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- शाहबाज शरीफ का पुतिन प्रेम ‘आपके नेतृत्व में एशिया समृद्ध होगा’
- एससीओ शिखर सम्मेलन में नई भू-राजनीतिक तस्वीर उभरी
- भारत पर नजर क्या लोकतांत्रिक देशों से खिसककर जाएगा अधिनायकवादी खेमे की ओर?
- अमेरिका की बेचैनी ट्रंप का बयान ‘भारत और रूस दोनों चीन के साथ नत्थी’
- यूरोप की चेतावनी फिनलैंड बोला, भारत खोया तो लोकतांत्रिक ताकतें हार जाएंगी
- क्या भारत पाकिस्तान और चीन से दुश्मनी भुलाकर व्यापार करेगा?
- मीडिया का खेल पुतिन ने मोदी का 45 मिनट कार में इंतजार किया जैसी खबरें
- नई विश्व व्यवस्था तेल, बैंकिंग और व्यापार में बदलते समीकरण
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(लेखिका वर्षा भम्भाणी मिर्जा)
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन ने दुनिया की राजनीति का नक्शा हिला दिया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ का वह वीडियो सोशल मीडिया पर छाया हुआ है जिसमें वे व्लादिमीर पुतिन को ‘महामहीम’ कहकर रूस से मजबूत रिश्तों की गुहार लगाते दिखे। इस बीच भारत, जो अब तक लोकतांत्रिक देशों की धुरी माना जाता था, उसकी ओर तिरछी नज़रें उठी हैं। सवाल बड़ा है क्या अमेरिका के दबाव और यूरोप की चेतावनियों के बीच भारत सचमुच उस खेमे की ओर झुक रहा है जहां चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान जैसे देश एकजुट हो रहे हैं? और अगर हां, तो क्या यह भारत की विदेश नीति का सबसे बड़ा पलटवार होगा? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ का वह वीडियो इन दिनों अंतरराष्ट्रीय हलकों में सबसे ज्यादा चर्चा में है जिसमें वे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को न केवल धन्यवाद देते हैं बल्कि उनके नेतृत्व की तारीफ करते हुए कहते हैं ‘बहुत शुक्रिया महामहीम कि आपने अपने महान देश में आने का मुझे न्योता दिया। मैं सालों पहले मास्को आया था, जब मैं बच्चा था। मुझे वहां आकर और पुरानी याद ताज़ा कर बहुत खुशी होगी।’ शाहबाज यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान, रूस के समर्थन को सराहता है और भारत से रूस के रिश्तों पर उसे कोई ऐतराज नहीं। लेकिन पाकिस्तान भी चाहता है कि मॉस्को से उसके संबंध और गहरे हों। इस वीडियो ने दुनिया की राजनीति के समीकरणों पर सीधा असर डाला है।
एससीओ शिखर सम्मेलन नई धुरी का संकेत
ताशकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रध्यक्ष शामिल हुए। सम्मेलन की तस्वीरों और बयानों से साफ़ झलकता है कि यह मंच अब केवल सुरक्षा नहीं बल्कि नई आर्थिक धुरी बनाने की ओर बढ़ रहा है। पुतिन ने यहां तक कहा कि एससीओ का मकसद सदस्य देशों के साझा व्यापार और सुरक्षा हितों को मजबूत करना है। अमेरिका और यूरोप के रणनीतिक हलकों में यह चर्चा गर्म है कि भारत किस दिशा में जा रहा है। क्या भारत सचमुच चीन और पाकिस्तान से दुश्मनी भुलाकर एक नई साझेदारी की ओर बढ़ेगा? क्या गलवान घाटी की शहादत, सिंधु जल विवाद और आतंकवाद के ज़ख्म मिटाकर यह नया समीकरण बन सकता है? मीडिया ने जब मोदी और पुतिन की मुलाकात की तस्वीरें और कार में 45 मिनट की सीक्रेट टॉक जैसी हेडलाइनें चलाईं, तो यह संकेत और गहरे हो गए।
अमेरिका की बेचैनी और ट्रंप की चेतावनी
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत और रूस दोनों ही डीपेस्ट एंड डार्केस्ट चीन के साथ जा चुके हैं। उन्होंने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ थोपने के बाद यह टिप्पणी की। एक पोलिश पत्रकार के सवाल पर तो ट्रंप भड़क गए और पत्रकार को नौकरी बदलने की धमकी तक दे डाली। उनका कहना था कि भारत पर लगाए गए टैरिफ से रूस को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है।
यूरोप की चेतावनी फिनलैंड की आवाज
फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्सेंडर स्टब ने यूरोपीय यूनियन और अमेरिका को साफ़ चेतावनी दी कि अगर भारत को खो दिया तो यह लोकतांत्रिक ताकतों की सबसे बड़ी हार होगी। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ और इंडिया को लेकर गरिमापूर्ण रवैया नहीं अपनाया गया तो हम यह लड़ाई हार जाएंगे।
क्या भारत पाकिस्तान व चीन से गले मिलेगा?
