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काशी के राजकीय महिला अस्पताल का हाल ,सीएमओ काट रहे माल,ब्रजेश पाठक खाली मीडिया में बजा रहे है गाल

राजकीय महिला अस्पताल में ओपीडी के बाहर टीन शेड में हुआ प्रसव, काशी की मानवीय परंपरा को किया तार-तार

        • भटकती गर्भवती, बेंच पर प्रसव काशी की चिकित्सा व्यवस्था का काला चेहरा
        • निःशुल्क इलाज की उम्मीद टूटी, बीएचयू भेजने का बहाना और लापरवाह स्टाफ
        • आशा कार्यकर्ती बनी सहारा टीन शेड के नीचे हुआ जन्म, वार्ड आया ने संभाला हालात
        • सीएमओ पर उठे गंभीर सवाल गांधी जी के बंदर की प्रतिमूर्ति बने
        • पोस्टिंग का खेल डॉ.पियूष राय के संरक्षण में चल रहा धन उगाही का गोरखधंधा
        • प्रसूता की सास की दास्तां पहले भी यहां से भगाया था, मजबूरी में आए थे
        • काशी की सभ्यता और मानवीय मूल्यों पर कलंक चिकित्सा सेवा में व्यापारीकरण हावी
        • जनता के भरोसे का हनन कब रुकेगा अस्पताल माफिया का राज!

वाराणसी। जिसे शिव की नगरी काशी कहा जाता है, दुनिया भर में मानवीय संवेदना, सहानुभूति और करुणा की भूमि माना जाता है। वही काशी अपने ही सरकारी अस्पतालों में संवेदनहीनता की सबसे काली तस्वीर देख रही है। रविवार को कबीरचौरा स्थित राजकीय महिला अस्पताल में एक गर्भवती महिला को भर्ती से मना कर दिया गया। अस्पताल प्रशासन के टालमटोल रवैये के कारण महिला को ओपीडी के बाहर टीन शेड में बच्चे को जन्म देना पड़ा। यह घटना केवल एक मरीज या उसके परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि काशी की सभ्यता, मानवीय मूल्यों और सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की नाकामी का प्रतीक है।

 

* भ्रष्टाचार और पोस्टिंग का खेल संवेदनाओं को बेच दिया गया है पैसों के लिए
* निःशुल्क इलाज का झांसा, असलियत में रेफर और मना करने का खेल
* आशा कार्यकर्ती और परिजन बने ‘अस्पताल की नाकामी को ढकने वाले देवदूत’
* सीएमओ के नेतृत्वहीन रवैये ने पूरे स्वास्थ्य विभाग को बना दिया मजाक
* चिकित्सक का ‘बीएचयू भेजो’ फार्मूला खुद की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का तरीका
* काशी में जहां प्रसव को पवित्र संस्कार माना जाता है, वहीं सरकारी अस्पताल बना अपमान का अड्डा
* धन उगाही के बाद ही होती है डॉक्टरों और स्टाफ की तैनाती मरीज की जिंदगी से खेल
* यह सिर्फ एक महिला की नहीं, पूरे समाज और व्यवस्था की पराजय है

 

भटकती गर्भवती, बेंच पर प्रसव काशी की चिकित्सा व्यवस्था का काला चेहरा

काशी में गंगा किनारे हजारों साल से जीवन और मृत्यु दोनों को गरिमा के साथ स्वीकार करने की परंपरा रही है। लेकिन रविवार की शाम कबीरचौरा स्थित राजकीय महिला अस्पताल में जो हुआ, उसने इस सभ्यता को कलंकित कर दिया। रेवड़ी तालाब की रहने वाली एक गर्भवती महिला अपने परिजनों के साथ इलाज के लिए अस्पताल पहुंची। परिजन मुफ्त इलाज की उम्मीद लेकर आए थे, लेकिन यहां स्टाफ नर्स और वार्ड आया ने उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया। यह कहते हुए कि महिला की हालत गंभीर है, उसे बीएचयू भेज दिया जाए। लगभग एक घंटे तक गिड़गिड़ाने के बाद भी जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो निराश परिजन उसे वापस ले जाने लगे। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। गर्भवती महिला के ल परिजनों ने रास्ते में आशा कार्यकर्ती को जब जानकारी दी, तो उसने परिजनों को वापस अस्पताल बुलाया। जैसे ही महिला ओपीडी के बाहर पहुंची, उसे तेज प्रसव पीड़ा हुई और वहीं टीन शेड में बेंच पर उसने बच्चे को जन्म दे दिया। इस दौरान आशा कार्यकर्ती और वार्ड आया शांति ने किसी तरह हालात संभाले और प्रसव प्रक्रिया पूरी कराई। बाद में आनन-फानन में महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया और नवजात को गंभीर स्थिति के चलते आइसीयू में रखा गया। यह घटना केवल एक प्रसूता और उसके परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर लगा वह काला धब्बा है, जिसे धोना असंभव होता जा रहा है।

