
~ जिला अस्पताल चन्दौली में जारी है गरीबों का दोहन, आयुष्मान कार्ड से फर्जी वसूली का काला खेल
~ मुफ्त इलाज योजना बनी गरीबों की जेब काटने का हथियार
~ बिल्ली काटने की सुई पर वसूले 1870 रुपए की
~ सीएमएस की चुप्पी ने बढ़ाया संदेह
~ अस्पताल में इलाज की सूची न होने से बढ़ी धांधली
~ गरीब मरीजों का शोषण, योजना का उद्देश्य ध्वस्त
~ जांच हुई तो खुलेंगे जिला अस्पताल के गहरे राज
चकिया (चंदौली)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत (प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) गरीबों और वंचित वर्गों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू हुई थी। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि जिला अस्पताल के कर्मचारी और प्रशासन इसी योजना को गरीबों की जेब काटने का हथियार बना चुके हैं। चकिया निवासी शमशेर ने आरोप लगाते हुए बताया कि बिल्ली काटने की एक साधारण सुई लगवाने के दौरान अस्पताल ने उनका अंगूठा आयुष्मान कार्ड मशीन पर लगवाया और खाते से 1870 रुपए काट लिया। शिकायत पर अस्पताल प्रबंधन ने लीपापोती की और पीड़ित को ही भटकने पर मजबूर कर दिया। मामला सामने आने के बाद गरीब मरीजों में गुस्सा और निराशा है कि आखिर सरकार की ‘गरीब-हितैषी योजना’ का फायदा किसे मिल रहा है।
- आयुष्मान कार्ड योजना से मुफ्त इलाज का दावा, लेकिन वसूले जा रहे हैं पैसे।
- शमशेर से बिल्ली काटने की सुई के लिए 1870 रुपए की कटौती।
- सीएमएस ने शासन का हवाला देकर जिम्मेदारी टाली।
- अस्पताल में उपचार की कोई सूची सार्वजनिक नहीं।
- उपजिलाधिकारी ने जांच का आश्वासन दिया।
- मामले ने स्वास्थ्य सेवाओं की पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े किए।
मुफ्त इलाज का वादा, लेकिन हकीकत उलट
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की थी तो दावा किया गया था कि देश के करोड़ों गरीबों को इससे राहत मिलेगी। पांच लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलने की बात कही गई। यह योजना गरीबों और वंचितों के लिए वरदान साबित होगी। लेकिन चंदौली जिले के संयुक्त जिला चिकित्सालय चकिया की हकीकत सामने आने के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह योजना वास्तव में गरीबों को राहत दे रही है, या फिर अस्पताल और प्रशासन इसे ‘कमाई का नया जरिया’ बना चुके हैं।
शिकायतकर्ता की आपबीती
चकिया नगर निवासी शमशेर ने बताया कि कुछ दिन पहले उन्हें बिल्ली ने काट लिया था। इलाज के लिए वे सीधे जिला संयुक्त चिकित्सालय चकिया पहुंचे। वहां डॉक्टर ने बिल्ली काटने की सुई (रेबीज इंजेक्शन) लगवाने की सलाह दी। आमतौर पर यह इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों में मुफ्त मिलता है। लेकिन यहां स्थिति बिल्कुल उलट थी। अस्पताल के कर्मचारियों ने उनसे कहा कि अंगूठा आयुष्मान कार्ड मशीन पर लगाना होगा। शमशेर को लगा कि शायद यह रजिस्ट्रेशन या सत्यापन की प्रक्रिया है। लेकिन कुछ ही देर में उनके खाते से 1870 रुपए कट जाने का मैसेज आया जिसको देख शमशेर हतप्रभ रह गए। उन्होंने तुरंत सीएमएस से शिकायत की लेकिन वहां से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा यह कहकर पल्ला झाड़ लिया गया कि शासन के निर्देश पर ही कार्ड से पैसा काटा गया है।
सीएमएस की सफाई और संदेह
जब इस मामले पर अस्पताल के सीएमएस से बात की गई तो उन्होंने कहा कि शासन के निर्देशों के अनुसार ही आयुष्मान कार्ड से भुगतान लिया गया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि रेबीज इंजेक्शन जैसी बुनियादी और सामान्य दवा पर 1870 रुपए कैसे वसूले गए?
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि यदि शासन के ही निर्देश हैं तो अस्पताल में इलाज की दरों और सुविधाओं की सूची सार्वजनिक क्यों नहीं लगाई गई? आखिर मरीजों को यह अधिकार क्यों नहीं कि वे पहले से जान सकें कि कौन-सा इलाज योजना के तहत मुफ्त है और किस पर कितना शुल्क लगेगा।
पारदर्शिता का अभाव
जिला अस्पताल में यह पहली बार नहीं है जब आयुष्मान कार्ड को लेकर अनियमितताओं के आरोप लगे हों। मरीजों का कहना है कि अस्पताल में न तो किसी तरह की दर सूची लगाई गई है, न ही किसी को यह बताया जाता है कि उनका इलाज मुफ्त होगा या नहीं। अधिकांश मरीज गरीब होते हैं, जिन्हें न योजना की तकनीकी जानकारी है, न यह पता कि अस्पताल किस तरह उनकी जेब काट सकता है। योजना का उद्देश्य गरीबों को राहत देना था, लेकिन यहां यह ‘धन उगाही का जरिया’ बन चुकी है।
जांच का आश्वासन, लेकिन नतीजा संदिग्ध
मामला उपजिलाधिकारी चकिया तक पहुंचा और लिखित शिकायत दी। एसडीएम ने निष्पक्ष जांच का आश्वासन तो दिया है, लेकिन जब सीएमएस खुद इस गड़बड़ी को शासन की प्रक्रिया बताकर बच निकलने की कोशिश कर रहे हैं, तो क्या वाकई निष्पक्ष जांच हो पाएगी। अगर ईमानदारी से जांच हुई तो निश्चित तौर पर जिला अस्पताल की पोल खुल जाएगी कि कैसे गरीबों के नाम पर करोड़ों की योजना को लूट का अड्डा बनाया गया है।




