अंततः “अचूक संघर्ष”की खबर पर हुई कार्रवाई,बेईमान लम्पट, उदण्ड, चोर, घूसखोर टीसी बीएन सिंह की शर्मनाक विदाई

~ ईमानदारी की ओट में भ्रष्टाचार का साम्राज्य
~ मोहनलालगंज हादसे के ‘मौत के सौदागर’ था आयुक्त!
~ आयुक्त कार्यालय बना था ‘नारायणी कोठा’, हर फाइल की कीमत थी तय
~ पोस्टिंग का खेल सिपाही से पीटीओ तक लगती थी बोली
~ महीना वसूली का सिंडिकेट, नोटों पर रुकती थीं जांच फाइलें
~ 30 स्लीपर बसों में कागजी गोलमाल, महोबा से बरेली तक ‘रेट कार्ड’ था लागू
~ आईडी प्रूफ के दुरुपयोग से लेकर क्लीनचिट तक भ्रष्टाचार में डूबा था परिवहन कार्यालय
~ योगी के ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ पर चढ़ती रही बलि, आखिरकार बेनकाब हुआ सिस्टम
नैमिष प्रताप सिंह
लखनऊ (उत्तर प्रदेश): लंबे समय से परिवहन विभाग के भीतर पल रहे भ्रष्टाचार की जिस सड़ी-गली दीवार को हर कोई देख तो रहा था, पर कोई हिला नहीं पा रहा था, उसे आखिरकार ‘अचूक संघर्ष’ की कलम ने धराशाई कर दिया। खुद को ईमानदारी का प्रतीक बताकर कुर्सी पर विराजमान रहे आयुक्त बी.एन. सिंह का असली चेहरा बेनकाब हो गया। सेवानिवृत्ति से महज 15 दिन पहले हुआ उनका तबादला केवल एक रूटीन प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि उस पूरे ‘नजराना तंत्र’ पर करारा प्रहार है जिसने विभाग को मौत और वसूली का अड्डा बना दिया था।
मोहनलालगंज बस हादसे में जिंदा जल गए पांच निर्दोष लोग लेकिन दोषियों को मिली थी ‘क्लीनचिट’। कारण साफ था हर जांच फाइल नोटों के जखीरे पर टिकती थी और हर आदेश की अपनी एक तय कीमत होती थी। सिपाही से लेकर पीटीओ तक की पोस्टिंग ‘नगर वधुओं’ की तरह नीलाम होती थी, और 50 फीसदी वसूली सीधे आयुक्त की जेब में जाती थी।
‘ईमानदारी’ के चोले के नीचे छिपा यह भ्रष्टाचार विभाग के सिस्टम को नहीं, बल्कि मौत का जाल बन चुका था। 30 से अधिक स्लीपर बसों के कागजी गोलमाल से लेकर आईडी प्रूफ के आपराधिक दुरुपयोग और महोबा से बरेली तक ‘रेट कार्ड राज’ चलाने तक हर मामले ने यह साबित कर दिया कि परिवहन विभाग सिंह के कार्यकाल में एक ‘भ्रष्टाचार का सिंडिकेट’ बन चुका था। यही कारण है कि उनका तबादला सिर्फ एक अफसर का ट्रांसफर नहीं, बल्कि उस लाबी में भूचाल है जो वर्षों से ईमानदारी की चादर में भ्रष्टाचार को ढककर चलती रही।
अचूक संघर्ष की कलम का असर, कलम की ताकत बनाम कुर्सी का आतंक
कभी-कभी एक कलम पूरे साम्राज्य को हिला देती है। अचूक संघर्ष की कलम ने वही कर दिखाया।
जिस बी.एन. सिंह को परिवहन विभाग का सबसे ‘ईमानदार आयुक्त’ बताकर पेश किया गया, जिनके नाम पर अफसरों से लेकर कर्मचारियों तक कहानियां गढ़ी जाती थीं, वही सिंह भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सौदागर साबित हुए। उनकी कुर्सी से चलता था नजराना तंत्र, उनकी मेज पर तय होता था हर जांच का दाम, उनकी स्वीकृति के बिना विभाग का पत्ता तक नहीं हिलता था। जब अचूक संघर्ष ने सच्चाई उजागर की, तो सेवानिवृत्ति से महज पंद्रह दिन पहले उनका तबादला कर दिया गया। यह तबादला सिर्फ एक अफसर की अदला-बदली नहीं, बल्कि उस पूरे भ्रष्ट तंत्र की हार थी जिसने निर्दोषों की जान तक को पैसों में तोल दिया।
मोहनलालगंज हादसा और मौत का सौदागर
मोहनलालगंज बस हादसा उत्तर प्रदेश के हालिया इतिहास का सबसे भयावह हादसों में से एक था।
उस दिन बस में आग लगने से पांच निर्दोष यात्रियों की ज़िंदगी पलभर में राख हो गई। चीखें उठीं, परिवार तबाह हो गए। लेकिन हादसे की जांच रिपोर्ट में एक पंक्ति थी जिसने सबको हैरान कर दिया कि बस मालिक की कोई लापरवाही नहीं, फिटनेस और अनुमति नियमों के अनुसार है। क्योंकि जांच की हर फाइल पर नोटों का जखीरा रखा गया था। परिवहन आयुक्त बी.एन. सिंह की मेज पर तय होता था कि कौन जिम्मेदार है और कौन ‘निर्दोष’। हादसे के गुनहगार बस मालिक और अधिकारी बच निकले, लेकिन मौत के सौदागर बी.एन. सिंह के लिए यह भी एक अवसर था मुआवजे से पहले वसूली का। अचूक संघर्ष ने जब यह सवाल उठाया कि पांच लोग जिंदा कैसे जल गए, तो आखिर दोषियों को बचाने की जरूरत क्यों पड़ी, तब पूरे सिस्टम में खामोशी छा गई। यह वही खामोशी थी जिसमें गुनाह दफन होते रहे, और परिवहन आयुक्त की जेब भरती रही।
आयुक्त कार्यालय या ‘नारायणी कोठा’?
