मोदी व शाह का गन्दा काम, गोपनीय सूचनाओं का हो जाएगा काम तमाम
मोदी सरकार ने भारत की संवेदनशील सूचनाओं को एक निजी कंपनी के हाथ सौंपा

● लोकतंत्र, सुरक्षा और सूचना स्वाधीनता का संकट
● सत्ता के ईमेल अब निजी सर्वर पर लोकतंत्र की दीवार में सेंध
● गुपचुप समझौते का खेल जनता और संसद से छिपाई गई प्रक्रिया
● सरकारी डोमेन, निजी नियंत्रण जोहो के नाम
● स्वदेशी का मुखौटा, निजीकरण का एजेंडा
● जोहो और सत्ता के रिश्ते वैचारिक निकटता पर सवाल
● डेटा सुरक्षा बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों की अनदेखी
● सरकार का यह कदम ई-गवर्नेंस को कॉरपोरेट गवर्नेंस में बदल देगा
● लोकतंत्र की रक्षा का सवाल जवाबदेही किससे मांगी जाए?
◆ अंशिका मौर्य
मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम चुपचाप उठा लिया है, जो सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं बल्कि लोकतंत्र की नींव पर एक शर्मनाक सेंध है। संवेदनशील सरकारी मेल और दस्तावेज अब निजी कंपनी जोहो के सर्वरों पर स्टोर और प्रोसेस हो रहे हैं। हाथ में Gov.in और Nic.in का नाम रहता है, पर सत्ता की सूचना संरचनाएं अब जोहो नामक एक निजी इकाई के अधीन हैं। इसे सिर्फ सत्ता पार्टी का मामला न बनाइए यह सूचना की आजादी, डेटा सुरक्षा और लोकतांत्रिक पारदर्शिता का बड़ा संकट है।
निजी कंपनी के हाथ मे सरकारी डेटा की कमान, मोदी, शाह ने रच दिया सरकारी सिस्टम बर्बाद करने का प्लान
गुमनाम डेटा हस्तांतरण
सरकार ने मौजूदा एनआईसी ई-मेल सिस्टम हटाकर इसे जोहो नामक निजी कंपनी को सौंप दिया है। मंत्रालयों एवं प्रधानमंत्री कार्यालय तक का ईमेल अब जोहो प्लेटफार्म पर संचालित है।
सरकारी नाम, निजी नियंत्रण दिखावे में Gov.in/Nic.in जैसे डोमेन जारी हैं, लेकिन हकीकत में ये मेल जोहो के सिस्टम पर चलते हैं नाम में सरकारी, नियंत्रण में प्राइवेट। सरकार ने एक निजी संस्था को राष्ट्रीय सुरक्षा और संवेदनशील जानकारी पर नियंत्रण दे दिया। अनुमानत 33 लाख केंद्रीय कर्मचारियों के ईमेल को जोहो पर शिफ्ट करने की बात हो रही है जिससे हर कर्मचारी पर लगभग 300 डॉलर प्रति वर्ष खर्च हो सकता है। जोहो के सह-संस्थापक श्रीधर वेंबू को नेशनल सिक्योरिटी एडवायजरी बोर्ड में शामिल किया गया, वे एवीबीपी, आरएसएस अभियानों के नियमित अतिथि रहे हैं सवाल उठता है कि किन्हीं पक्षपात के दायरे में सैन्य-सूचना न आ जाए। सरकारी दलील है कि ये स्वदेशी कदम है, डेटा भारतीय धरती पर रहेगा। जोहो ने यह दावा भी किया कि भारतीय डेटा भारत में ही होस्ट किया जाता है। लेकिन इसका ऑडिट, अंतरराष्ट्रीय मानक, संवेदनशील डेटा पर नियंत्रण कैसे होगा ये सवाल अनुत्तरित है। किस प्रक्रिया से जोहो को यह ठेका मिला, उसका चयन कैसे हुआ, इसके दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए गए। सांसदों और नागरिकों को इस बड़े कदम की जानकारी नहीं दी गई।
परंपरागत रूप से, भारत सरकार का आंतरिक ई-मेल तंत्र एनआईसी द्वारा संचालित होता था, जो एक सरकारी संस्था है। यह व्यवस्था सरकार के पूर्ण नियंत्रण में रहती थी और संवेदनशील डेटा की केंद्र निगरानी में रहता था। लेकिन 2023 के आसपास इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय है। यह भारत सरकार की एक एजेंसी है जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास के लिए नीतियां बनाती है और लागू करती है ने यह विचार शुरू किया कि ई-मेल सेवाओं को क्लाउड आधारित समाधान में स्थानांतरित किया जाए, और इसके लिए एक मास्टर सिस्टम इंटीग्रेटर चयन प्रस्ताव निकाला गया। इस प्रस्ताव में छह कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया गया। जिसमें जोहो, एलएण्डटी, इंफोसिस, रेलटेल, रेडिफ मेल आदि शामिल थे। सरकार ने दो प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की जहां कुछ विभागों के ईमेल को निजी कंपनियों द्वारा संचालित प्रणाली में माइग्रेट किया गया। आखिरकार जोहो को ठेका मिला और तमाम मंत्रालयों की ई-मेल सेवा जोहो को सौंपी गई। उसके बाद से ही मंत्रालयों का डेटा जोहो प्लेटफार्म पर भेजा जाने लगा, और ई-मेल सेटअप नए ढांचे पर स्विच किया गया। समाचार रिपोर्ट्स कहती हैं कि अब लगभग 1.2 लाख (12 लाख) केंद्रीय कर्मचारियों की ई-मेल को जोहो के प्लेटफार्म पर स्थानांतरित कर दिया गया है। कंपनी जोहो का दावा है कि भारतीय उपयोगकर्ताओं का डेटा भारत में ही होस्ट किया जाता है, और वह ईडब्ल्यूएस, एज्यूर जैसे विदेशी क्लाउड सेवाओं पर निर्भर नहीं है। जोहो के सह-संस्थापक श्रीधर वेंबू सामाजिक मंचों पर व्यक्तिगत रूप से यह तर्क देते नजर आए कि उनके उत्पाद भारत में विकसित और भारत में ही कॉम्प्लायंट इंफ्रास्ट्रक्चर पर चलते हैं।
