बलिया पुलिस द्वारा पत्रकार पर फर्जी मुकदमे का खेल, डीजीपी का आदेश हुआ फेल
बलिया में पत्रकार की खबर बनी पुलिस की ताकत को चुनौती

~ नाबालिग को भगाने की रिपोर्ट पर राजू गुप्ता को धमकी
~ थाना प्रभारी संजय सिंह को हटाने की मांग तेज
~ पत्रकारों ने काली पट्टी बांधकर किया विरोध, डीएम को सौंपा ज्ञापन
~ ‘पीड़ित ही बना आरोपी’ खबर पर राजू गुप्ता पर पुलिसिया उत्पीड़न
~ थाना प्रभारी संजय सिंह को थाने में बुलाकर धमकाने और गाली देने का आरोप
~ बलिया पुलिस का प्रेस पर दोहरा रवैया सवाल पूछने वालों को निकाला दायरे से
~ पत्रकारों ने कहा बलिया में लागू है ‘मीडिया पर अघोषित आपातकाल’
~ अपराध से सम्बन्धित पुलिस से सवाल पूछना पत्रकारों के लिए बना काल
~ पत्रकार उत्पीड़न के खिलाफ बिल्थरारोड, रसड़ा, मनियर में भी विरोध शुरू
~ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की
~ डीआईजी व डीजीपी को भेजा ज्ञापन
~ जब सच लिखना जुर्म हो जाए
कंचन सिंह…..
बलिया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक पत्रकार द्वारा लिखी गई खबर अब लोकतंत्र की बुनियादी स्वतंत्रता, मीडिया की आजादी पर बड़ा सवाल बनकर उभरी है। पत्रकार राजू गुप्ता द्वारा हिंदू नाबालिग लड़की के कथित अपहरण और पुलिस की भूमिका पर लिखी गई रिपोर्ट के बाद जिस तरह से बांसडीह थाना प्रभारी संजय सिंह ने उन्हें धमकाया, गालियां दीं और जान से मारने तक की बात कही, वह दर्शाता है कि अब यहां ‘सिस्टम के खिलाफ कलम चलाना सीधा अपराध’ मान लिया गया है।
खबर छपी और पुलिस ने रौब दिखाना शुरू किया
पूरा विवाद 16 जुलाई को तब शुरू हुआ जब पत्रकार राजू गुप्ता ने ‘पीड़ित ही बना आरोपी’ शीर्षक से खबर चलाई। यह रिपोर्ट बांसडीह थाना क्षेत्र की उस घटना पर थी जिसमें एक हिंदू नाबालिग लड़की को एक मुस्लिम युवक भगाकर ले गया और लड़की के पिता जब भाजपा नेताओं के साथ थाने गए, तो उल्टे उन्हीं पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। पत्रकार राजू गुप्ता ने पुलिस की इस भूमिका को उजागर किया। लेकिन इसके तुरंत बाद उनके खिलाफ पुलिस का शिकंजा कसना शुरू हो गया। थाना प्रभारी संजय सिंह ने कथित तौर पर उन्हें कचहरी परिसर में अपशब्द कहे, पत्रकारिता छोड़ने को कहा, थाने पर लाकर पिटाई करने और जान से मारने की धमकी दी।
- पुलिस की ‘प्रेस पॉलिसी’ दो ग्रुप, दो रवैये, प्रेस को दो वर्गों में बांटा
- एक ग्रुप, जिसमें सवाल न पूछने वाले पत्रकारों को प्रेस कांफ्रेंस में बुलाया जाता है, चाय-पानी कराया जाता है।
- दूसरा ग्रुप, जिसमें जिम्मेदार पत्रकार हैं जो तथ्य आधारित सवाल पूछते हैं उन्हें सिर्फ प्रेस नोट भेजकर किनारे कर दिया जाता है।
- एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि ‘बलिया में पुलिस के लिए सवाल पूछना अपराध बन चुका है।’
- पत्रकारों का एकजुट विरोध सड़कों पर उतरे, काली पट्टी बांधी
- सोमवार को बलिया जिले के सैकड़ों पत्रकारों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया।
- काली पट्टी बांधकर सड़कों पर मार्च, कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन
- डीएम को सौंपा ज्ञापन, जिसमें थाना प्रभारी को तत्काल हटाने की मांग
- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम ज्ञापन
- डीजीपी, आईजी, डीआईजी व जिलाधिकारी को भेजा ज्ञापन की प्रति
थाना प्रभारी का कोर्ट जाना पुलिसिया अराजकता का संकेत
पत्रकारों का आरोप है कि थाना प्रभारी संजय सिंह ने बिना उच्चाधिकारियों की अनुमति के सीधे कोर्ट में जाकर राजू गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की कोशिश की, जो पुलिस सेवा आचरण नियमावली का स्पष्ट उल्लंघन है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि थानों पर वरिष्ठ अफसरों का नियंत्रण समाप्त हो गया है और थानेदार बेलगाम हो गए हैं।
पत्रकारों का प्रश्न ‘अगर थाना प्रभारी मनमाने तरीके से कोर्ट में चला जाए, तो फिर प्रशासन का अस्तित्व ही क्या रह जाता है?’
