लखनऊ

योगी राज भर्ती में लूट, बेरोजगारों पर लाठियों से प्रहार,  कब समझेंगे हमारे सरकार

यूपी में पेपर माफिया और सत्ता का गठजोड़, शिक्षित बेरोजगारों की बेबसी में डूबी ‘डबल इंजन’ सरकार की सियासत

◆ सत्ता बदली, सिस्टम नहीं बेरोजगारों की बदकिस्मती जारी

◆ भाजपा सरकार के आठ वर्षों में पारदर्शी भर्ती के वादे ध्वस्त, हर परीक्षा बन गई घोटालों की कहानी

◆ पेपर लीक से लेकर बोर्ड परीक्षा तक अपराधी को माफी, पत्रकार सलाखों के पीछे

◆ यूपी में अब पेपर लीक करना नहीं, उसे उजागर करना अपराध बना

◆ टीजीटी-पीजीटी भर्ती का तमाशा तीन साल में पांच बार स्थगन, छात्र सड़क पर

◆ 69,000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण लूट कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना

◆ 6500 पिछड़ा-दलित सीटें स्वजातियों को, न्याय मांगने वाले छात्र खा रहे लाठियां सरकार मौन

◆ अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड पर सवाल सहायक सांख्यिकी अधिकारी भर्ती में फर्जी चयन

◆ अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे, यही बनी यूपी की नई भर्ती नीति योग्यता का घोंटा गला

◆ बेरोजगारों की लड़ाई अदालत और सड़क पर, न्यायालय भी नतमस्तक!

◆ पकौड़ा रोजगार मॉडल की सच्चाई योग्यता का अपमान, भविष्य का अंत

 

● ऋषिमुनि समीर

 

उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा की सरकार बनी है, सत्ता के गलियारों में सबसे अधिक धोखा अगर किसी तबके के साथ हुआ है, तो वह है शिक्षित बेरोजगार युवा वर्ग। योग्यता और मेहनत के बावजूद नौकरी नहीं, बल्कि पेपर लीक, घोटाला और जातिवादी चयन की राजनीति ही इनकी नियति बन चुकी है। दरोगा से लेकर दरबान, शिक्षक से लेकर समीक्षा अधिकारी तक हर भर्ती में नकल और लीक का साम्राज्य है। अब हालात यह हैं कि यूपी में नौकरी नहीं है बल्कि पेपर लीक का सीजन चलता है। यह वही राज्य है जहां भ्रष्टाचार उजागर करने वाले पत्रकार जेल में हैं, और घोटाले करने वाले सत्ता के संरक्षण में। ये आंकड़े बताते है कि कैसे एक-एक भर्ती में जातिवाद, भाई-भतीजावाद और सत्ता संरक्षण ने योग्य युवाओं के सपनों को बेरहमी से कुचल दिया।

सत्ता बदल गई, लेकिन बेरोजगारों की बदकिस्मती नहीं

उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद यह दावा किया गया था कि सरकार युवाओं को पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती व्यवस्था देगी। परंतु बीते आठ वर्षों में जो हुआ, उसने इस दावे की धज्जियां उड़ा दी। दरोगा भर्ती से लेकर आरओ-एआरओ परीक्षा, टीजीटी-पीजीटी से लेकर ग्रुप ‘सी’ तक लगभग हर भर्ती में पेपर लीक या भ्रष्टाचार सामने आया। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित तंत्र है जिसमें सत्ता, आयोग और माफिया का ‘त्रिकोणीय गठजोड़’ काम करता है।

पेपर लीक का उद्योग और सरकारी चुप्पी

2023 में यूपी पुलिस भर्ती का पेपर लीक हुआ, 2024 में समीक्षा अधिकारी परीक्षा का प्रश्नपत्र सोशल मीडिया पर बिकता मिला, और हाल ही में तो यूपी बोर्ड की परीक्षा तक लीक हो गई। विडंबना यह है कि इस लीक का खुलासा करने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया। यूपी में अब सच बोलना गुनाह है, पत्रकार जेल में और पेपर लीक माफिया सरकारी ठेकों पर यही है डबल इंजन की नई परिभाषा!

टीजीटी-पीजीटी भर्ती तारीख पर तारीख का खेल

माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड की टीजीटी-पीजीटी परीक्षा (विज्ञापन-2022) तीन साल से अटकी है। छात्रों के धरने, टवीट अभियान और ज्ञापन के बाद भी पांच बार परीक्षा स्थगित हुई। सरकार तारीखें देती है, फिर खींच लेती है मानो परीक्षा नहीं, कोई राजनीतिक नाटक चल रहा हो। लाखों अभ्यर्थी मानसिक और आर्थिक पीड़ा झेल रहे हैं, पर शिक्षा मंत्री और बोर्ड सचिव मौन हैं।

69,000 शिक्षक भर्ती न्याय की कब्रगाह

यूपी की सबसे चर्चित भर्ती रही 69,000 शिक्षक भर्ती, जो आज भी विवादों में है। इसमें 6,500 सीटें पिछड़े और अनुसूचित वर्गों की कोटा सीटें सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को दे दी गईं। योग्य छात्र कोर्ट गए, न्याय मिला, लेकिन सरकार ने आदेश मानने से इनकार कर दिया। यानी कानून भी अब सत्ता की सुविधा से चलता है। इन अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज हुआ, गिरफ्तारी हुई, लेकिन न्याय नहीं मिला। एक अभ्यर्थी ने कहा कि हमने संविधान पर भरोसा किया था, लेकिन सरकार ने संविधान को ही ठेंगा दिखा दिया।

