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मौत का धंधा : वाराणसी का एपेक्स हॉस्पिटल बना कसाईखाना,डॉक्टर संतोष बस पैसे का है दीवाना

  • पुलिस-प्रशासन और मंत्रियों की सरपरस्ती!
  • कसाईखाना बना एपेक्स, इलाज नहीं मौत बांटी जाती है
  • एफआईआरों की भरमार, लेकिन कार्रवाई हमेशा शून्य
  • सीएमओ संदीप चौधरी की कमेटियां, जाँच का ड्रामा, नतीजा गोल
  • डॉ.पीयूष राय वो बाबू संजय साहू बने वसूली के ठेकेदार, सुविधा शुल्क का खेल
  • डॉ. पीयूष राय की अगुवाई में लूट और मौत का नेटवर्क
  • सत्ता का वरदहस्त अनुप्रिया पटेल और स्वतंत्र देव सिंह तक पहुंचती डोर
  • मौत छुपाने के लिए बिल, परिवारों का गुस्सा और पुलिस की ढाल
  • सरकार कब जागेगी? अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर हत्यारों को जेल कब?

तुषार मौर्य

वाराणसी। भिखारीपुर स्थित एपेक्स हॉस्पिटल अब महज इलाज का केंद्र नहीं, बल्कि मौत का अड्डा बन चुका है। मरीजों की जिंदगी यहां डॉक्टरों और प्रबंधन की लापरवाही, मोटे बिल और खुले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। हैरानी की बात यह है कि अस्पताल के खिलाफ दर्जनों एफआईआर और हंगामों के बावजूद कार्रवाई हर बार ‘सुविधा शुल्क’ की भेंट चढ़कर ठंडे बस्ते में चली जाती है। सूत्रों का दावा है कि इस गोरखधंधे का नेटवर्क अस्पताल प्रबंधन, सीएमओ डॉ.संदीप चौधरी, डॉ.पीयूष राय, सीएमओ ऑफिस का बाबू संजय साहू व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल व प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के वरदहस्त में चल रहा है। प्रश्न उठता है कि जब मौत का सौदा खुलेआम हो रहा है तो जनता की रक्षा कौन करेगा!भिखारीपुर स्थित एपेक्स हॉस्पिटल अब किसी अस्पताल की परिभाषा को नहीं, बल्कि मौत के धंधे को परिभाषित करता है। इलाज के नाम पर लूट, मरीजों की जान से खिलवाड़ और मौतों को “हार्ट अटैक” बताकर दबा देना रोज का खेल बन गया है। दर्जनों एफआईआर, बार-बार हुए हंगामे और मीडिया में उजागर होती घटनाओं के बावजूद अस्पताल आज भी चालू है। कारण साफ है कि इस अस्पताल को सिर्फ पुलिस-प्रशासन ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग और सत्ता के ताकतवर नेताओं का वरदहस्त हासिल है।

कसाईखाना बना एपेक्स हॉस्पिटल

भिखारीपुर का एपेक्स हॉस्पिटल बीते कई वर्षों से विवादों में है। आए दिन मरीजों की मौत पर हंगामे होते हैं, कभी सड़क जाम होता है तो कभी धरना। लेकिन अस्पताल प्रबंधन हर बार बच निकलता है। डॉक्टरों की लापरवाही, गलत इलाज और बिलों की लूट ने इस अस्पताल को मरीजों के लिए ‘कसाईखाना’ बना दिया है। अध्यापक सुजीत कुमार वर्मा जिनकी जान केवल इसलिए चली गई क्योंकि डॉक्टरों ने फ्रैक्चर जैसे मामूली केस को मौत में बदल दिया।

एफआईआरों का ढेर, लेकिन कार्रवाई शून्य

एपेक्स हॉस्पिटल के खिलाफ अब तक कई एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। हर बार जब मरीज की मौत होती है, परिजन शिकायत लिखाते हैं। पुलिस मामला दर्ज करती है, लेकिन उसके बाद फाइलें ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। कार्रवाई न होना इस बात का सबूत है कि अस्पताल को ऊपर तक संरक्षण मिला हुआ है। जिन अपराधों में डॉक्टरों को जेल में होना चाहिए, उनमें वे आज भी आराम से ऑपरेशन थिएटर में ‘मौत का सौदा’ कर रहे हैं।