सरकार की दलील और स्वदेशी तकनीक का तर्क
सरकार का मुख्य तर्क यह रहा है कि यह कदम डेटा संप्रभुता और स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने का हिस्सा है। जब देश का संवेदनशील डेटा विदेशी क्लाउड या प्लेटफार्म पर ना हो, तो उसकी सुरक्षा बढ़ती है।प्रधानमंत्री कार्यालय सहित मंत्रालयों ने यह वादा किया कि जोहो के स्थानीय डेटा सेंटर्स में ही यह डेटा रखा जाएगा। इसके अतिरिक्त जोहो को यह बल भी दिया गया कि वह मंत्रालयों को ईमेल, दस्तावेज, स्प्रेड शीट और अन्य सहयोगी उपकरण मुहैया कराए। जिससे माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसे विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम हो। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव खुद जोहो का उपयोग करने लगे हैं, और उन्होंने लोगों से स्वदेशी डिजिटल समाधानों को अपनाने की अपील की है।
जोहो कंपनी, स्वामित्व और वैचारिक पृष्ठभूमि
जोहो कॉरपोरेशन भारत की एक सफल सॉफ्टवेयर ऐज अ सर्विस जिसकी स्थापना 1996 में श्रीधर वेंबू व टॉनी थॉमस ने की थी। जोहो अब 18 से अधिक डेटा सेंटर संचालित करती है और इसके वैश्विक ग्राहकों की संख्या बड़ी है। जोहो की मुख्य मालिक राधा वेंबू हैं, जिनका जोर इस पर है कि कंपनी का नियंत्रण सार्वजनिक नहीं है और वह इन उत्पादों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
जोखिम, चिंताएं व विरोध
इस बड़े बदलाव के चलते अनेक विशेषज्ञों और सांसदों ने गंभीर सवाल उठाए हैं। संसद सदस्य जॉन ब्रिटास ने इस निर्णय की पारदर्शिता और प्रक्रिया पर सवाल उठाया है और सरकार से ‘पूरी और पारदर्शी प्रकिया’ सार्वजनिक करने की मांग की है। आलोचकों का कहना है कि संवेदनशील दस्तावेज, सचिवीय निर्देश, विदेश नीति संवाद, गुप्त सुरक्षा सूचना सब अब एक निजी इकाई के कब्जे में है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा की मूलभूत संरचना को खतरे में डालता है। आखिर यह किसने तय किया कि जोहो की सुरक्षा व्यवस्था एनआईसी की तुलना में बेहतर होगी। उसका ऑडिट कौन करेगा, लोक सूचना अधिकार के तहत इस निर्णय से जुड़े दस्तावेज क्यों नहीं सार्वजनिक किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने अब उस निजी कंपनी को अपना संचार तंत्र सौंपा है, जो जनता की निगाह नहीं खतरा है।
सरकार का रुख और जवाब
सरकार की तरफ से यह तर्क पेश किया गया है कि यह कदम न केवल सुरक्षा और डेटा संप्रभुता की दिशा में है, बल्कि यह लागत प्रभावी और आधुनिक आईटी ढांचों को अपनाने वाला निर्णय है। सरकार और जोहो ने यह दावा किया है कि डेटा केंद्र भारत में होंगे, और सेवा संचालन में पारदर्शिता रखी जाएगी। जोहो ने यह भी कहा कि उनके सभी उत्पाद भारत में बनाए जाते हैं और वे विदेशी क्लाउड प्लेटफार्मों पर निर्भर नहीं हैं। फिर भी, सरकार की ओर से इस बड़े बदलाव के निर्वाचन प्रक्रिया, सुरक्षा ऑडिट रिपोर्ट, लॉग्स, और डेटा एक्सेस कंट्रोल पॉलिसियों को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया गया है। यदि सरकार इस कदम को वैध बनाना चाहती है और लोकतंत्र की रक्षा करना चाहती है, तो निम्नलिखित कदम आवश्यक है। पूर्ण पारदर्शिता चयन प्रक्रिया, तकनीकी आकलन, ऑडिट रिपोर्ट, लॉग डेटा और सुरक्षा परीक्षण को सार्वजनिक किया जाए।
मोदी सरकार का यह कदम केंद्रीय विभागों की संवेदनशील मेल प्रणाली जोहो को
मोदी सरकार का यह कदम केंद्रीय विभागों की संवेदनशील मेल प्रणाली निजी कंपनी जोहो को सौंपना सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों पर हमला है। यह सूचना पर नियंत्रण, डेटा सुरक्षा और लोकतांत्रिक पारदर्शिता का मामला है। अगर हम चुप रहें, तो कल यह ज्यादा बड़ी सेंध बनेगी। सत्ता, सूचना और डेटा सभी उसी कंट्रोल टॉवर के अधीन चले जाएंगे। निरंतर नागरिक सतर्कता, संसद की जवाबदेही और स्वतंत्र न्यायपालिका ही इस प्रकार की अत्यधिक केंद्रीकरण को रोक सकती है।




