों पर दौड़ रही हैं। यह सब उस क्षेत्र में हो रहा है जहां किसी भी प्रकार के खनन, खुदाई या भूमि दोहन पर कानूनन सख्त प्रतिबंध है। फिर भी विभागीय निगरानी शून्य है। आखिर इतनी बड़ी गतिविधि के बावजूद वन विभाग की आंखें क्यों बंद हैं?

विभाग की चुप्पी क्या मौन ही मिलीभगत

सूत्रों का कहना है कि ट्रैक्टरों की आवाज अब वन्य जीवों से ज्यादा सुनाई देती है। कई स्थानीय लोगों ने कैमरे में वीडियो भी रिकॉर्ड किए हैं, जिनमें साफ दिखता है कि पत्थर तोड़ने का काम दिन में हो रहा है। कई बार पहाड़ों के कटने की जानकारी के बाद भी, ट्रैक्टर रोज चल रहे हैं, विभाग के लोग आते तक नहीं। लगता है ऊपर से किसी की छत्रछाया है। उक्त बातें वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह महज लापरवाही है या किसी की मिलीभगत से पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है!

दिनदहाड़े ट्रैक्टर दौड़ रहे, अधिकारी मीटिंग में

सूत्रों के अनुसार, सुबह से शाम तक दर्जनों ट्रैक्टर पत्थरों से लदे हुए चंद्रप्रभा सेंचुरी की पहाड़ियों से निकलते हैं।
जब इस बाबत चंद्रप्रभा रेंजर अखिलेश दुबे से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि हम आज मीटिंग में हैं, बाद में मौके पर जाकर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह समस्या नई नहीं, महीनों से जारी है। अब तक विभाग की ओर से किसी ठोस कार्रवाई की खबर नहीं है। वास्तविकता यह है कि मीटिंग का यह बहाना अब खनन माफियाओं के लिए सुरक्षा कवच बन चुका है।

वन विभाग की जिम्मेदारी पर सवाल

सेंचुरी क्षेत्र की निगरानी और सुरक्षा वन विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है। लेकिन लगातार चल रहे खनन ने विभाग की साख पर बट्टा लगा दिया है। रेंजर से लेकर फॉरेस्ट गार्ड तक सभी पर सवाल उठ रहे हैं कि इतने बड़े पैमाने पर हो रहे खनन की जानकारी उन्हें कैसे नहीं होती। पर्यावरण कार्यकर्ता अरुण मिश्र की मानें तो अगर रोज 20 ट्रैक्टर निकलते हैं तो कोई तो गिनता होगा! अगर नहीं गिनता तो इसका मतलब साफ है खनन पर विभाग की मौन स्वीकृति है।

माफियाओं का नेटवर्क ऊपर तक फैली जड़ें

सूत्रों के अनुसार, पत्थर खनन के बाद यह माल पास के कस्बों और निर्माण स्थलों पर पहुंचाया जाता है। इस नेटवर्क में ट्रैक्टर मालिकों, स्थानीय ठेकेदारों और कुछ प्रभावशाली लोगों की भूमिका बताई जा रही है।
अवैध खनन का यह कारोबार लाखों रुपए प्रतिदिन का है। इससे न केवल सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि पर्यावरण की बर्बादी की कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकाना पड़ेगा। वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि ऊपर से संरक्षण न होता तो यह धंधा एक दिन भी नहीं चल सकता था।

पर्यावरण पर भयावह असर

चंद्रप्रभा सेंचुरी जैव विविधता का भंडार मानी जाती है। यहां तेंदुआ, नीलगाय, जंगली सूअर, मोर और कई दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि पहाड़ियों की कटान से मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो रही है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक रही है। भूजल स्तर नीचे जा रहा है और बरसात के पानी का संचयन रुक गया है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले वर्षों में यह पूरा इलाका मरुस्थलीय रूप ले सकता है। विशेषज्ञ डॉ. शुभ्रांशु त्रिपाठी की मानें तो वन केवल पेड़ नहीं होते, यह पारिस्थितिकी का संतुलन बनाए रखते हैं। जब आप पत्थर तोड़ते हैं, तो जमीन का कलेजा निकालते हैं। चंद्रप्रभा का पारिस्थितिक ह्रास अब शुरू हो चुका है।

* चंद्रप्रभा सेंचुरी क्षेत्र में अवैध पत्थर खनन तेजी से जारी

* शिकारगंज, अलीपुर भगड़ा, गायघाट और गनेशपुर में ट्रैक्टरों की दिनदहाड़े आवाजाही

* वन विभाग की चुप्पी पर ग्रामीणों और पर्यावरणविदों ने उठाए सवाल

* रेंजर का बयान मीटिंग के बाद कार्रवाई करेंगे, लेकिन महीनों से जारी गतिविधि

* अवैध खनन से मिट्टी की गुणवत्ता और जलस्रोत पर गहरा प्रभाव

* वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण अधिनियम का खुला उल्लंघन

* खनन माफियाओं के नेटवर्क में स्थानीय ठेकेदारों और प्रभावशाली लोगों की भूमिका

* ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से जांच और कठोर कार्रवाई की मांग की

* सामाजिक संगठनों का आरोप ऊपर से संरक्षण मिल रहा है।

* चंद्रप्रभा की हरियाली अब खनन माफियाओं की हवस में तब्दील।

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