वीडीए का त्रिमूर्ति हास्पिटल पर फंदा ,डॉक्टर राममूर्ति सिंह का किरदार है गन्दा
अस्पताल के अवैध निर्माण पर जोनल अधिकारी शिवाजी मिश्रा ने दिया 7 दिन का अल्टीमेटम ,जेई रोहित कुमार ने भी दिखाए कड़े तेवर

- मानचित्र स्वीकृति से छेड़छाड़: बी+जी+2 के बाद भी तृतीय तल खड़ा
- शपथ पत्र पर मांगी 30 दिन की मोहलत, लेकिन अवैधता जस की तस
- वीडीए प्रवर्तन टीम का निरीक्षण अस्पताल प्रबंधन ने नियम तोड़ा, संचालन जारी
- अस्पताल प्रबंधन को अंतिम चेतावनी 7 दिन में हटाएं अवैध निर्माण
- स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर मुनाफा खोरी और कानून का उड़ा रहे मजाक
- प्राधिकरण की ‘ढीली नीतियां’ और प्रभावशाली लोगों की पकड़
- वीडीए से बिना मानचित्र स्वीकृति निर्माण पर सख्त रोक
वाराणसी। वीडीए की कड़ाई के बावजूद अस्पताल प्रबंधन की दबंगई ने कानून को खुली चुनौती दे डाली है। त्रिमूर्ति हास्पिटल के संचालकों ने स्वीकृत मानचित्र की धज्जियां उड़ाते हुए न केवल अवैध निर्माण किया, बल्कि उसे ठेठ व्यावसायिक मुनाफाखोरी का जरिया बना डाला। अब जब प्राधिकरण ने सात दिन का अंतिम अल्टीमेटम जारी किया है, तब यह सवाल गूंज रहा है। क्या सचमुच वीडीए इस अवैध साम्राज्य पर कार्रवाई कर पायेगा या चिकित्सक की दबंगई के लाचार हो जायेगा।
मानचित्र स्वीकृति से छेड़छाड़: बी+जी+2 के बाद भी तृतीय तल खड़ा
वाराणसी विकास प्राधिकरण से प्रतिमा सिंह और उनके पति डॉ.राममूर्ति सिंह को बी+जी+2 (बेसमेंट + ग्राउंड + दो तल) तक निर्माण की अनुमति मिली थी। लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इस स्वीकृत मानचित्र की धज्जियां उड़ाते हुए तृतीय तल पर भी अवैध निर्माण करा लिया। यह निर्माण पूरी तरह अशमनीय श्रेणी में आता है। सवाल उठता है कि आखिरकार किसके बल पर यह अवैध निर्माण बिना किसी रोक-टोक के खड़ा हो गया?
शपथ पत्र पर 30 दिन की मांगी मोहलत, लेकिन अवैधता जस की तस
वीडीए के दबाव में अस्पताल प्रबंधन ने शपथ पत्र दिया था कि वह 30 दिनों के भीतर अवैध निर्माण को स्वयं हटा देंगे। यह समय सीमा 1 सितंबर 2025 को समाप्त हो गई। मगर समय बीतने के बावजूद न तो अवैध निर्माण हटाया गया और न ही संचालन रोका गया। उल्टे अस्पताल का धंधा जारी रहा। यह स्पष्ट करता है कि अस्पताल प्रबंधन कानून को केवल कागजी औपचारिकता मानता है और वीडीए की चेतावनियों को हल्के में लेता है।
वीडीए प्रवर्तन टीम का निरीक्षण अस्पताल प्रबंधन ने नियम तोड़े
1 सितंबर की समय सीमा पूरी होने के बाद वीडीए प्रवर्तन टीम मौके पर पहुंची। निरीक्षण में पाया गया कि तृतीय तल का अवैध निर्माण जस का तस मौजूद है और अस्पताल का संचालन बिना किसी भय के हो रहा है। मौके पर जोनल अधिकारी शिवजी मिश्रा, अवर अभियंता रोहित कुमार और प्रवर्तन दल मौजूद रहे।
इस निरीक्षण से साफ हो गया कि प्रबंधन ने न केवल नियम तोड़े, बल्कि वीडीए को सीधी चुनौती दे डाली है।
अस्पताल प्रबंधन को अंतिम चेतावनी 7 दिन में हटाएं अवैध निर्माण
निरीक्षण के बाद अस्पताल प्रबंधन को 7 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। साफ कहा गया है कि यदि सात दिनों में अशमनीय निर्माण नहीं हटाया गया, तो प्राधिकरण विधिक कार्रवाई करेगा। इसमें न केवल अवैध निर्माण गिराना शामिल होगा, बल्कि विधि सम्मत मुकदमा भी दर्ज कराया जायेगा। अब देखना यह है कि प्राधिकरण के कठोर रुख आगे अस्पताल प्रबंधन फिर हमेशा की तरह ‘समझौता संस्कृति’ का खेल करने में कामयाब हो जायेगा।
स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर मुनाफा खोरी
त्रिमूर्ति हॉस्पिटल का मामला यह भी उजागर करता है कि कैसे स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर व्यावसायिक संस्थान मुनाफा खोरी की जुगाड़ में कानून को ताक पर रख देते हैं। मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर अस्पताल प्रशासन पैसा कमाता है और जब निर्माण की वैधता की बात आती है तो नियमों का मखौल उड़ाता है।
प्राधिकरण की ‘नीतियां’ और प्रभावशाली लोगों की पकड़
वाराणसी विकास प्राधिकरण के इतिहास पर नजर डालें तो साफ है कि प्रभावशाली और रसूखदार लोगों पर कार्रवाई का रुख हमेशा ढीला पड़ जाता है। दर्जनों अवैध निर्माण सालों तक खड़े रहते हैं, नोटिस जारी होते हैं और कार्रवाई होती है। त्रिमूर्ति हास्पिटल का मामला भी उसी पैटर्न को दोहराता दिख रहा है। सवाल उठता है कि क्या इस बार कोई ठोस कार्रवाई होगी या फिर वही ‘ढाक के तीन पात’?
