
- चीन से डर, पाकिस्तान पर जोश आंतरिक विफलता को ढकने का खेल
- बालाकोट के बाद तैयार पाकिस्तान, इस बार चूक गया भारत
- 100 किमी रेंज बनाम 125 किमी मिसाइल भारतीय वायुसेना की बेबसी
- डर, भ्रम और मीडिया तमाशा गोदी मीडिया की ‘युद्ध जादूगिरी’
- चीन-पाक गठजोड़ की मुहर सिंदूर बना ‘ड्रैगन-बाबर’ का गोंद
- जनरल बोले खामोशी से सेना का भरोसा टूटा, सरकार अकेली
- विजय की बजाय सन्नाटा मिमियाती सरकार और छुपते चेहरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का ऐलान जिस तरह किया, वह एक जीत के उद्घोष की बजाय खामोश बचाव का अंदाज लिए था। ऑपरेशन जो दावा था ‘बदले’ का, ‘शौर्य’ का, वह अंततः ‘भ्रम’, ‘भय’ और ‘बचकानी आक्रामकता’ का मिश्रण निकला। यह सैन्य विजय नहीं, राजनीतिक विपर्यय बन गया। ना कोई स्पष्ट सैन्य उद्देश्य, ना कोई रणनीतिक योजना, और ना ही कूटनीतिक संतुलन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भारत को न केवल सैन्य रूप से जोखिम में डाला, बल्कि चीन-पाक की दोस्ती को सील कर दिया। किसी भी सैन्य अभियान की सफलता उसकी योजना, उद्देश्य और परिणामों में होती है। परंतु ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे घोषित अभियान की न तो कोई पूर्व सूचना थी, न कोई घोषित लक्ष्य, और न ही कोई स्पष्ट उपलब्धि। सरकार ने संसद में जब इसका जिक्र किया, तो अंदाज जरूर ऐसा था जैसे कोई ‘गुप्त और शौर्यपूर्ण’ कार्य किया गया हो। पर सरकार की तरफ से ना तो यह बताया गया कि लक्ष्य क्या था, ना यह कि क्या हासिल हुआ। यही अस्पष्टता इस ‘ऑपरेशन’ को नाटकीयता के दायरे में ले आती है। मोदी सरकार को डर था कि जम्मू में हुई आतंकी घटना जिसमें सुरक्षाबलों की जान गई। उसकी आंतरिक सुरक्षा की विफलता उजागर कर देगी। इसी आशंका में, सरकार ने जल्दबाजी में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने का आदेश दे दिया। पर यह कार्रवाई अधकचरी थी। सैन्य लक्ष्य स्पष्ट नहीं था, और सबसे बड़ी बात, इसे लेकर वायुसेना तक तैयार नहीं थी।
चीन से डर, पाकिस्तान पर जोश आंतरिक विफलता को ढकने का खेल
बीते एक दशक से मोदी सरकार चीन से टकराव के नाम पर लगभग खामोश है। गलवान जैसी घटनाओं पर भी जवाब देने से बचती रही। परंतु पाकिस्तान पर दिखाया गया आक्रोश अक्सर घरेलू राजनीति का औजार रहा है। इस बार भी आतंकी घटना पर सरकार ने गुस्सा चीन पर नहीं, पाकिस्तान पर निकाला। जबकि जांच एजेंसियों ने खुद संकेत दिया था कि हमला स्थानीय सहायता से हुआ और खुफिया तंत्र की नाकामी थी। सरकार जानती थी कि आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर उसे कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। ऐसे में ऑपरेशन सिंदूर एक ध्यान भटकाने वाली कार्रवाई थी, जो असल में ‘डैमेज कंट्रोल’ बनकर रह गई।
बालाकोट के बाद तैयार पाकिस्तान, इस बार चूक गया भारत
बालाकोट स्ट्राइक के वक्त पाकिस्तान को आशंका नहीं थी कि भारत उसकी सीमा में घुसकर हमला करेगा। पर इस बार वह सतर्क था। उसकी वायुसेना तैनात थी, रडार तैयार थे, और चीन से मिले आधुनिक विमानों तथा मिसाइलों ने भारतीय विमानों को दूर से ही चुनौती दी। भारत के पास मौजूद मिराज और सुखोई विमानों की रेंज 100-110 किमी है, जबकि पाकिस्तान ने जेएफ-17 और चीनी समर्थन से 125-150 किमी की मिसाइल रेंज हासिल कर ली है। ऐसे में भारतीय विमानों को टारगेट किए जाने का जोखिम बहुत अधिक था।
100 किमी रेंज बनाम 125 किमी मिसाइल भारतीय वायुसेना की बेबसी
इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक थी। हवाई प्रभुत्व की तैयारी के बिना हवाई हमला। भारतीय वायुसेना के पास लंबी दूरी से मिसाइल दागने वाली क्षमताएं सीमित हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास चीनी तकनीक से लैस एयर डिफेंस पहले से तैयार था। वायुसेना ने दूरी से बम गिराए, और तुरंत लौट आई। ऐसा नहीं था कि टारगेट को सटीकता से नष्ट किया गया हो। न ही सरकार ने कोई सैटेलाइट फोटो जारी किया, न ही थर्ड पार्टी पुष्टि। इस ‘एयर स्ट्राइक’ की सफलता का दावा सिर्फ गोदी मीडिया की स्क्रिप्ट में रहा।
ऑपरेशन सिंदूर विजय की गूंज नहीं, सिर्फ मिमियाहट!