सीएमओ संदीप चौधरी की जांच का ड्रामा

स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि ऐसे अस्पतालों पर कठोर कार्रवाई करे। लेकिन वाराणसी के सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी हर बार वही पुराना खेल खेलते हैं। घटना होने पर त्वरित कार्रवाई के नाम पर जाँच कमेटी गठित होती है। कुछ दिनों बाद रिपोर्ट आती है और परिणाम वही कार्रवाई शून्य। दरअसल, यह पूरा ड्रामा महज जनता को शांत करने के लिए किया जाता है। सच यह है कि अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग की गहरी साठगांठ है।

सुविधा शुल्क का चलता है गोरखधंधा

सूत्रों का दावा है कि एपेक्स हॉस्पिटल से लेकर सीएमओ ऑफिस तक हर मामले में सुविधा शुल्क चलता है। इस खेल का असली ठेकेदार बताया जाता है सीएमओ कार्यालय का बाबू संजय साहू। जब भी कोई बड़ी शिकायत आती है, अस्पताल प्रबंधन लाखों रुपये ‘सेटिंग’ में लगाता है और मामला हमेशा की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। इस पैसों की चैन का फायदा सिर्फ बाबुओं को ही नहीं, बल्कि बड़े अधिकारियों तक जाता है।

डॉ. पीयूष राय की अगुवाई में चलता है वसूली का खेल

किसी भी हॉस्पिटल में कोई विवाद हो तो उसके नेटवर्क की कमान दीप्ति सीएमओ डॉ.पीयूष राय संभालते हैं। उन्हें अस्पतालो से वसूली का मास्टरमाइंड कहा जाता है। रिपोर्ट के नाम पर वही काम करते हैं जो प्रबंधन चाहता है। डिप्टी सीएमओ डॉ.राय का सीधा संपर्क अस्पतालों से होता है और यहीं से सुविधा शुल्क का रास्ता तय होता है। जिन डॉक्टरों का काम मरीज बचाना होता है, वे आज मौत का ठेका लेकर बैठे हैं।

सत्ता का वरदहस्त

सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे अस्पताल खुलेआम मौत का सौदा कर कैसे चल रहे हैं? जवाब है सत्ता का वरदहस्त। सूत्रों का कहना है कि एपेक्स हॉस्पिटल के पीछे केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और प्रदेश सरकार के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का सीधा संरक्षण है। यही कारण है कि किसी भी जांच में अस्पताल प्रबंधन हमेशा बच निकलता है। जब नेताओं की छतरी हो तो डॉक्टर और प्रबंधन को कानून का कोई डर नहीं होता।

मौत छुपाने का खेल और बिल का तमाशा

अध्यापक सुजीत कुमार की मौत के बाद परिजनों को सच्चाई बताने के बजाय अस्पताल ने 80 हजार रुपये का बिल थमा दिया। यह केवल लूट नहीं बल्कि निर्लज्जता की पराकाष्ठा है। मौत को ‘हार्ट अटैक’ बता कर लापरवाही छुपाई गई और परिवार को बाहर बैठा दिया गया। यही पैटर्न हर बार दोहराया जाता है, मौत होगी, लीपापोती होगी, और मोटा बिल पकड़ा दिया जाएगा।

जनता का गुस्सा और पुलिस की ढाल

सुजीत की मौत के बाद परिजनों और ग्रामीणों ने अस्पताल गेट बंद कर धरना दिया, नारेबाजी की और सड़क जाम कर दिया। भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी ‘ये डॉक्टर नहीं, कसाई हैं!’ लेकिन जब पुलिस पहुंची तो उसका रवैया भी प्रबंधन को बचाने वाला था। एसीपी और थाना पुलिस का काम जनता को शांत करना था, न कि अस्पताल पर कार्रवाई करना। यही कारण है कि लोग मानते हैं कि पुलिस इन मौत बांटने वाले अस्पतालों की सुरक्षा गार्ड बन चुकी है।