बिना मानचित्र स्वीकृति निर्माण पर सख्त रोक
वीडीए उपाध्यक्ष ने अपील की है कि बिना मानचित्र स्वीकृति कोई भी निर्माण कार्य न किया जाए। अन्यथा, कठोर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन जनता का अनुभव कहता है कि प्राधिकरण की अपीलें केवल कागजी खानापूर्ति होती हैं। असल समस्या यह है कि जब तक अवैध निर्माण में प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत नहीं होती, तब तक कोई निर्माण संभव ही नहीं है। ऐसे में जनता के सामने यह सवाल है कि कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी समय के साथ ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
* त्रिमूर्ति हॉस्पिटल ने स्वीकृत मानचित्र की अवहेलना करते हुए अवैध तृतीय तल का निर्माण किया।
* शपथ पत्र में 30 दिन की मोहलत ली गई, लेकिन अवैध निर्माण नहीं हटाया गया।
* समय सीमा समाप्त होने पर भी अस्पताल का संचालन धड़ल्ले से जारी रहा।
* वीडीए प्रवर्तन टीम ने निरीक्षण कर अवैधता पकड़ी।
* अस्पताल प्रबंधन को 7 दिन का अंतिम अल्टीमेटम जारी।
* अवैध निर्माण न हटाने पर विधिक कार्रवाई होगी।
अवैध निर्माण और अस्पताल लॉबी का ‘सफ़ेदपोश साम्राज्य’
वाराणसी में त्रिमूर्ति हास्पिटल का मामला कोई अकेली घटना नहीं है। यह उस गहरी बीमारी का लक्षण है, जिसमें प्रशासन और निजी अस्पतालों की लॉबी मिलकर कानून को ठेंगा दिखाती है। सवाल यह है कि जिस प्राधिकरण ने बी+जी+2 का मानचित्र पास किया था, उसी के रहते तृतीय तल का अवैध निर्माण कैसे खड़ा हो गया? क्या यह बिना अधिकारियों की ‘मूक स्वीकृति’ के संभव था?
कागज पर नोटिस, जमीन पर अवैध साम्राज्य
वीडीए की कार्यशैली का सबसे बड़ा सच यही है कि उसका कानून केवल गरीब और कमजोरों पर चलता है। गली-मोहल्लों में छोटे दुकानदारों की झोपड़ी या आमजन का एक कमरा गिराने में प्राधिकरण की पूरी फौज उतर आती है। लेकिन जब बात रसूखदारों और सफेदपोशों की आती है तो कार्रवाई ‘नोटिस दर नोटिस’ तक ही सिमट जाती है। त्रिमूर्ति हास्पिटल इसका ताज़ा उदाहरण है। वर्षों से चल रहे इस अवैध निर्माण केवल निरीक्षण, चेतावनी और मोहलत का खेल बनाकर रखा गया।
अस्पताल लॉबी की दबंगई और मरीजों की मजबूरी
निजी अस्पताल आज समाज में सेवा के नाम पर धंधा कर रहे हैं। मरीजों की मजबूरी को हथियार बनाकर ये संस्थान न सिर्फ इलाज के नाम पर जेब काटते हैं बल्कि निर्माण और संचालन में भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं। त्रिमूर्ति हास्पिटल ने जिस बेखौफ अंदाज़ में तृतीय तल खड़ा कर लिया, वह इस दबंगई का जीता-जागता उदाहरण है। यह साफ है कि उन्हें भरोसा है।
प्रशासनिक मिलीभगत का खुला सच
यह मान लेना भोलेपन होगा कि अस्पताल प्रबंधन ने यह अवैध निर्माण अधिकारियों की नज़र बचाकर किया। वाराणसी जैसे शहर में ईंट पर ईंट रखने से पहले स्थानीय स्तर पर खबर पहुंच जाती है। फिर महीनों तक तीन मंजिला अवैध निर्माण खड़ा हो गया और प्राधिकरण ‘अनजान’ बना रहा यह कहानी खुद ब खुद सब कुछ बयान कर देती है। साफ है कि यह खेल मिलीभगत और संरक्षण के बिना संभव नहीं। त्रिमूर्ति हास्पिटल का यह मामला सिर्फ एक इमारत का विवाद नहीं है, बल्कि कानून के अस्तित्व, प्रशासन की साख का प्रश्न है। यदि प्राधिकरण वास्तव में कानून का राज स्थापित करना चाहता है तो उसे इस अवैध निर्माण पर बुलडोज़र चलाना ही होगा।