जीत के बाद जश्न होता है, सरकारें गड़गड़ाहट में बोलती हैं। पर अगर कोई ऑपरेशन अपने ‘विजय’ के बाद भी सरकारी हलकों में अनमना मौन और मीडिया में लाउड लेकिन खोखला जयघोष पैदा करे, तो समझ लीजिए मामला गंभीर है। ऑपरेशन सिंदूर ऐसा ही एक सैन्य-पॉलिटिकल तमाशा बनकर सामने आया है, जिसमें न तो कोई स्पष्ट सैन्य लक्ष्य था, न कोई रणनीतिक तैयारी। बल्कि इसके परिणामस्वरूप भारत ने न केवल हवाई युद्ध में विमान गँवाए, बल्कि चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकी को भी मजबूती दी। यह एक ‘स्ट्रेटेजिक हार’ है, जिसे सत्ता ने प्रोपेगंडा से ढंकने की कोशिश की, मगर संसद की मिमियाहट ने सब कुछ उघाड़ दिया।
सिंदूर में लक्ष्य क्या था, जवाब से कतरा रही सरकार
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसका स्पष्ट मिलिट्री या रणनीतिक उद्देश्य क्या था। न तो कोई बेस तबाह हुआ, न आतंकी ठिकानों की पुष्टि हुई। तो फिर विमान क्यों भेजे गए, क्या यह सरकार की छवि बचाने की हड़बड़ी थी।
आंतरिक विफलता को ढकने की आतिशबाजी
कश्मीर में हुई आतंकी घटना दरअसल देश की आंतरिक सुरक्षा तंत्र की विफलता थी। लेकिन सवालों का सामना करने के बजाय सरकार ने सीमापार हमला कर के विमर्श को मोड़ने की चाल चली। यह चाल उलटी पड़ गई।
भारतीय वायुसेना के विमान बने चीनी हथियारों के टेस्ट केस
चीन निर्मित जेएफ-17 थंडर विमान और पीएल-15 मिसाइलों को पहली बार भारतीय विमानों के खिलाफ रियल-टाइम युद्ध में इस्तेमाल किया गया। भारत के आधुनिक कहे जाने वाले विमान मार खा गए। चीन-पाक गठजोड़ का यह पहला सफल कॉम्बैट डेमो बन गया।
सैन्य ‘स्ट्राइक’ से ज़्यादा राजनीतिक नौटंकी
मोदी सरकार ने असल सैन्य लक्ष्य से अधिक मीडिया और वोटबैंक का मनोविज्ञान साधने के लिए यह कदम उठाया। यही वजह है कि हमला आधा-अधूरा रहा और जल्दबाज़ी में रोक भी दिया गया।
संसद में मौन और मिमियाहट ‘विजय’ की जगह शर्म
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में इस ऑपरेशन पर बोले जरूर, मगर उनके शब्दों में आत्मविश्वास नहीं था। 40 बार पाकिस्तान का नाम, 21 बार कांग्रेस पर हमला, मगर कार्रवाई का कोई तथ्य नहीं। यह भाषण नहीं, ‘डिफेंस मैकेनिज्म’ था।
गोदी मीडिया ने युद्ध की जगह वीडियो गेम परोसा
जहां सरकार की घबराहट ने ऑपरेशन रोक दिया, वहीं मीडिया ने युद्ध का भौकाल बनाए रखने के लिए इस्लामाबाद और कराची को तबाह होते दिखाया। वो भी वीडियो गेम की फुटेज से, जनता को भ्रम में रखना, सरकार की छवि बचाना असली उद्देश्य था।
चीन-पाक की नजदीकी, भारतीय सैन्य मनोबल की गिरावट
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान और चीन को एक साथ ला खड़ा किया। दूसरी ओर भारतीय सेनाओं के मनोबल पर भी असर पड़ा। जनरलों के बयानों और प्रेस ब्रीफिंग्स में पसरा असहज मौन इसका प्रमाण है।
* कश्मीर में आतंकी हमला
* एनएसए की बैठक और अचानक ऑपरेशन सिंदूर का फैसला
* बिना रणनीतिक ब्रीफिंग के हमला
* सेना बनाम सरकार योजना विहीन सैन्य कार्रवाई
* वायुसेना की तैयारी और असमंजस
* जनरल स्तर पर चेतावनियां और अनसुनी सलाह
* ‘ब्लाइंड स्ट्राइक’ के आदेश का सैन्य असंतोष
* भारतीय वायुसेना के 2 से 5 विमान गवांए
* सरकार की ओर से कोई पुष्ट आंकड़ा नहीं
* पाकिस्तान में जश्न, भारतीय पक्ष में मौन
* मीडिया का युद्ध उत्सव, ग्राफिक्स और सीजीआई वीडियो
* सैन्य विश्लेषकों की अनुपस्थिति
* ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर आरटीआई से कतराना * संसद में सरकार का पलायनवादी रवैया
* विपक्ष के तीखे सवालों का गोलमोल जवाब
* रणनीतिक परिणाम चीन-पाक गठजोड़ की मजबूती
* सैन्य हार्डवेयर की टेस्टिंग सफलता
* भारत की वैश्विक छवि को आघात
* सेना और सरकार के बीच विश्वास में दरार
* राजनीतिक लाभ के लिए सैन्य बल का दुरुपयोग