‘सरकार’ विरोधियों के वकीलों पर मोदी सरकार कर रही अत्याचार, क्या अधिवक्ता समाज ये अन्याय करेगा स्वीकार ?
जब अधिवक्ता का होगा उत्पीड़न तो इस देश का फिर राम ही मालिक है!

संजय सिंह, संवादाता, अचूक संघर्ष
हाल में खबर थी कि ईडी ने किसी मामले में सलाह देने वाले वकील को भी नोटिस भेज दिया था। देश का कानून ऐसा नहीं है कि अभियुक्त या अपराधी को भी कानूनी सहायता नहीं मिले। इंदिरा गांधी के हत्यारे को भी कानूनी सहायता मिली थी। मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब को भी सहायता दी गई। दोनों मामले चर्चित हैं। राम जेठमलानी ने जब हत्या अभियुक्तों की पैरवी करने की पेशकश की तो उनका विरोध जरूर हुआ था पर कार्रवाई नियमानुसार हुई। अजमाल कसाब के मामले में उज्जवल निकम सरकारी वकील बने। यह अलग बात है कि उन्होंने उसे बिरयानी खिलाने की कहानी गढ़ी, बदले में रिटायरमेंट के बाद भाजपा से चुनाव लड़ने का टिकट मिला। जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया तो हाल में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया गया है। निश्चित रूप से यह उन्हें उनके काम के बदले मिला है जबकि काम के लिए वेतन-भत्ते मिल ही गये थे। कसाब को सजा हुई यह उनकी विशेष योग्यता मानी गई है और यह सरकार का ही निर्णय है।
ऐसी सरकार वकीलों को सलाह देने पर परेशान कर रही है और यह शिकायत, अफवाह या चर्चा भर नहीं है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इसपर सख्त आदेश दिया है। खबर भी छपी है। हालांकि आपको व्हाट्सऐप्प पर नहीं मिली होगी क्योंकि वहां तो सिर्फ सरकार की वीरता और महानता के किस्से ही आते हैं। हालांकि, वह अलग मुद्दा है। मैं समझ रहा था और कोई भी मानेगा कि इस मामले के सार्वजनिक होने के बाद सरकार की ओर से वकीलों को परेशान करना छोड़ दिया जायेगा। लेकिन आज एक अधिवक्ता रूपेश सिंह भदौरिया (@RoopeshINC) ने एक्स पर लिखा है कि कांग्रेस कार्यकर्ता की पैरवी करने के कारण पुलिस ने उन्हें (और उनके परिवार को) डराने धमकाने के लिए बगैर वारंट उन्हें घर पहुंच गई।
कहने की जरूरत नहीं है फिर भी श्री भदौरिया ने लिखा है, “मैं पिछले 17 वर्षों से क़ानून का पालन करता आ रहा हूँ, लेकिन मुझे चुप कराने के लिए क़ानून को हथियार बनाया गया। यह कोई पूछताछ नहीं थी; यह धमकी थी। इससे पहले,
@IYCLegalCell का एक्स हैंडल सिर्फ़ इसलिए सस्पेंड कर दिया गया था क्योंकि हमने फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने वाले बीजेपी आईटी सेल के एजेंटों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई थी। जैसे ही हमने क़ानून का इस्तेमाल किया, उन्होंने ऑनलाइन हमारा मुँह बंद करने की कोशिश की। जब उनका असर नहीं हुआ, तो वह हमारे घर पहुंच गई। यह हर उस वकील पर सीधा हमला है जो आवाज़ उठाने की हिम्मत करता है। अगर संविधान की रक्षा करने वाले वकीलों को निशाना बनाया जाता है, तो न्याय ख़ुद ख़तरे में है। हम चुप नहीं रहेंगे। हम झुकेंगे नहीं। हम संविधान की रक्षा के लिए अदालतों और सड़कों पर लड़ेंगे।”
यह दिलचस्प है कि एक लोकप्रिय और निर्वाचित सरकार ऐसा कर रही है जिसे फिर चुनाव लड़ना है। चुनाव जीतने के उसके तरीके हमेशा चर्चित रहे हैं और अब यह सार्वजनिक हो चला है कि देश में चुनाव के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। सरकार की यह कार्यशैली उसी भरोसे का परिणाम हो सकती है। समझना हमें है प्रचारकों की मानें तो यह अघोषित इमरजेंसी नहीं है।