कहा जाता है कि विभाग का दफ्तर नीतियों का मंदिर होता है। लेकिन बी.एन. सिंह के राज में परिवहन आयुक्त का कार्यालय एक ‘नारायणी कोठा’ बन चुका था। हर फाइल की कीमत लगती थी, हर आदेश की बोली लगती थी, हर जांच का सौदा होता था। अंदर जाते ही साफ दिखाई देता था मेज के नीचे से फाइलों के साथ लिफाफे भी सरकाए जाते थे। सिपाही से लेकर पीटीओ तक की पोस्टिंग ‘नगर वधुओं’ की तरह नीलाम होती थी। बोली लगती, पैसा चढ़ता और आदेश निकलता। एक व्यवस्थित प्रणाली बना दी गई थी। 50 फीसदी रकम बी.एन. सिंह की जेब में, बाकी नीचे तक बंट जाती थी। बी.एन.सिंह सिर्फ आयुक्त नहीं, बल्कि इस कोठे के ‘राजा बाबू’ बन बैठे थे।
ट्रांसफर सीजन यानी ‘मौसम-ए-वसूली’
जैसे ही विभाग में ट्रांसफर सीजन आता, बी.एन. सिंह का कार्यालय एक मंडी में बदल जाता। यहां अफसरों की नीयत नहीं, बल्कि जेब की मोटाई तय करती थी कि किसे कहां पोस्टिंग मिलेगी। ज्यादा रकम दी तो मलाईदार जगह, कम रकम दी तो सजा जैसी पोस्टिंग और अगर इंकार किया तो निलंबन या प्रताड़ना। इस पूरे खेल को विभाग के लोग ‘मौसम-ए-वसूली’ कहने लगे थे। हर साल यह सीजन आता और हर बार सिंह की तिजोरी भरती जाती। अचूक संघर्ष ने जब यह सच उजागर किया कि पोस्टिंग का मतलब ‘सेवा नहीं, सौदा’ है, तब लोगों की आंखे खुली।
स्लीपर बसों में कागजी खेल
उत्तर प्रदेश के हाईवे पर दौड़ती 30 से अधिक स्लीपर बसें सिर्फ़ कागजों में ही सुरक्षित थीं। नियम-कायदे, फिटनेस, परमिट—सब कुछ कागजों पर दुरुस्त दिखाया गया, जबकि जमीनी हकीकत यह थी कि ये बसें हादसों का इंतजार कर रही थीं। जांच रिपोर्ट कहती है कि इन बसों की फिटनेस और बीमा में भारी गोलमाल था। लेकिन हर बार फाइल पर हरी स्याही का निशान लग जाता, क्योंकि मेज के नीचे से नोटों का बंडल निकल चुका होता। महोबा से लेकर बरेली तक यह खेल फैला हुआ था। और हर जिले में एक ही नियम चलता ‘रेट कार्ड राज’। बस मालिक जानते थे कि कितना चढ़ाना है, अधिकारी जानते थे कि कितना बांटना है।
आईडी प्रूफ का अपराध
बी.एन. सिंह के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक नया आयाम सामने आया आईडी प्रूफ का दुरुपयोग। बिना सहमति लोगों के पते और पहचान का इस्तेमाल कर फर्जी पंजीयन किया गया। यह सिर्फ घोटाला नहीं, बल्कि अपराध था। लेकिन इस अपराध की फाइलें भी पैसों की गर्माहट में ठंडी कर दी गईं। जो अफसर सवाल उठाते, उन्हें किनारे कर दिया जाता। कुछ का ट्रांसफर कर दिया गया, कुछ को निलंबित कर दिया गया। सिस्टम की चुप्पी का फायदा सिंह ने जमकर उठाया।
ईमानदारी का चोला, भ्रष्टाचार का हार
बी.एन. सिंह का सबसे बड़ा अपराध सिर्फ वसूली नहीं था, बल्कि अपनी झूठी छवि गढ़ना था। उन्होंने खुद को ‘ईमानदार आयुक्त’ कहकर पेश किया, आईएएस लॉबी में अपनी पकड़ मजबूत की, और मीडिया में साफ-सुथरे अफसर की छवि बनाई। वे हमेशा ‘सख्त कार्रवाई’ और ‘भ्रष्टाचार मुक्त विभाग’ की बातें करते। लेकिन हकीकत यह थी कि ईमानदारी का चोला ओढ़कर वे भ्रष्टाचार का हार पहने हुए थे। अचूक संघर्ष ने इस नकाब को उतार फेंका।