स्वास्थ्य तंत्र की नंगी सच्चाई

एपेक्स हॉस्पिटल का मामला केवल एक अस्पताल की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की नंगी सच्चाई है। निजी अस्पतालों ने इलाज को धंधा बना लिया है। बीमार को डराना, मोटा बिल वसूलना और लापरवाही से मौत के बाद लीपापोती करना अब आम हो चुका है। स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता और नेताओं की सरपरस्ती ने हालात को इतना बदतर कर दिया है कि अब हर परिवार खतरे में है।

कब जागेगी सरकार

अध्यापक सुजीत वर्मा की मौत केवल एक हादसा नहीं, बल्कि जनता को चेतावनी है। अगर ऐसे अस्पतालों का लाइसेंस रद्द नहीं हुआ, डॉक्टरों पर हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ और स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को जेल नहीं भेजा गया, तो कल हर किसी की बारी आ सकती है। सरकार को तय करना होगा कि वह जनता के साथ है या मौत का धंधा चलाने वाले इन अस्पतालों के साथ।

* एपेक्स हॉस्पिटल वर्षों से विवादों में, मौतों का इतिहास रहा है।
* अस्पताल के खिलाफ दर्जनों एफआईआर दर्ज, लेकिन कार्रवाई हर बार शून्य।
* सीएमओ संदीप चौधरी केवल जांच कमेटी’ बनाते हैं, नतीजा हमेशा गोल।
* बाबू संजय साहू पर सुविधा शुल्क लेकर फाइलें दबाने का आरोप।
* डिप्टी सीएमओ डॉ.पीयूष राय की अगुवाई में लूट और मौत का नेटवर्क चलता है।
* अस्पताल को केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का वरदहस्त।
* मौत छुपाने के लिए झूठी कहानियां और भारी-भरकम बिल का खेल।
* पुलिस-प्रशासन की भूमिका अस्पताल बचाने वाली, जनता को दबाने वाली।
* यह केवल अस्पताल का नहीं बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र का काला सच है।
* कठोर कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले दिनों में और लाशें मिलेंगी।

 

अनुप्रिया पटेल केंद्रीय राज्यमंत्री, व स्वतंत्र देव सिंह कैबिनेट मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार के एपेक्स हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर संतोष पटेल पर वरदहस्त,रोगी व परिजन त्रस्त
ब्रजेश पाठक जी ऐसे हॉस्पिटल पर कब होगी कार्यवाही

पुलिस-प्रशासन, मंत्री और अब स्वास्थ्य मंत्री की चुप्पी भी सवालों के घेरे में!

सत्ता का वरदहस्त केंद्रीय मंत्री से लेकर बृजेश पाठक तक संदिग्ध चुप्पी

 

वाराणसी। भिखारीपुर स्थित एपेक्स हॉस्पिटल का नाम सुनते ही मरीजों के परिजन सिहर उठते हैं। वजह साफ है जहां इलाज नहीं, मौत का सौदा होता है। डॉक्टरों की लापरवाही, फर्जी इलाज और मोटे बिल इस अस्पताल की पहचान बन चुके हैं। राजातालाब के अध्यापक सुजीत कुमार वर्मा की जान केवल इसलिए गई क्योंकि अस्पताल ने सामान्य फ्रैक्चर को हार्ट अटैक की कहानी में बदल दिया। बीएचयू से रेफर होने के बाद 7 सितंबर को सुजीत को एपेक्स लाया गया। 9 सितंबर को ड्रेसिंग के दौरान उन्हें हार्ट अटैक बता कर सीसीयू में रख दिया गया और 10 सितंबर को मृत घोषित कर दिया। इस खेल की डोर केवल जिला स्तर तक सीमित नहीं है। अस्पताल को केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का वरदहस्त बताया जाता है। और अब सवाल प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री व उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक पर भी है। उनको सीएमओ और डिप्टी सीएमओ की करतूतों की पूरी जानकारी होने के बावजूद उन्होंने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। यह चुप्पी उनकी भूमिका को संदिग्ध बनाती है और जनता के मन में यह सवाल उठाती है क्या स्वास्थ्य मंत्री भी इन मौत बांटने वाले अस्पतालों की ढाल बने हुए हैं?

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