निःशुल्क इलाज की उम्मीद टूटी

परिवार ने अस्पताल का रुख इसलिए किया था क्योंकि यहां निःशुल्क इलाज का दावा किया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि चिकित्सकों के बहानेबाजी और टालमटोल रवैये ने मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ कर दिया। स्टाफ नर्स प्रीतम और वार्ड आया अंजलि ने साफ कह दिया कि मरीज की स्थिति गंभीर है और उसे बीएचयू भेजना होगा। सवाल यह है कि जब महिला अस्पताल में डॉक्टर और ओटी मौजूद थे, तो भर्ती से इनकार क्यों किया गया? उस समय ओटी में आपरेशन भी नहीं हो रहा था। फिर भी मरीज को यह कहकर टाल दिया गया कि यहां इलाज संभव नहीं है। जो चिकित्सक उस समय ड्यूटी पर थीं, वो आराम फरमा रही थीं। इसलिए मरीज को देखना मुनासिब नहीं समझा। यानी साफ है कि यह पूरा मामला संवेदनहीनता और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का है।

आशा कार्यकर्ती बनी सहारा – टीन शेड के नीचे हुआ शिशु का जन्म

जब पूरी व्यवस्था असफल रही, तब एक आशा कार्यकर्ती ने इंसानियत की मिसाल दी। उसने परिवार को वापस अस्पताल बुलाया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। अस्पताल परिसर में टीन शेड के नीचे ही महिला ने प्रसव पीड़ा में नवजात को जन्म दे दिया। वार्ड आया शांति ने मौके पर पहुंचकर स्थिति संभाली और प्रसव प्रक्रिया पूरी कराई। सवाल यह उठता है कि जहां करोड़ों रुपये स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं पर खर्च किए जाते हैं, वहां आखिर क्यों एक गर्भवती महिला को सड़क या बेंच पर प्रसव करने के लिए मजबूर होना पड़ा?

सीएमओ पर उठे गंभीर सवाल, गांधी जी का बंदर बने

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.संदीप चौधरी पर इस घटना ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सीएमओ की भूमिका पर पहले से ही भ्रष्टाचार और विभागीय अधिकारियों पर पकड़ न होने के आरोप लगते रहे हैं। लोग अब खुलेआम कह रहे हैं कि सीएमओ गांधी जी का वह बंदर बन गए हैं, जो न बुरा देखता है, न सुनता है, न बोलता है। यानी विभाग में जो हो रहा है, उसे पैसा लेकर नजरअंदाज करना उनकी आदत बन गई है।

पोस्टिंग का खेल डॉ.पियूष राय के संरक्षण में चल रहा धन उगाही का गोरखधंधा

सूत्रों का कहना है कि अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग में पोस्टिंग अब योग्यता या अनुभव के आधार पर नहीं होती। यह पूरा खेल धन उगाही का है। डॉ.पियूष राय के संरक्षण में यह नेटवर्क चलता है। पैसे देने के बाद ही नर्सों और कर्मचारियों की मनचाही जगह पोस्टिंग होती है। इस सिस्टम में मरीज की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण रकम होती है। स्वास्थ्य सेवाएं अब पूरी तरह से मुनाफे और भ्रष्टाचार के खेल में तब्दील हो चुकी हैं।

पहले भी यहां से भगाया था, मजबूरी में आए थे

प्रसूता की सास सितारा ने जो कहा, वह इस व्यवस्था का सबसे भयावह चेहरा उजागर करता है। इसके पहले भी परेशानी होने पर अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया गया था। तब हमें जनता अस्पताल जाना पड़ा था। इस बार सोचा निःशुल्क इलाज मिलेगा तो यहां आए। लेकिन यहां तो ऑपरेशन का नाम लेकर फिर से भगा दिया गया। यह बयान बताता है कि जनता का भरोसा सरकारी अस्पतालों से कितना टूटा हुआ है। मुफ्त इलाज की उम्मीद लेकर आने वाले गरीब परिवार आखिरकार अपमान और बेबसी का शिकार बनते हैं।

काशी की सभ्यता और मानवीय मूल्यों पर कलंक

काशी, जहां करुणा और संवेदना की शिक्षा दी जाती है, आज उन्हीं मूल्यों से खिलवाड़ हो रहा है। सरकारी अस्पताल, जो गरीबों और वंचितों की अंतिम उम्मीद हुआ करते थे। व्यापारीकरण और संवेदनहीनता का अड्डा बन गए हैं। यह वही काशी है जहां ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का मंत्र दिया गया। लेकिन आज स्थिति यह है कि अस्पताल का गेट पार करते ही मरीज को रुपये और सिफारिश का नंबर दिखाना पड़ता है।

जनता के भरोसे का हनन कब रुकेगा यह ‘अस्पताल माफिया राज’!

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर कुछ गिने-चुने लोगों का माफिया राज चल रहा है। पोस्टिंग से लेकर दवाइयों और इलाज तक हर जगह पैसों का खेल है। क्या काशी जैसे शहर में लोग इसी तरह बेंच और टीन शेड के नीचे बच्चों को जन्म देते रहेंगे! सरकार और प्रशासन सिर्फ कागजों पर योजनाएं बनाते रहेंगे और जमीनी स्तर पर जनता यूं ही तड़पती रहेगी?

* क्या अस्पताल चिकित्सकों की मनमानी पर चलेंगे?
* सीएमओ सिर्फ कुर्सी बचाने के लिए आंख मूंदे रहेंगे?
* गरीबों को निःशुल्क इलाज सिर्फ सरकारी पोस्टरों में मिलेगा!
* पोस्टिंग का खेल मरीज की जान से ज्यादा जरूरी है?
* काशी की सभ्यता अब केवल पर्यटन का विषय रह गई है, संवेदना का नहीं?
* इस घटना के बाद भी क्या कोई कार्रवाई होगी जिम्मेदार अधिकारी निलंबित होंगे?
* स्वास्थ्य महकमे का यह माफिया राज कब खत्म होगा?

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