कल्पना कीजिए पाकिस्तान से मेवे और कशीदाकारी भारत आ रही हो और यहां से सब्जियां, मिठाइयां और मधुबनी कला वहां जा रही हों। भारत-पाक क्रिकेट सीरीज फिर से शुरू हो, फरीद अयाज और अबू मोहम्मद भारत में सूफी कव्वाली सुना रहे हों, वहीं सोनू निगम और श्रेया घोषाल कराची में गा रहे हों। यह तस्वीर सुनने में भले असंभव लगे लेकिन शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंच यही संकेत दे रहे हैं कि भविष्य की राजनीति हित आधारित होगी, न कि शत्रुता आधारित।
नई आर्थिक धुरी और ऊर्जा का समीकरण
भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया। बल्कि, अब वह एक समानांतर वित्तीय व्यवस्था बनाने की दिशा में है। चीन और रूस पहले ही रेड सिल्क नामक साझा फिल्म और सांस्कृतिक सहयोग से व्यापारिक रिश्ते मजबूत कर रहे हैं। भारत यदि इसमें शामिल होता है तो यह वर्ल्ड बैंक और डॉलर की आर्थिक धुरी को चुनौती देगा।
पुतिन का नैरेटिव और पश्चिम की मुश्किलें
पुतिन ने सम्मेलन के बाद प्रेस वार्ता में कहा कि रूस यूक्रेन पर कब्जा नहीं चाहता। असली दोषी पश्चिम और नाटो हैं जिन्होंने यूक्रेन पर अपनी शर्तें थोपीं। सवाल यह है कि लोकतंत्र और आज़ादी की दुहाई देने वाले अब पुतिन और शी जिनपिंग जैसे नेताओं की संगत में भारत को कैसे देखेंगे? भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है क्या उसे लोकतांत्रिक देशों का प्राकृतिक सहयोगी बने रहना है या हितों के लिए अधिनायकवादी धुरी का हिस्सा बनना है।
* शाहबाज शरीफ का पुतिन प्रेम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय
* शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन ने भारत, चीन, रूस और पाकिस्तान को एक मंच पर दिखाया
* अमेरिका और यूरोप में बेचैनी भारत किस खेमे में जाएगा?
* ट्रंप का तीखा बयान भारत और रूस, चीन के साथ नत्थी
* यूरोप की चेतावनी भारत खोया तो लोकतांत्रिक ताकतें हारेंगी
* भारत-पाक व्यापार और सांस्कृतिक रिश्तों की कल्पना ने उठाए सवाल
* रूस से तेल खरीद जारी, नई समानांतर आर्थिक व्यवस्था की ओर भारत
* पुतिन का बयान यूक्रेन युद्ध का दोष नाटो पर, रूस पर नहीं