उत्तर प्रदेश

फतेहपुर मकबरा कांड में भगवाई गुंडों पर ढिलाई, बरेली में मुसलमानों पर लाठियां चटकवाई, योगी जी आप को शर्म न आई

अंशिका मौर्या

 

~ आई लव मुहम्मद पर लाठी, मकबरे पर मूक सुरक्षा, यूपी सरकार की दोगली नीति बेनकाब

~ बरेली में मुसलमानों पर दमन, फतेहपुर में हिंदू संगठनों की तोड़फोड़ पर पुलिस की चुप्पी

~ यूपी में ‘बुलडोजर राज’ का सांप्रदायिक चेहरा

~ तहजीब का पतन और सत्ता का विभाजन

 

 

वह प्रदेश जो कभी गंगा-यमुना की तहजीब, सभी धर्मों की अमीरी और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक माना जाता था। आज योगी आदित्यनाथ के ‘बुलडोजर राज’ में सांप्रदायिक विभाजन की बलि चढ़ता नजर आ रहा है। 26 सितंबर 2025 को बरेली में शांतिपूर्ण जुलूस निकालने वाले मुसलमानों पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस शेल और दर्जनों एफआईआर दाग दीं। वहीं दूसरी ओर फतेहपुर में सदियों पुराने मकबरे पर हिंदू संगठनों द्वारा तोड़फोड़ की गई और पुलिस घुटने टेक कर तमाशा देखती रही। ये दो घटनाएं मात्र अल्पकालीन विवाद नहीं हैं। यह उस नीति की अभिव्यक्ति हैं जो एक समुदाय को ‘अनुशासन’ सिखाती है और दूसरे को ‘उन्माद’ की आजादी देती है। योगी सरकार की धर्मनिरपेक्षता केवल स्वांग है, उसकी असलियत दमन और पक्षपात है। अब उत्तर प्रदेश का सवाल यह नहीं कि कानून या संवेदनशीलता किस और झुकेगी बल्कि यह है कि कानून अपने आप में कहीं टिक पाएगा भी या नहीं।

बरेली में आई लव मुहम्मद से दमन का पाठ

‘आई लव मुहम्मद’ अभियान की घोषणा के बाद बरेली की जमीन धड़क उठी। जुमे की नमाज के बाद इस्लामिया ग्राउंड के पास बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक हजार से अधिक प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की, पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस का प्रयोग किया। 50 से अधिक गिरफ्तार हुए और 10 पुलिसकर्मी घायल हुए। पुलिस ने दावों के अनुसार, 10 एफआईआर दर्ज की, 180 नामित व 2,500 बेनाम लोगों पर मुकदमा दर्ज कराया गया। 81 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिनमें मुख्य धार्मिक व सामाजिक व्यक्तियों के नाम भी शामिल हैं। सूचना के प्रचार और तनाव नियंत्रण के नाम पर इंटरनेट सेवा 48 घंटे के लिए बंद कर दी गई। इस पूरे घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़े स्वर में चेतावनी दी नियम तोड़ने वालों की सजा तय होनी चाहिए। खास बात यह है कि जुलूस शांतिपूर्ण प्रदर्शन घोषित किया गया था। लेकिन पुलिस ने उसे हिंसात्मक प्रदर्शन में बदल दिया। क्या एक ही ‘प्रदर्शन’ को मुसलमानों के लिए दमन माना जाना चाहिए, और हिन्दू संगठनों के सड़कों पर जुलूस निकालने को ‘धार्मिक उत्साह’।

