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धर्मांतरण कानून की आड़ में मुसलमानों पर हो रहा प्रहार,बिना निष्पक्ष जाँच के ही भेज दिया जा रहा है जिला कारागार

उत्तर प्रदेश में 'घर वापसी' बनाम 'लव जिहाद' का खेल,धर्म विशेष के आरोपियों को दिया जा रहा रेल अनुज कुमार

 


2014 के बाद भारत में राष्ट्रवाद और धार्मिक अस्मिता की जो लहर राजनीतिक विमर्श पर हावी हुई, उसने धर्मांतरण को लेकर एक नई परिभाषा गढ़ दी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ के नाम पर बनाए गए सख्त धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आड़ में एकतरफा कार्रवाइयों का सिलसिला जारी है। एक ओर मुसलमानों और ईसाइयों पर कानून के शिकंजे कसे जा रहे हैं, तो दूसरी ओर ‘घर वापसी’ के नाम पर धर्मांतरण को एक उत्सव की तरह प्रचारित किया जा रहा है। वह भी बिना किसी कानूनी औपचारिकता के। धर्मांतरण का यह खेल अब महज धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांप्रदायिक रणनीति का हिस्सा बन चुका है, जहाँ कानून की धार केवल एक दिशा में चलती है।

कानून की किताब में समानता, जमीन पर दोहरे मापदंड

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2021 में लागू ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ का उद्देश्य बलपूर्वक, धोखे या प्रलोभन से धर्म परिवर्तन को रोकना बताया गया। लेकिन यह कानून जमीनी हकीकत में एक खास समुदाय को निशाना बनाने का हथियार बन चुका है।

धर्म परिवर्तन का कानूनी ढांचा सिर्फ कागजों में सख्त

कानून के तहत यदि कोई धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे दो महीने पहले जिलाधिकारी को सूचित करना होता है, विस्तृत आवेदन देना होता है, जिसकी जांच होती है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि मुस्लिम से हिंदू बने लोगों के मामलों में इस प्रक्रिया का शायद ही पालन होता है। कोई सार्वजनिक सूचना, कोई पुलिस जांच, कोई प्रमाण नहीं बावजूद इसके उन्हें ‘विजेता’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

‘घर वापसी’ प्रचार, पुरस्कार और पूर्ण छूट

‘घर वापसी’ के नाम पर हिन्दू संगठनों द्वारा संचालित अभियान पूरी तरह से धर्मांतरण की श्रेणी में आता है, लेकिन इन पर कभी कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों में इसे ‘धर्म की दीवार तोड़ने’, ‘प्रेम की जीत’ जैसे शब्दों से सजाया जाता है।

मुस्लिम से विवाह ‘लव जिहाद’, हिंदू से विवाह ‘घर वापसी’

मुस्लिम से विवाह ‘लव जिहाद’, हिंदू से विवाह ‘घर वापसी’ यही दोहरापन इस पूरी व्यवस्था की जड़ में है। जब कोई मुस्लिम युवक हिंदू युवती से विवाह करता है, तो उसे ‘लव जिहाद’ करार दिया जाता है। जबकि हिंदू युवक द्वारा मुस्लिम युवती से विवाह को ‘संस्कार’ और ‘संघर्ष की जीत’ का जामा पहनाया जाता है। यह विभाजन संविधान और न्याय के मूल सिद्धांतों की खुली अवमानना है।

गिरफ्तारी के आंकड़े कानून की दिशा को बताते हुए

वर्ष 2020 से 2024 तक केवल उत्तर प्रदेश में 835 मामले दर्ज हुए, जिनमें 1,682 लोग गिरफ्तार हुए। इनमें से लगभग सभी आरोपी मुसलमान हैं। वहीं इस अवधि में किसी हिंदू संगठन, कार्यकर्ता के खिलाफ कोई गिरफ्तारी दर्ज नहीं हुई, भले ही ‘घर वापसी’ खुलेआम होती रही हो।

कानून बनाम प्रचार सोशल मीडिया की भूमिका

‘घर वापसी’ को खुलेआम सोशल मीडिया पर ब्रांड किया जाता है। यूट्यूब चैनल, इंस्टाग्राम पेज, और फेसबुक समूह इसे ‘हिंदू धर्म की जीत’ बताकर परोसे जाते हैं। वहीं जब मुस्लिम युवकों से जुड़ा मामला आता है, तो ‘हुआं-हुआं म्यूजिक’ और ‘लव जिहाद’ की हेडिंग के साथ सनसनी फैलाई जाती है। यही विभाजन मानसिकता तैयार करता है।

तथाकथित पीड़ित और दो गवाह है गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त

किसी पर धर्मांतरण का आरोप लगाने के लिए किसी मजबूत सबूत की आवश्यकता नहीं है। केवल कथित पीड़ित और एक-दो गवाह पर्याप्त हैं, और पुलिस तत्काल कार्रवाई में जुट जाती है। इस कानून के जरिए किसी को भी प्रताड़ित करना बेहद आसान बना दिया गया है।

धार्मिक आत्मविश्वास की कमी या राजनैतिक डर का उत्पाद

‘घर वापसी’ की जरूरत और ‘धर्मांतरण विरोधी कानून’ की आड़ में मुस्लिमों पर हमले यह दर्शाते हैं कि सत्ताधारी शक्तियों को अपने धर्म की स्वाभाविक श्रेष्ठता पर भरोसा नहीं है। उन्हें डर है कि कहीं लोग स्वेच्छा से अपना धर्म न बदल लें। यह डर कानून के रूप में तब्दील होकर सामाजिक विभाजन और धार्मिक दमन का औजार बन गया है।

