डीडीयू जंक्शन : कानून के साए में अपराध का शोर,सब एक से बढ़ कर एक घूसखोर
आरपीएफ–जीआरपी गठजोड़ से फल-फूल रहा अवैध कारोबार

~ वेंडरिंग, शराब तस्करी और कोयला चोरी का खुला खेल, प्रशासन मौन
~ जब सुरक्षा बल ही अपराध के साझेदार बन जाए
~ डीडीयू जंक्शन देश की धुरी, अब माफियाओं का गढ़
~ शराब तस्करी इस जंक्शन की सबसे कुख्यात सच्चाई बनी
~ त्योहारों, चुनावों या सूखे दिनों में शराब की खेप ट्रेनों के जरिए पहुंचाई जाती हैं
चंदौली/डीडीयू नगर। पूर्वी उत्तर प्रदेश का गौरव कहलाने वाला पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (मुगलसराय) आज रेलवे सुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही का सबसे काला उदाहरण बन चुका है। एशिया का सबसे बड़ा रेलवे जंक्शन जहां से रोजाना सैकड़ों ट्रेनें गुजरती हैं, लाखों यात्री सफर करते हैं और करोड़ों की माल ढुलाई होती है अब अवैध कारोबार, माफियागिरी और भ्रष्टाचार का संगठित अड्डा बन चुका है। यहां अवैध वेंडरिंग, शराब तस्करी, कोयला चोरी और वसूली का नेटवर्क दिनदहाड़े चलता है। यह सब होता है आरपीएफ और जीआरपी की नाक के नीचे। जिनका कर्तव्य इस स्टेशन की सुरक्षा है। लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो जनता किससे उम्मीद करे।
डीडीयू जंक्शन चंदौली जिले की पहचान और रेलवे की रीढ़
हर दिशा की ट्रेनों का संगम, भारी माल ढुलाई, विशाल यार्ड, और असंख्य स्टाल सब कुछ इस स्टेशन को देश की धड़कन बनाते हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह स्टेशन रेलवे अपराधियों का किला बन गया है। यहां नियम नहीं रेट कार्ड चलता है। वेंडिंग से लेकर शराब की खेप तक हर अवैध काम की तय कीमत है। सूत्रों की मानें तो स्टेशन के हर प्लेटफॉर्म, यार्ड और आउटर तक पर ‘कारखासों’ और दलालों का सिंडिकेट बैठा है जो रोजाना लाखों रुपए की उगाही करता है।
अवैध वेंडरिंग का साम्राज्य हर प्लेटफॉर्म पर वसूली का ठेका
रेलवे नियमों के अनुसार केवल अधिकृत वेंडर ही प्लेटफॉर्म पर वस्तुएं बेच सकते हैं, और वह भी निर्धारित दर पर। मगर डीडीयू जंक्शन पर यह नियम सिर्फ कागजों में है। यहां बिना रजिस्ट्रेशन वाले दर्जनों फेरीवाले खुलेआम चाय, पानी, तंबाकू, सिगरेट, यहां तक कि शराब तक बेचते हैं। इनसे रोजाना बाकायदा वसूली होती है। सूत्र बताते हैं कि अशोक नामक कारखास, साथ में बबलू और मल्लू चौहान इस वसूली नेटवर्क को संचालित करते हैं। वेंडर, ठेले वाले, यहां तक कि स्टाल संचालक सभी को ‘सेटिंग’ करनी पड़ती है।
जो हिस्सा नहीं देता, उसका सामान जब्त कर लिया जाता है, और अनधिकृत वेंडिंग के नाम पर चालान काट दिया जाता है।
शराब तस्करी डिब्बों में बोतलें, सिपाही बने रखवाले
डिब्बों में पैकेट छिपाकर भेजे जाते हैं, और गाड़ियों से उतरते ही प्लेटफॉर्म पर उनका सौदा हो जाता है। कई यात्रियों ने ट्रेन के अंदर ही बोतल बिकते देखा है। आरपीएफ और जीआरपी जवान प्लेटफॉर्म पर मौजूद रहते हैं, पर आंख मूंद लेते हैं। कारण हर खेप का ‘हिस्सा तय’ है। प्रत्येक बोतल की ‘सेफ पासिंग’ के लिए सुरक्षा बल का अपना कमीशन तय है। यही कारण है कि कार्रवाई केवल दिखावे की होती है या छोटे वाहकों तक सीमित रहती है। मुख्य कारोबारी और उनके संरक्षक हमेशा सुरक्षित रहते हैं।
कोयला चोरी सरकारी खजाने पर रात का डाका
डीडीयू जंक्शन देश के सबसे बड़े कोयला ट्रांजिट पॉइंट्स में से एक है। झारखंड और पूर्वी कोलफील्ड्स से आने वाली मालगाड़ियां यहां से रोजाना गुजरती हैं। रात के अंधेरे में इन्हीं गाड़ियों से कोयले की बोरियां गिराई जाती हैं, और ट्रकों में भरकर पास के गांवों से बाहर भेज दी जाती हैं। यह चोरी न तो किसी फिल्म की कहानी है, न किसी पुराने किस्से की यह आज का जीवंत सच है।सूत्रों के अनुसार, हर माह लाखों रुपए का कोयला चोरी होता है, स्थानीय गिरोह, कुछ मालवाहक ड्राइवर, आरपीएफ चौकी, और यार्ड क्लर्क तक सबकी हिस्सेदारी तय रहती है। इसे कहा जाता है ‘साझेदारी मॉडल’ की लूट।
आरपीएफ और जीआरपी का गठजोड़ अपराध का सरकारी फ्रेमवर्क
रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था में दो प्रमुख एजेंसियां हैं एक आरपीएफ जिसका काम रेलवे संपत्ति और माल की सुरक्षा। दूसरी जीआरपी जिसका काम यात्रियों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था का। सिद्धांत रूप में दोनों को मिलकर सुरक्षा करनी चाहिए, लेकिन डीडीयू जंक्शन पर यह जिम्मेदारी साझेदारी में बदल गई है। कभी कभी दिखावे के लिए दोनों विभागों में टकराव होता है, ताकि जनता को लगे कि कार्रवाई हो रही है। पर असल में, यह ‘कमीशन का झगड़ा’ होता है। कुछ महीनों पहले ऐसी ही खींचतान में कुछ नाम सामने आए, पर मामला सुलह में निपट गया। अब दोनों विभाग ‘वर्किंग अंडरस्टैंडिंग’ में हैं यानी, हर अपराध की अपनी कीमत तय है और हर हिस्से का बंटवारा भी।
मास्टरमाइंड पप्पू उर्फ ठेकेदार नेटवर्क का ‘बॉस’
डीडीयू जंक्शन के इस अंधेरे साम्राज्य का असली कर्ताधर्ता बताया जाता है पप्पू उर्फ ठेकेदार।
उसके सहयोगी आशीष और विजय के जरिए पूरा संचालन चलता है। कौन वेंडर बैठेगा, कौन सा स्टाल चलेगा, कितना पैसा वसूला जाएगा, किस दिन शराब की खेप उतरेगी सब कुछ इस सिंडिकेट के इशारे पर तय होता है। कहा जाता है कि इनका सीधा संपर्क आरपीएफ के कुछ अधिकारियों तक है, जो सुरक्षा के नाम पर संरक्षण देते हैं। जो कोई विरोध करता है, उसे स्टेशन से बाहर कर दिया जाता है।
राजनीतिक संरक्षण ‘ऊपर तक पहुंच’
यह कोई छिपी बात नहीं कि जंक्शन का यह खेल राजनीतिक सुरक्षा कवच में पलता है। जब-जब स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई,
तब-तब जांच कराई जाएगी का वही पुराना बयान आया। जांच होती है, तो छोटे–मोटे फेरीवाले पकड़ लिए जाते हैं। दो चार शराब की बोतलें जब्त करके फोटो खिंचवा दी जाती हैं, और फाइलें ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। कोई अधिकारी यह नहीं बताता कि वसूली करने वाले कारखास कौन हैं, किसके आदेश पर शराब का स्टॉक उतरता है, किसकी गाड़ी में कोयला चोरी का माल जाता है।
असुरक्षा, लूट और धोखाधड़ी का यात्रियों पर असर
डीडीयू जंक्शन का यह अपराध नेटवर्क सीधे यात्रियों और छोटे व्यवसायियों को प्रभावित करता है। अवैध वेंडरिंग से यात्रियों को घटिया और महंगा सामान मिलता है। शराब तस्करी से स्टेशन अपराधियों का ठिकाना बन गया है। कोयला चोरी से रेलवे की माल ढुलाई प्रभावित होती है, जिससे राजस्व नुकसान होता है। अवैध वसूली से असली वेंडर और लाइसेंसधारी दुकानदार बर्बाद हो रहे हैं। यह केवल आर्थिक या प्रशासनिक समस्या नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा का संकट है। जब रेलवे पुलिस ही तस्करों की रखवाली करे, तो यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे रह जाती है।
डीडीयू जंक्शन नहीं, अपराध का नेटवर्क
डीडीयू जंक्शन पर अब सवाल केवल अवैध वेंडरिंग या शराब की बोतलों तक सीमित नहीं रहा। यह रेलवे तंत्र के भीतर बैठी सड़ी हुई मानसिकता और संगठित भ्रष्टाचार की कहानी है। जब एक स्टेशन पर ही कानून, प्रशासन और अपराध का यह गठजोड़ दिखता है, तो बाकी छोटे स्टेशनों की कल्पना करना मुश्किल नहीं। यह वही सिस्टम है जिसमें अपराधी ठेकेदार बन गया है, कारखास अधिकारी का दाहिना हाथ है, और जनता सिर्फ शिकार है। अगर केंद्र सरकार और रेलवे बोर्ड इस पर कठोर कदम नहीं उठाते, तो आने वाले दिनों में रेलवे स्टेशन सिर्फ सफर का पड़ाव नहीं, बल्कि अपराधियों का ठिकाना बन जाएंगे।
- डीडीयू जंक्शन एशिया का सबसे बड़ा स्टेशन, पर अवैध कारोबार का हब।
- अवैध वेंडरिंग हर फेरीवाले से रोज वसूली अधिकारी तक हिस्सा।
- शराब तस्करी डिब्बों में खेप, सिपाही रखवाले।
- कोयला चोरी लाखों की सरकारी हानि, आरपीएफ की मिलीभगत।
- आरपीएफ–जीआरपी गठजोड़ कानून के बजाय ‘कमाई’ का अनुबंध।
- मास्टरमाइंड पप्पू उर्फ ठेकेदार नेटवर्क का संचालन आरपीएफ संरक्षण में।
- राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण जांच का नाटक, परिणाम शून्य।
- सार्वजनिक असर यात्रियों की सुरक्षा खतरे में, सिस्टम पर भरोसा खत्म।