फतेहपुर की कब्रों पर भगवा उन्माद पुलिस मौन

अगस्त 2025 में फतेहपुर जिले में एक शताब्दी पुराना मकबरा (कब्र) तोड़ दिया गया। आरोप था कि कब्र के नीचे हिंदू मंदिर था और यह अवैध निर्माण है। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि भीड़ ने पत्थर फेंके, भगवा झंडे फहराए और कब्र को क्षतिग्रस्त किया। डेक्कन हेराल्ड ने बताया कि दो धार्मिक शरियों को पत्थरों व लाठियों से तोड़ा गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे मौका विवाद कहा, और कार्रवाई नगण्य रही। पुलिस ने ‘समझाने’ की कोशिश की, लेकिन कोई तीव्र प्रवृत्ति नहीं दिखी। इस मकबरे की घटना के बाद सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल हुईं और तनाव बढ़ा। संकेत मिलता है कि पुलिस ने तोड़फोड़ के दौरान न तो हस्तक्षेप किया और न ही किसी को रोकने का प्रयास किया। हालांकि यह मामला मामूली अतिक्रमण के दावे में पेश किया गया पर यह दावा और कार्रवाई की प्रतिक्रिया असंतुलित और पक्षपाती थी। अगर एक समुदाय की धार्मिक विधियों पर आपत्ति हो, तो दमन और जब विपक्ष की धार्मिक संपत्ति पर हमला हो, तो मौका-ए-विवाद।

दमन और संरक्षण का कॉम्बिनेशन

इन दोनों घटनाओं में एक पैटर्न स्पष्ट दिखता है कि मुसलमानों को प्रदर्शन की अनुमति नहीं, हिंदू संगठनों पर कब्रों पर कब्जा, तोड़फोड़, और सरकारी लापरवाही। पुलिस और प्रशासन की प्राथमिक चुप्पी और निम्न स्तरीय कार्रवाई। राष्ट्रवाद, धर्म और सुरक्षा नाम पर संवेदनशील विभाजन। यह केवल घटनाएं नहीं हैं यह नीति है। जब अल्पसंख्यक ‘प्रदर्शन’ करें, तो उन्हें ‘उकसाने वाला’ कहा जाए, और जब बहुसंख्यक ‘क्रियाएं’ करें तो उन्हें ‘धार्मिक उत्साही’ कहा जाए। इस दोहरे चरित्र वाद ने राज्य की सुरक्षा मशीनरी को साम्प्रदायिक बना दिया है, और जनता के विश्वास को खोखला कर रहा है।

पुलिस रक्षक नहीं, दमन का उपकरण

पुलिस बलों की भूमिका यहां त्रासदीपूर्ण बन गई वो जो सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले थे, अब दमन और चयनात्मक कार्रवाई के उपकरण बन गए हैं। बरेली में, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया जबकि इंटरनेट सेवा बंद और ऑल-आउट दबाव की तैयारी की गई। फतेहपुर में पुलिस मौके पर थी, पर उन्होंने कार्रवाई न करके स्थिति को बेकाबू होने दिया या कहा जाए कि उन्होंने कार्रवाई न करके समर्थन दिया। यह एक भयावह संकेत है। जब कानून प्रवर्तन एजेंसियां न्याय नहीं, उद्देश्य की सेवा करें, तो नागरिक सुरक्षा खत्म हो जाती है।

राजनीति का असर सत्ता, इमेज और विभाजन

यह सब अकेले प्रशासनिक स्तर पर संचालित नहीं हो रहा इसके पीछे राजनीतिक प्रेरणा और इमेज मैनेजमेंट है। योगी आदित्यनाथ, जिनकी छवि हिंदुत्व और सख्ती की रही, उन्होंने कहा था मस्जिदों के मौलवी हों या माफिया, सब ठीक किए जाएंगे। लेकिन ‘ठीक’ किसे कहा जाए वही निर्णय करने की शक्ति प्रशासन को मिली है। इस छवि के तहत, अल्पसंख्यकों को ‘उत्साही’, ‘घुसपैठिए’ या ‘उकसाने वाले’ कहा जाता है। बहुसंख्यक संगठन धार्मिक प्रतिष्ठा की बुलंदी पर खड़े रहते हैं। यह राजनीतिक जमीन तैयार करने की रणनीति है जहां विभाजन बढ़े, और विपक्ष कमजोर हो।