1. धर्मांतरण विरोधी कानून का कानूनी खाका
* अधिनियम की मूल धाराएं
* प्रक्रिया और कानूनी औपचारिकताएं
* उद्देश्य बनाम ज़मीनी क्रियान्वयन

2. धार्मिक पहचान और राजनीति का गठजोड़

* भाजपा शासित राज्यों में इस कानून का उपयोग ‘राजनीतिक उद्देश्यों’ से किया जा रहा है
* चुनावी भाषणों और जनसभाओं में इस कानून की भूमिका

3. गिरफ्तारी और अभियोजन के आंकड़े

* पुलिस रिकॉर्ड्स और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से केसों का विवरण
* सांप्रदायिक भेदभाव के विश्लेषण के साथ

4. मीडिया और ‘धार्मिक नाट्य मंच’

* सोशल मीडिया और न्यूज चैनल ‘धर्म परिवर्तन’ की घटनाओं को एजेंडा आधारित ढंग से प्रस्तुत करते हैं
* ‘प्यार में धर्म की दीवार गिरी’ बनाम ‘लव जिहाद’ जैसी हेडलाइनों की भूमिका

5. ‘घर वापसी’ की असंवैधानिकता पर चुप्पी

* एक ही कानून की व्याख्या दो अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग
* ‘प्रलोभन’, ‘विवाह’ और ‘मनोवैज्ञानिक दबाव’ की स्पष्ट व्याख्या के बावजूद कार्रवाई नहीं

6. मुस्लिम विरोधी कानूनों की श्रृंखला की एक कड़ी

* एनआरसी, सीएए, तीन तलाक, हिजाब प्रतिबंध, मदरसा सर्वेक्षण और अब धर्मांतरण कानून
* सबका साझा उद्देश्य एक वर्ग विशेष को डराना और सामाजिक बहिष्कार की स्थिति उत्पन्न करना
* भारत के संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। यह कानून उन अधिकारों का उल्लंघन करता है
* धर्मांतरण कानून शासन का भय, धर्म की असुरक्षा

संविधान के मूलभूत सिद्धांतों समानता, स्वतंत्रता और न्याय का घोर उल्लंघन

धर्मांतरण कानून को अगर निष्पक्षता से लागू किया जाता, तो यह धर्म की रक्षा का औजार बन सकता था। लेकिन इसके मौजूदा स्वरूप और प्रवर्तन से यह साफ हो गया है कि यह कानून एक धर्म विशेष को लक्षित करने और दूसरे को संरक्षण देने का माध्यम बन गया है। यह संविधान के मूलभूत सिद्धांतों समानता, स्वतंत्रता और न्याय का घोर उल्लंघन है। ‘धर्मांतरण खेल’ असल में भारत में उभरते एकतरफा धार्मिक वर्चस्व और लोकतंत्र की खस्ताहाली का नया चेहरा है।

* वर्ष 2014 के बाद राष्ट्रवाद और धार्मिक अस्मिता के नाम पर धर्मांतरण का नया राजनीतिक विमर्श
* भाजपा शासित राज्यों में धर्मांतरण को लेकर कानून का एकतरफा उपयोग
* ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ की आड़ में मुस्लिम-ईसाई समुदायों को टारगेट करना
* उत्तर प्रदेश में 2021 का ‘विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’
* बल, प्रलोभन या धोखे से धर्म परिवर्तन रोकने की बात
* मुस्लिमों के खिलाफ त्वरित गिरफ्तारी, हिंदू संगठनों को छूट
* ‘घर वापसी’ बनाम ‘लव जिहाद’ का दोहरापन
* हिंदू युवक-मुस्लिम युवती का विवाह ‘घर वापसी’ या ‘संस्कार’
* एक ही घटना के दो अलग नैरेटिव, दो तरह की पुलिस और मीडिया प्रतिक्रिया
* गिरफ्तारी और मुकदमों के आंकड़े मुसलमानों पर शिकंजा
* वर्ष 2020–2024: 835 केस, 1682 गिरफ्तारियां ज्यादातर मुस्लिम
* हिंदू संगठनों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं, ‘घर वापसी’ पर मौन
* कानूनी प्रक्रिया का भेदभावपूर्ण अनुपालन
* मुस्लिम से हिंदू बनने पर कोई सूचना, जांच या प्रमाण नहीं
* हिंदू से मुस्लिम बनने पर कानूनी औपचारिकताओं की मांग और दबाव
* हिंदू धर्म की ‘विजय’ के रूप में धर्मांतरण का उत्सव
* मुस्लिमों से जुड़ा धर्म परिवर्तन ‘लव जिहाद’ और खतरा करार
* ‘घर वापसी’ की असंवैधानिकता पर संस्थागत चुप्पी
* समान कानून, दो व्याख्याएं यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 25 का उल्लंघन
* मुसलमानों में भय, बहिष्कार और नागरिक असमानता
* धर्मांतरण कानून धार्मिक असुरक्षा और सत्ता संरक्षित वर्चस्व का औजार
* आत्मविश्वासहीन सत्ताधारी ताकतें अपनी धार्मिक श्रेष्ठता थोपने के लिए कर रही कानून का उपयोग
* लोकतंत्र की नींव समानता, स्वतंत्रता और न्याय हो रही है कमजोर
* धर्मांतरण कानून की निष्पक्षता नहीं, राजनीतिक रणनीति प्रमुख
* यदि कानून सभी पर समान रूप से लागू होता, तो यह धर्म-सुरक्षा का उपकरण होता
* मौजूदा हालात में यह कानून धर्म विशेष पर दमन और दूसरे धर्म के प्रचार का साधन

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