आरक्षण की आड़ में स्वजातीय खेल

सभी भर्तियों में एक समानता है जातीय पक्षपात की।
जो अधिकारी निर्णय ले रहे हैं, वही अपने जाति वर्ग के उम्मीदवारों को लाभ पहुंचा रहे हैं। यह अब महज ‘अनियमितता’ नहीं, बल्कि ‘संस्थागत भेदभाव’ है। ‘अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे’ यही कहावत उत्तर प्रदेश की भर्ती व्यवस्था का प्रतीक बन चुकी है।

सहायक सांख्यिकी अधिकारी भर्ती घोटाला

अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड की सहायक सांख्यिकी अधिकारी भर्ती 2019 का परिणाम 2024 में आया पांच साल बाद आया। लेकिन जब परिणाम आया, तो सामने आया कि लगभग 500 सीटों पर फर्जी चयन हुए हैं। इनमें फर्जी डिग्री धारक, आर्थिक आधार पर फर्जी प्रमाणपत्र लगाने वाले और अयोग्य उम्मीदवार शामिल हैं। अभ्यर्थियों ने इसकी लिखित शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेजी। फिर भी अब तक कार्रवाई शून्य। क्योंकि जिन पर उंगली उठी है, वे जाति विशेष से हैं, जो सत्ता के संरक्षण में हैं।

अदालत से भी टूटी उम्मीद

जब छात्र न्यायालय पहुंचे, तो उन्हें लगा कि न्याय मिलेगा। लेकिन यहां भी सरकार की पैरवी में बैठे वकील तारीखों पर तारीख लेते रहे। अब बेरोजगारों में यह भावना गहराती जा रही है कि न्यायालय भी सत्ता की चौखट पर नतमस्तक है। यह लोकतंत्र की सबसे खतरनाक स्थिति है जहां पीड़ित का विश्वास न्याय से उठ जाए।

बेरोजगार युवाओं का मौन विद्रोह

बीते महीनों में लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर हर शहर में छात्र सड़कों पर उतरे। उनके हाथों में किताबें नहीं ‘न्याय दो’ के बैनर थे। परन्तु उन्हें जवाब में मिला सिर्फ लाठीचार्ज और गिरफ्तारी। सरकार के लिए वे विकास के आंकड़ों में बस एक संख्या हैं। लेकिन यह मौन विद्रोह अब धीरे-धीरे विस्फोटक रूप ले रहा है क्योंकि पीढ़ियां निराशा में डूब रही हैं।

प्रशासनिक तंत्र में सड़ांध

भर्ती बोर्ड, आयोग, सचिवालय सब जगह भ्रष्टाचार का स्थाई ढांचा बन चुका है। भर्ती का विज्ञापन निकलता है, फार्म फीस वसूली जाती है, परीक्षा टलती है या रद्द होती है। इस पूरी प्रक्रिया से करोड़ों रुपए की कमाई सरकार को होती है। अभ्यर्थियों की फीस सरकार के खाते में जाती है, लेकिन परीक्षा कभी नहीं होती। बेरोजगारी अब राजस्व का नया स्रोत बन गई है।

योग्यता बनाम जाति भविष्य की लड़ाई

एक ओर देश में युवा सशक्तिकरण की बातें होती हैं, वहीं यूपी में युवा उत्पीड़न का सिलसिला चलता है। योग्यता, मेहनत और ईमानदारी अब चयन का आधार नहीं रहे जाति, जुगाड़ और रिश्वत ही टिकट हैं। यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था की हत्या है, बल्कि लोकतंत्र की भी हत्या है।

पकौड़ा ही रोजगार का सत्यापन

आज का यूपी युवा हताश है। सरकारी नौकरियां तो दूर, ईमानदार परीक्षा का भरोसा भी खत्म हो चुका है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि पकौड़ा तलना भी रोजगार है। अब लगता है कि यह नीति-वाक्य बन चुका है। क्योंकि जहां परीक्षा नहीं, न्याय नहीं, वहां रोजगार सिर्फ छलावा है। सरकारें बदलती हैं, लेकिन बेरोजगारों की तकदीर नहीं। हर परीक्षा के बाद लीक, हर भर्ती के बाद विवाद यही है नए भारत का ‘युवा कल्याण मॉडल’। कब तक युवाओं को सिर्फ आश्वासन मिलेगा, और अपराधियों को संरक्षण। अगर यही ‘रामराज्य’ है तो युवाओं के लिए यह ‘नौकरी का श्मशान’ बन चुका है।

● दरोगा, सिपाही, शिक्षक, समीक्षा अधिकारी पेपर लीक से पस्त व्यवस्था।

● पत्रकार को जेल, माफिया को मेहरबानी यूपी बोर्ड पेपर लीक करने वाला पत्रकार गिरफ्तार।

● टीजीटी-पीजीटी परीक्षा में अनिश्चितता 2022 का विज्ञापन, तीन साल बाद भी परीक्षा नहीं।

● 69,000 शिक्षक भर्ती घोटाला 6,500 सीटें सामान्य वर्ग के स्वजातीयों को दे दी गईं, कोर्ट के आदेश के बाद भी न्याय नहीं।

● लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ बोर्ड में हेराफेरी आरक्षण और डिग्री फर्जीवाड़े का खुला खेल।

● सहायक सांख्यिकी अधिकारी भर्ती में बड़ा घोटाला लगभग 500 फर्जी चयन, जाति विशेष को लाभ।

● जातीय पक्षपात का नया अध्याय ‘अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे’ बना नई भर्ती नीति का प्रतीक।

● मेहनत करने वाला युवा अब ‘पकौड़ा तलना’ ही अपना भविष्य माने।

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