बीमा कम्पनियों को जीएसटी स्लैब में मिली राहत,आम जन को मिलेगा फायदा या जारी रहेगी आफत ?
बीमा एजेंट ग्राहकों को क्या देंगे सही जानकारी

बीमा पर लगने वाला टैक्स हमेशा से आम लोगों के लिए बोझ माना जाता रहा है। भारत में लंबे समय से स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लिया जा रहा था। इसका सीधा मतलब यह था कि यदि कोई व्यक्ति 10 हजार रुपये का बीमा प्रीमियम देता था तो उसे अतिरिक्त 1800 रुपये टैक्स के रूप में देना पड़ता था। यह टैक्स धीरे-धीरे इतना भारी पड़ने लगा कि बीमा का उद्देश्य, यानी सुरक्षा और राहत, उल्टा महंगा सौदा लगने लगा। इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए बीमा प्रीमियम पर से जीएसटी पूरी तरह हटा दिया। यह निर्णय 22 सितंबर 2025 से लागू होगा और अब बीमा लेने वाले ग्राहकों को प्रीमियम के ऊपर कोई टैक्स नहीं देना होगा। सतही तौर पर देखें तो यह आम लोगों के लिए बड़ी राहत की तरह दिखता है।
हालांकि इस फैसले के भीतर पेचीदा पक्ष भी छिपा हुआ है। बीमा कंपनियां जब तक प्रीमियम पर जीएसटी वसूलती थीं, तब तक उन्हें अपने अन्य खर्चों पर चुकाए गए टैक्स को समायोजित करने का अधिकार था। इसे इनपुट टैक्स क्रेडिट कहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर बीमा कंपनी एजेंट को कमीशन देती है, किसी विज्ञापन पर खर्च करती है, दफ्तर का किराया चुकाती है या तकनीकी सेवाएं लेती है, तो उन सब पर भी जीएसटी लगता है। पहले वे इस जीएसटी को अपने द्वारा वसूले गए जीएसटी से एडजस्ट कर लेती थीं। अब जबकि जीएसटी पूरी तरह हटा दिया गया है, बीमा कंपनियां इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा पाएंगी। इसका सीधा अर्थ यह है कि उन्हें हर खर्च पर जीएसटी अलग से चुकाना होगा और इस अतिरिक्त बोझ को वह अपने ग्राहकों पर डालने का रास्ता तलाशेंगी।
यही कारण है कि कई विशेषज्ञों को यह डर सता रहा है कि निकट भविष्य में बीमा कंपनियां अपने बेस प्रीमियम को बढ़ा सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो सतही तौर पर टैक्स हटने के बावजूद आम आदमी को वास्तविक राहत नहीं मिलेगी। यह साफ तौर पर गेम है कि सरकार राहत का दिखावा करती है और कंपनियां दाम बढ़ाकर उस राहत को नकार देती हैं। टैक्स घटेगा लेकिन बीमा कंपनियां प्रीमियम बढ़ाकर वही पैसा वसूल लेंगी, तो असली फायदा आखिर किसे होगा।
सवाल उठता है कि क्या टैक्स छूट का लाभ सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना सुनिश्चित करने के लिए कोई निगरानी व्यवस्था है। बीमा प्रीमियम महंगा होने की वजह से बहुत से लोग बीमा कराने से कतराते हैं। सरकार का तर्क है कि जीएसटी हटाने से लोगों में बीमा लेने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और लंबी अवधि में इसका लाभ समाज को मिलेगा। लेकिन जब तक यह स्पष्ट न हो कि कंपनियां प्रीमियम दरें स्थिर रखेंगी, तब तक इस फैसले पर भरोसा करना कठिन है।
असल फायदा तभी होगा जब जीएसटी हटने के बाद प्रीमियम दरें वास्तव में कम दिखाई दें। अगर पहले किसी पॉलिसी पर सालाना 25 हजार रुपये चुकाने पड़ते थे और उसमें से लगभग 4,500 रुपये टैक्स था, तो अब वही पॉलिसी 25 हजार रुपये से घटकर 20,500 रुपये पर मिलनी चाहिए। लेकिन अगर कंपनियां अपनी लागत बढ़ने का हवाला देकर बेस प्रीमियम को फिर से 25 हजार तक पहुंचा दें, तो पूरा फैसला केवल कागजी राहत बन जाएगा।
सरकार ने टैक्स हटाकर एक अच्छा संदेश दिया है। लेकिन असली कसौटी यह होगी कि क्या कंपनियां इस अवसर का उपयोग लोगों को वास्तविक राहत देने के लिए करती हैं या मुनाफा बढ़ाने के लिए। आम लोगों को फायदा तभी होगा जब सरकार कंपनियों पर निगरानी रखे और उपभोक्ता यह महसूस करें कि उनका बीमा सस्ता और सुलभ हुआ है। वरना यह बदलाव केवल ख़बरों की सुर्खियों तक सीमित रह जाएगा।