पत्रकार सुरक्षा की मांग परिवार को मिल रही धमकियां
राजू गुप्ता ने बलिया कोतवाली में अपनी लिखित शिकायत में कहा है कि उनके परिवार को लगातार धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने प्रशासन से सुरक्षा की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
एक समाचार पत्र के स्थानीय संपादक ने कहा कि ‘क्या पत्रकार की जान की कीमत एक खबर से कम हो गई है’
- जिला नहीं, प्रदेशव्यापी मुद्दा बनता जा रहा उत्पीड़न
- अब यह संघर्ष राजू गुप्ता बनाम थानाप्रभारी नहीं रहा। बल्कि यह लड़ाई अब बन चुकी है पत्रकारिता के स्वतंत्रता की
- लोकतंत्र की बुनियादी अभिव्यक्ति की आजादी
- पुलिस तंत्र के खिलाफ लोकतांत्रिक प्रतिरोध
- बिल्थरारोड, मनियर, रसड़ा में भी पत्रकारों ने बुधवार को विरोध मार्च निकाला और एसडीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा।
सत्ता, प्रशासन और पत्रकार कौन किसके लिए खड़ा
बलिया में लगातार हो रहे पत्रकार उत्पीड़न से बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या प्रशासन सत्ता की कठपुतली बन गया है। जब एक रिपोर्टर को सच लिखने पर धमकियां मिलें थाना प्रभारी बेलगाम होकर कोर्ट में जाए, पत्रकारों की शिकायत पर कोई कार्रवाई न हो और पुलिस ही सत्ता बन जाए। तो यह केवल उत्पीड़न नहीं, लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी पर हमला है।
पत्रकारों की प्रमुख मांगे
- थाना प्रभारी संजय सिंह को तत्काल निलंबित किया जाए
- पत्रकार राजू गुप्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर निष्पक्ष जांच की जाए
- बलिया में पत्रकारों की स्वतंत्रता की गारंटी दी जाए
- प्रेस को दो हिस्सों में बांटने की नीति बंद की जाए
- मुख्यमंत्री कार्यालय से उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की जाए
कलम अब डरेगी या लड़ाई और तेज होगी
बलिया में जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ एक पत्रकार पर हमला नहीं, बल्कि सिस्टम के भीतर सत्ता, पुलिस और दबाव तंत्र के गठजोड़ की कहानी है। जब पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, दबाई जाने लगे तब सवाल उठाना सिर्फ पत्रकारों की नहीं, हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी बन जाती है। ‘यह कलम की लड़ाई है। और यह तब तक चलेगी, जब तक तानाशाही की स्याही सूख नहीं जाती।
- राजू गुप्ता पर रिपोर्टिंग के बाद पुलिसिया दबाव और धमकी
- थाना प्रभारी संजय सिंह पर गंभीर आरोप गाली, धमकी और कोर्ट में अर्जी
- प्रेस को दो भागों में बांटने की रणनीति पर नाराजगी
- पत्रकार उत्पीड़न के खिलाफ जनपद भर में विरोध तेज
- राजू गुप्ता के परिवार की सुरक्षा पर सवाल
- मुख्यमंत्री से निष्पक्ष कार्रवाई की मांग
- बलिया में बनती ‘अघोषित आपातकाल’ जैसी स्थिति

