मत्स्य विकास निगम के चेयरमैन रमाकांत ने लिया संकल्प, विभाग का होगा कायाकल्प
वीडीए के मानद सदस्य अम्बरीष सिंह भोला व्यक्त किया विचार,जल्द ही बदला बदला नजर आएगा निगम का किरदार

● मत्स्य पालन को मिलेगा नया आयाम, बीज से लेकर बीमा तक पर हुआ मंथन
● नवाचार, नीति और नियोजन से ‘ब्लू रिवोल्यूशन’ की दिशा में कदम
◆ वीरेंद्र पटेल
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में मत्स्य पालन केवल जीविका नहीं, अब आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बन रहा है। वाराणसी में बुधवार को आयोजित मत्स्य विकास निगम की समीक्षा और जनजागरूकता बैठक ने इस दिशा में नई ऊर्जा भर दी। कमिश्नरी ऑडिटोरियम में हुई इस बैठक में मत्स्य बीज की गुणवत्ता, उत्पादन बढ़ोतरी, बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, और सहकारिता के माध्यम से सशक्तिकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से मंथन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम के अध्यक्ष रमाकांत निषाद ने की, जबकि वाराणसी विकास प्राधिकरण के बोर्ड सदस्य अम्बरीष सिंह भोला और कैलाशपुरी मठ के अध्यक्ष श्याम सुंदर स्वामी ने भी अपने विचार रखे। बैठक में अधिकारियों, मत्स्यपालकों, सहकारी समितियों और निजी हैचरियों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
उच्च गुणवत्ता वाले मत्स्य बीज से बढ़ेगा उत्पादन, मिलेगा अधिक लाभ
मत्स्य विकास निगम के अध्यक्ष रमाकांत निषाद ने कहा कि राज्य भर में निगम की सभी हैचरियों और निजी मत्स्य पालकों को उच्च गुणवत्ता वाले मत्स्य बीज की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। कहा कि जब मत्स्य पालकों को समय पर, स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता का बीज मिलेगा, तब उत्पादन स्वाभाविक रूप से बढ़ेगा और लाभ दोगुना होगा। निषाद ने कहा कि निगम अब केवल बीज उत्पादन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि फीड, मत्स्य देखभाल, जल गुणवत्ता परीक्षण और बीज संवर्धन तकनीक को भी एकीकृत ढांचे में विकसित करेगा। इससे मत्स्यपालकों की निर्भरता घटेगी और प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में स्थायित्व आएगा। वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र और गाजीपुर जैसे जिलों में पिछले पांच वर्षों में मत्स्य उत्पादन में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। इसका श्रेय न केवल गुणवत्तापूर्ण बीज को जाता है, बल्कि मत्स्य संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन को भी।
नदियों के किनारे मत्स्य पालन को नई दिशा, आय और रोजगार दोनों में बढ़ोतरी
यह प्रस्ताव रखा गया कि नदियों के किनारे बसे मत्स्य समुदायों को विशेष सहायता योजना के तहत लाभान्वित किया जाए। रमाकांत निषाद ने कहा नदियों के किनारे मत्स्य पालन से न केवल रोजगार सृजित होगा बल्कि नदी तंत्र भी स्वच्छ रहेगा। पानी में जीवंतता बनी रहेगी और जैव-विविधता की रक्षा होगी। निगम के प्रयास से गंगा किनारे मछुआ समूहों को तालाब आधारित मत्स्य पालन के साथ-साथ केज कल्चर तकनीक से भी जोड़ा जा रहा है। यह तकनीक कम पानी और सीमित संसाधनों में भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम है। विशेष रूप से वाराणसी के राजघाट से लेकर लोहता बेल्ट तक कई समूहों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग दिया गया है। निषाद ने बताया कि निगम ने पिछले वर्ष गंगा मत्स्य मिशन के तहत लगभग 1.2 करोड़ मत्स्य बीज छोड़े थे, जिससे मत्स्य संसाधनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
बीमा योजना और कल्याण कोष से सुरक्षित होंगे मत्स्यपालक परिवार
मत्स्य पालन पेशा हमेशा जोखिम से जुड़ा रहा है। मौसम, जलप्रदूषण, या आकस्मिक दुर्घटनाओं को देखते हुए बैठक में मत्स्य दुर्घटना बीमा योजना पर विशेष चर्चा की गई। अध्यक्ष रमाकांत निषाद ने कहा कि बहुत से मत्स्य पालक अभी भी बीमा योजना से अनभिज्ञ हैं, इसलिए इसका व्यापक प्रचार-प्रसार जरूरी है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि हर ब्लॉक स्तर पर मत्स्य समूहों को योजना की जानकारी दी जाए और बीमा पंजीकरण शिविर आयोजित किए जाएं। इसके अलावा, मुख्यमंत्री द्वारा स्थापित उत्तर प्रदेश मत्स्य पालन कल्याण कोष का भी विस्तार किया जा रहा है।