अचूक संघर्ष ने कलम से लड़ी लड़ाई, भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंका
जब सारे मीडिया हाउस खामोश थे, सिस्टम की मिलीभगत मौत और हादसों को भी दबा देती थी,
तब ‘अचूक संघर्ष’ ने आवाज उठाई। मोहनलालगंज हादसे की असली वजहों को उजागर किया। ट्रांसफर-पोस्टिंग के सौदे का कच्चा चिट्ठा खोला। ‘नारायणी कोठा’ बने कार्यालय की असलियत सामने लाई और स्लीपर बसों के फर्जीवाड़े की कहानी पन्नों पर उकेरी।
तबादले से मचा हड़कंप
सेवानिवृत्ति से महज 15 दिन पहले बी.एन. सिंह का तबादला हुआ। यह आदेश जैसे ही आया, आईएएस लॉबी में हड़कंप मच गया। सवाल उठने लगे क्या अब और भी नाम सामने आयेंगे या बी.एन.सिंह को बलि का बकरा बनाया गया है, या पूरा तंत्र बेनकाब होगा?
योगी सरकार और ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार कहते रहे हैं कि प्रदेश को भ्रष्टाचार से मुक्त किया जाएगा। लेकिन बी.एन. सिंह का पूरा कार्यकाल इस दावे की पोल खोलता है। उनकी नियुक्ति ने परिवहन विभाग को एक ‘काला अध्याय’ में बदल दिया। आज तस्वीर साफ है अचूक संघर्ष, जिसने अपनी कलम से भ्रष्टाचारी तंत्र को चुनौती दी और बी.एन.सिंह जिसने ईमानदारी की आड़ में पूरे विभाग को मौत और वसूली का अड्डा बना दिया, जड़ से उखाड़ फेंकने में सरकार को मजबूर कर दिया।बी.एन. सिंह का तबादला एक शुरुआत है,
लेकिन लड़ाई अभी अधूरी है। इस सिंडिकेट को जड़ से उखाड़ने की जरूरत है। नहीं तो सिस्टम एक बार फिर गुनाहों की धूल फाइलों के नीचे दबा देगा।
- अचूक संघर्ष की कलम के आगे हिला आईएएस लॉबी, सेवानिवृत्ति से पहले बी.एन.सिंह का हुआ तबादला ।
- ईमानदारी की ओट में भ्रष्टाचार का साम्राज्य बी.एन.सिंह की खुली पोल।
- मोहनलालगंज हादसा पांच निर्दोषों की मौत, दोषियों को क्लीनचिट, वसूली ने दबाई जांच।
- ‘नारायणी कोठा’ बना आयुक्त कार्यालय हर फाइल, हर आदेश की तय कीमत।
* पोस्टिंग का खेल सिपाही से पीटीओ तक बोली लगती थी, 50 फीसदी सीधा जाता था आयुक्त की जेब में।
* मौसम-ए-वसूली ट्रांसफर सीजन में मंडी की तरह बंटती थी पोस्टिंग।
* 30 स्लीपर बसों का फर्जीवाड़ा कागजी फिटनेस, सड़क पर मौत का इंतजार।
* महोबा से बरेली तक वसूली का एक समान नियम।
* आईडी प्रूफ का दुरुपयोग फर्जी पंजीकरण, पहचान पत्रों से अपराध।
* सिस्टम की चुप्पी सवाल उठाने वाले अफसरों का ट्रांसफर या निलंबन।
* ईमानदारी का चोला मीडिया में ‘सख्त अफसर’ की छवि, भीतर से भ्रष्टाचार का हार।
* अचूक संघर्ष की कलम का असर पूरे तंत्र की चुप्पी तोड़ी, नकाब उतारा।
* तबादले से मचा हड़कंप आईएएस लॉबी में खलबली, बलि का बकरा या तंत्र का पर्दाफाश?
* योगी सरकार के दावे पर सवाल ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ की हकीकत उजागर।
*:भ्रष्टाचार का सिंडिकेट विभाग बना मौत और वसूली का अड्डा।
* अधूरी लड़ाई बी.एन. सिंह का तबादला बस शुरुआत, पूरे नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने की जरूरत।