संवैधानिक दायित्व और कानून की चुप्पी

संविधान भारत को धर्मनिरपेक्ष बोलता है। लेकिन जब राज्य व्यवस्था को धर्म विशेष के पक्ष में मोड़ दिया जाए,
तो संविधान की आत्मा नाचती है। न्यायालय ने पहले ही ‘बुलडोजर न्याय’ की आलोचना करते हुए कहा कि कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करना, अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। लेकिन जब प्रशासन सर्वोच्च न्यायालय की अनदेखी करे, तो संविधान स्वयं ही अपमानित हो जाता है। प्रत्येक नागरिक को भेदभाव और कट्टरपंथ से सुरक्षित रहने का अधिकार है। लेकिन जब सुरक्षा बल खुद पक्षपाती हों, तो कानून केवल नाम का ही रह जाता है।

जन असंतोष और सामाजिक प्रतिक्रिया

इन घटनाओं ने समाज में भय और निराशा पैदा की है।
मुस्लिम संगठनों ने बरेली की लाठीचार्ज की निंदा की।
पसमांडा मुस्लिम समाज ने शांति की अपील की।
लेकिन सरकार की चुप्पी और कार्रवाई की कमी ने उन्माद को हवा दी है। संघर्ष की आवाजें लोकप्रिय मंचों पर, सोशल मीडिया पर, विरोध सभाओं में उठने लगी हैं। जिस प्रदेश में समरसता की गंगा बहती थी, वहीं अब जहर की बूंदे गिर रही हैं। क्या यह राज्य सत्ता विभाजन की राजनीति करेगी, या एकता की रीढ़ बनेगी।

भविष्य की चुनौती लोकतंत्र बचाना है तो पक्षपात छोड़ो

अब सवाल यह नहीं कि ये घटनाएं सही हैं या गलत
बल्कि यह कि राज्य नीति किस ओर झुकेगी। उत्तर प्रदेश में 20 प्रतिशत आबादी मुसलमान की है, वह खुद को विभाजन की आग में देखने लगा है। अभी दो साल बचे हैं 2027 के चुनाव में। योगी सरकार यह सोच रही है कि ‘हिंदू एकता’ की राजनीति से सत्ता बरकरार रहेगी।या फिर समय आ गया है कि सरकार भेदभाव के प्रतिदान से दूर हो और संविधान की गरिमा बहाल करे। देश की नजरें अब इस पर टिकी हैं कि प्रशासन सभी समुदायों पर समान कार्रवाई करेगा या नहीं। न्यायपालिका की भूमिका से पुलिस ऊपर न जाए। सरकार नफरत की राजनीति छोड़, न्याय की राजनीति अपनाए।

  • बरेली में ‘आई लव मुहम्मद’ जुलूस पर पुलिस दमन पत्थरबाजी के आरोप के बहाने लाठी, आंसू गैस, 50 से ज्यादा गिरफ्तारी।
  • सूचना नियंत्रण के नाम पर 48 घंटों की इंटरनेट बंदी।
  • फतेहपुर में मकबरे पर तोड़फोड़ धार्मिक संपत्ति पर पुलिस निष्क्रिय, कार्रवाई नाममात्र।
  • दोगली नीति प्रदर्शन पर मुसलमानों पर दमन, तोड़फोड़ पर हिंदू संगठनों को संरक्षण।
  • पुलिस बनी दमन का उपकरण, सुरक्षा एजेंसियां रक्षक नहीं दमनकर्ता बनीं।
  • राजनीति और विभाजन की रणनीति धर्म के नाम पर सत्ता रक्षा।
  • समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता का अपमान संविधान की उपेक्षा।
  • जन प्रतिक्रिया और लोकतंत्र का संकट विभाजन की चुनौतियां बढ़ती जाएंगी।

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