मोदी जी को अब काला धन हुआ कुबूल,सिद्धांतो की बाते पीएम गए भूल
मोदी का पलटा सुर अब काले धन से परहेज नहीं, क्या आर्थिक मजबूरी में बदले प्रधानमंत्री के उसूल!

- 15 लाख से जुमलेबाज़ी तक, जनता छली गई
- नोटबंदी की लूट, अब काले धन का स्वागत
- देंग का फार्मूला, भारत में ठगा गया जनमानस
- आर्थिक मरणासन्न स्थिति में निवेश की भूख
- रामदेव के सपने, पेट्रोल-गैस ने तोड़ी कमर
- डॉलर-रुपया समीकरण, खोखले दावों की पोल
- अन्ना आंदोलन से सत्ता तक, लोकपाल गायब
- मोदी का नया सिद्धांत आत्मसमर्पण या रणनीति
सत्य हिंदी डॉट कॉम
26 अगस्त 2025 को अहमदाबाद में मारुति सुजुकी के हंसलपुर संयंत्र में ई-विटारा के लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बयान सुनकर पूरा देश चौंक गया। उन्होंने कहा मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि पैसा किसका है, चाहे वह डॉलर हो, पाउंड हो, या काला हो या गोरा, लेकिन उस पैसे से जो उत्पादन होता है, उसमें मेरे देशवासियों का पसीना होना चाहिए। यह वही मोदी हैं, जिन्होंने 2014 में विदेशी बैंकों से काला धन लाने का वादा किया था, जिन्होंने नोटबंदी कर पूरे देश को कतारों में खड़ा कर दिया था, जिन्होंने कहा था कि ईमानदारों का सम्मान होगा और बेईमान जेल जाएंगे। लेकिन अब वही मोदी काले धन को स्वीकार्य बताने लगे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यह बयान आर्थिक मजबूरी का संकेत है, या फिर काले धन पर घिरी सरकार का खुला आत्मसमर्पण!
काले धन से 15 लाख तक, और अब काला-गोरा पैसा बराबर
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जनता से वादा किया था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाकर हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये डाले जाएंगे। अमित शाह ने बाद में इसे जुमला बताया, लेकिन जनता की उम्मीदें तब तक आसमान छू चुकी थीं। 2016 में मोदी ने नोटबंदी का बड़ा दांव खेला। दावा था कि इससे काला धन बाहर आएगा, आतंकवाद और नकली नोट खत्म होंगे। लेकिन नतीजा यह निकला कि 99.3 प्रतिशत नोट वापस बैंकों में जमा हो गए। यानी काले धन पर लगाम नहीं लगी, बल्कि अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। अब 2025 में मोदी कह रहे हैं कि उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि पैसा काला है या गोरा। यानी शुरुआत काले धन की वापसी से हुई थी और अब पहुंच गए हैं काले धन की वैधता तक।
बिल्ली काली हो या गोरी देंग शियाओ पिंग बनना चाहते हैं मोदी
मोदी का नया बयान चीन के नेता देंग शियाओ पिंग की उस मशहूर उक्ति से मेल खाता है बिल्ली काली हो या गोरी, अगर वह चूहा पकड़ती है तो अच्छी है। देंग ने 1980 के दशक में चीन की अर्थव्यवस्था को बाजारवादी सुधारों की ओर मोड़ा था। लेकिन चीन की उस स्थिति और भारत की मौजूदा परिस्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है। भारत में उदारीकरण 1991 से शुरू हुआ, लेकिन यहां लोकतांत्रिक जवाबदेही और सामाजिक असमानता के बीच सुधार हमेशा आधे-अधूरे रहे। मोदी का नया बयान इस बात का संकेत है कि वे अब काले धन को देशहित में निवेश योग्य बताना चाहते हैं। लेकिन असली सवाल है—क्या यह बयान देश के लिए राहत है, या काले धन वालों के लिए गारंटी कार्ड।
आर्थिक संकट की पृष्ठभूमि
यह नरम रुख ऐसे समय में सामने आया है जब देश आर्थिक संकट में डूबा हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में योगदान सिर्फ 15 प्रतिशत है जबकि लक्ष्य 25 प्रतिशत तय किया गया था। बेरोजगारी दर ऐतिहासिक ऊंचाई पर है, करोड़ों युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है, जिससे निर्यात और उत्पादन पर सीधा असर पड़ा है। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे नारे कागजी साबित हो चुके हैं। ऐसे माहौल में मोदी का काले धन पर नरम रुख़ सीधा संदेश देता है कि वे अब किसी भी कीमत पर निवेश चाहते हैं। चाहे पैसा बेईमानी से कमाया गया हो या ईमानदारी से।