इस कोष से मत्स्य पालकों को स्वास्थ्य सुरक्षा, शिक्षा सहायता, आकस्मिक मृत्यु पर आर्थिक मुआवजा और महिला मत्स्य पालकों को विशेष लाभ प्रदान किया जाएगा। कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में अब तक 12 हजार से अधिक मत्स्यपालक इस योजना के तहत पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश वाराणसी मंडल के हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड और एनएफडीबी योजनाओं से आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
बैठक में वाराणसी विकास प्राधिकरण के मनोनीत सदस्य अम्बरीष सिंह भोला ने द्वारा कहा गया कि मत्स्य पालन को कृषि के समान दर्जा मिलने के बाद अब मत्स्य पालक भी किसान क्रेडिट कार्ड के पात्र हैं। भोला ने बैंक अधिकारियों से समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता बताई ताकि मत्स्य समूहों को ऋण सुविधा सरलता से उपलब्ध हो सके। कहा कि मत्स्य पालक अगर पूंजीगत सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन दोनों पाएं, तो आने वाले तीन वर्षों में प्रदेश मत्स्य उत्पादन में देश के शीर्ष तीन राज्यों में शुमार होगा। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि मत्स्य पालन अवसंरचना, मत्स्य विपणन केंद्र, और ठंडे भंडारण की सुविधाओं को सुदृढ़ किया जा रहा है। प्रदेश में 25 से अधिक मत्स्य क्लस्टर प्रोजेक्ट्स पर काम जारी है, जिसमें वाराणसी भी शामिल है।
सहकारिता से सशक्त होगा मत्स्य समुदाय, बनेगा आत्मनिर्भर मत्स्य भारत
बैठक में सहकारिता के मॉडल को मत्स्य क्षेत्र के विकास का मूल आधार बताया गया। निषाद ने कहा कि सहकारी समितियों के माध्यम से मत्स्य पालकों को एकजुट किया जाएगा ताकि वे संगठित रूप से खरीद-बिक्री, बीज उत्पादन, विपणन और प्रोसेसिंग में भागीदारी कर सकें। सहकारिता ही आत्मनिर्भरता का सबसे मजबूत माध्यम है। जब मत्स्य पालक खुद अपना संगठन चलाएंगे, तो बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और मुनाफा सीधे उनके हाथों में आएगा। भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य में फिशर मैन प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन गठित किए जा रहे हैं। इन संगठनों को न केवल पंजीकरण दिया जाएगा बल्कि प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और विपणन मंच भी प्रदान किया जाएगा। निगम का लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में प्रदेश के हर ब्लॉक में कम से कम एक मत्स्य सहकारी समिति सक्रिय रूप से कार्य करे। इस दिशा में वाराणसी, जौनपुर, आज़मगढ़, भदोही और चंदौली को मॉडल जिले के रूप में चुना गया है।
* उच्च गुणवत्ता वाला मत्स्य बीज निगम की सभी हैचरियों से समय पर आपूर्ति।
* नदी किनारे मत्स्यपालन को बढ़ावा रोजगार व स्वच्छता दोनों का लाभ।
* मत्स्य बीमा योजना का विस्तार मत्स्यपालकों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित।
* किसान क्रेडिट कार्ड सुविधा बैंक समन्वय से ऋण प्राप्ति सुगम।
* मत्स्य अवसंरचना, क्लस्टर और कोल्ड स्टोरेज निर्माण।
* मत्स्य पालकों को संगठित और सशक्त करने का प्रयास।
* कर्मचारियों के लिए सातवां वेतनमान लागू हो जिससे निगम के कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि।
* वाराणसी से ‘ब्लू रिवोल्यूशन’ की नई लहर प्रदेश के मत्स्य क्षेत्र में ऐतिहासिक संभावना।
भविष्य की दिशा ‘ब्लू इकॉनमी’ की राह पर पूर्वांचल
बैठक के अंत में अध्यक्ष रमाकांत निषाद ने कहा कि आने वाले समय में मत्स्य पालन केवल उत्पादन का क्षेत्र नहीं रहेगा बल्कि ‘ब्लू इकॉनमी’ के रूप में उभरेगा। कहा कि मत्स्य पालन, मत्स्य पर्यटन, मत्स्य उत्पादों के निर्यात और प्रोसेसिंग यूनिट्स से जुड़कर पूर्वांचल के युवा आत्मनिर्भर बन सकते हैं। रमाकांत निषाद ने कहा कि वाराणसी से शुरू हुआ यह अभियान एक दिन पूरे उत्तर भारत में मछुआ समुदाय की आर्थिक आजादी का प्रतीक बनेगा।