नोटबंदी संगठित लूट से खुला आत्मसमर्पण
नवंबर 2016 में नोटबंदी का ऐलान कर मोदी ने दावा किया था कि यह काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक है। लेकिन इस फैसले से छोटे व्यवसाय, किसान, मजदूर और असंगठित क्षेत्र की रीढ़ टूट गई। डॉ.मनमोहन सिंह ने इसे संगठित लूट और कानूनी डकैती करार दिया था और जीडीपी में 2 प्रतिशत गिरावट का अनुमान जताया था, जो सही साबित हुआ। आज वही मोदी कह रहे हैं कि काला धन भी चलेगा। यानी जिन लोगों ने नोटबंदी की मार झेली, जिनकी नौकरियां गईं, जिनके परिवार बर्बाद हुए उन सबकी कुर्बानी बेकार चली गई।
बाबा रामदेव और काले धन का चमत्कार
2011 में बाबा रामदेव ने रामलीला मैदान में काले धन के खिलाफ अनशन किया था। उन्होंने कहा था कि अगर काला धन वापस आ जाए तो पेट्रोल 30 रुपये और गैस सिलेंडर 150 रुपये का हो जाएगा। आज 2025 में पेट्रोल 100 रुपये से ऊपर है और गैस सिलेंडर 1000 रुपये से ज्यादा का। रामदेव की पतंजलि 65,000 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी है, लेकिन काले धन पर उनके सारे दावे हवा हो चुके हैं। विडंबना यह है कि जिस आंदोलन ने मोदी को सत्ता की सीढ़ी चढ़ाई, वही आंदोलन आज भुला दिया गया।
श्री श्री रविशंकर और डॉलर का जादू
श्री श्री रविशंकर ने 2014 में दावा किया था कि अगर मोदी सत्ता में आए तो रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले 40 तक पहुंच जाएगी। लेकिन आज डॉलर 87.50 रुपये का है। यानी रुपये की हालत और खराब हो गई। मोदी ने कभी मनमोहन सिंह की उम्र को डॉलर की कीमत से जोड़ा था, लेकिन अब डॉलर उनकी उम्र से भी कहीं आगे निकल चुका है। यह मोदी सरकार की नीतियों की विफलता और खोखले दावों का जीता-जागता सबूत है।
अन्ना आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोध की मौत
2011 का अन्ना आंदोलन भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ था। हजारों युवाओं ने इसमें भाग लिया। लेकिन नतीजा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई और तीन बार दिल्ली में सरकार बनाई। लोकपाल की मांग धरी रह गई। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे प्रतिबद्ध साथी अलग कर दिए गए। और अंत में केजरीवाल खुद शराब घोटाले के आरोप में जेल चले गए। अन्ना आंदोलन से निकला सारा राजनीतिक लाभ मोदी और बीजेपी को मिला। लेकिन अब वही मोदी काले धन के लिए दरवाजे खोल रहे हैं।
मोदी का नया सिद्धांत क्या यह मजबूरी है या रणनीति
मोदी का नया बयान इस बात का संकेत है कि अब सरकार को निवेश की इतनी भूख है कि काले धन वालों को भी आमंत्रण दिया जा रहा है। यह बयान आर्थिक मजबूरी का नतीजा हो सकता है। बेरोजगारी, उत्पादन में गिरावट, महंगाई और निर्यात संकट ने सरकार की नींव हिला दी है। लेकिन यह रणनीति भी हो सकती है। एक तरह से काले धन वालों को भरोसा देना कि वे सुरक्षित हैं। नोटबंदी के समय जिस जनता से बलिदान मांगा गया था, अब उसी जनता को बताया जा रहा है कि काला-गोरा पैसा बराबर है।
* 2014 मोदी का वादा हर खाते में 15 लाख।
* 2016 नोटबंदी जनता की तकलीफ, काला धन जस का तस।
* 2025 मोदी का नया बयान काले धन से भी कोई परहेज नहीं।
* देंग शियाओ पिंग की लाइन का भारतीय संस्करण लेकिन हालात अलग।
* मैन्युफैक्चरिंग 25 प्रतिशत के लक्ष्य के बजाय 15 प्रतिशत पर अटका।
* बेरोजगारी और महंगाई ने जनता की कमर तोड़ी।
* बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर और अन्ना आंदोलन के सारे दावे खोखले साबित।
* आर्थिक मजबूरी या नई रणनीति काला धन अब देशहित में मान्य