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डीजीपी राजीवकृष्ण का चला डंडा, भ्रष्टाचार में संलिप्त पुलिसकर्मी को कर दिया ठंडा

ईमानदारी की वापसी: सूबे के पुलिस प्रमुख राजीव कृष्ण की सख्ती से यूपी पुलिस में चला शुद्धि अभियान

 

● लोकतंत्र की आत्मा है जवाबदेही, पुलिस में शुरू हुआ आत्ममंथन का दौर

● लोकतंत्र केवल कानून से नहीं, नैतिकता और जवाबदेही से जीवित

● राजीव कृष्ण की सख्ती ने लौटाया जनता का भरोसा, पुलिस की जवाबदेही तय

● सोशल मीडिया बना जनता का प्रहरी डीजीपी ने पारदर्शिता को बनाया ताकत

● ‘राजधर्म’ की परंपरा में आधुनिक पुलिसिंग सेवा, संवेदना और सत्य के पथ पर कदम

● ईमानदारों को सम्मान, दोषियों को सजा

● उत्तर प्रदेश में पुलिस अब ‘फोर्स’ नहीं, ‘फ्रेंड’ के रूप में उभर रही है

 

शुभम श्रीवास्तव

 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश जो भारत के राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास की धुरी रहा है, अब एक नए परिवर्तन की दहलीज पर खड़ा है। यह परिवर्तन कानून के शासन में नहीं, बल्कि राजधर्म की आत्मा में दिखाई दे रहा है। वह आत्मा जो कहती है कि शक्ति का उपयोग जनहित में हो, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए। विगत दिनों में जब सोशल मीडिया पर कुछ पुलिसकर्मियों के रिश्वत लेते वीडियो वायरल हुए, तो कई लोगों ने इसे सिस्टम की सड़न कहा। लेकिन डीजीपी राजीव कृष्ण ने इसे समस्या नहीं, अवसर माना एक ऐसा अवसर, जब विभाग खुद का आत्ममंथन कर सके। उन्होंने कहा यह केवल अनुशासन की बात नहीं है, यह जनता के विश्वास का प्रश्न है। इसी सोच के तहत शुरू हुआ आत्मशुद्धि अभियान, जो अब यूपी पुलिस के चरित्र का हिस्सा बनता जा रहा है। डीजीपी राजीव कृष्ण का मानना है कि सुधार थोपे नहीं जाते, वे भीतर से शुरू होते हैं और यही प्रक्रिया अब पुलिस मुख्यालय से लेकर थाने के स्तर तक फैलने लगी है।

सोशल मीडिया बना जनता की आवाज, डीजीपी ने लिया एक्शन

यह समय डिजिटल नागरिकता का है। जहां पहले किसी थाने में शिकायत दर्ज कराना भी कठिन होता था, वहीं अब एक मोबाइल कैमरा और इंटरनेट ने नागरिकों को आवाज दी है। चित्रकूट और बांदा में कुछ पुलिसकर्मियों के रिश्वत लेते हुए वीडियो जब सोशल मीडिया पर आए, तो यह केवल एक वायरल कंटेंट नहीं था। यह जनता के अविश्वास और असंतोष का प्रतीक था। लेकिन डीजीपी राजीव कृष्ण ने इसे वायरल शोर नहीं, सत्य का दस्तावेज माना। बिना देरी किए जांच बैठाई और कुछ ही दिनों में 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर उदाहरण प्रस्तुत किया। यह कार्रवाई प्रशासनिक दृष्टि से जितनी त्वरित थी, उससे कहीं अधिक प्रतीकात्मक भी जनता को यह भरोसा देने वाली कि अब उनकी आवाज सुनी जा रही है। डीजीपी का यह मॉडल अब अन्य विभागों के लिए भी मिसाल बन रहा है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को हम शत्रु नहीं, सहयोगी के रूप में देखें। यह जनता का फीडबैक तंत्र है। दरअसल, उत्तर प्रदेश पुलिस में पहली बार शीर्ष नेतृत्व ने यह स्वीकार किया है कि पारदर्शिता नियंत्रण का नहीं, विश्वास का माध्यम है।

चित्रकूट, बांदा, कौशांबी में एक साथ 11 पुलिसकर्मियों पर गिरी गाज

चित्रकूट से लेकर कौशांबी तक, 3 थाना प्रभारी, 2 दरोगा और 6 आरक्षियों को निलंबित कर दिया गया।
इतनी बड़ी संख्या में एक साथ कार्रवाई अपने आप में अभूतपूर्व है। डीजीपी मुख्यालय के सूत्रों के अनुसार, ये सभी पुलिसकर्मी वसूली और मामले दबाने के एवज में पैसे लेने जैसी शिकायतों में पकड़े गए थे। इनका वीडियो स्थानीय लोगों द्वारा रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर साझा किया गया था। डीजीपी ने यह मामला मिलने के बाद कहा कि अगर एक पुलिसकर्मी रिश्वत लेता है, तो पूरी पुलिस की साख पर दाग लगता है। यह कार्रवाई केवल दंड नहीं, बल्कि एक चेतावनी थी, कि वर्दी में छिपे बेईमान अब सुरक्षित नहीं रहेंगे। पुलिस के इतिहास में इसे सिस्टम की आत्मशुद्धि का प्रथम अध्याय कहा जा रहा है। जनता के बीच इसका असर तुरंत दिखा। लोगों ने ट्विटर, फेसबुक और एक्स पर लिखना शुरू किया कि अब लगता है वर्दी में भी जवाबदेही लौट रही है।

‘ईमानदारों को सम्मान, दोषियों को सजा’ डीजीपी की साफ नीति का संदेश

राजीव कृष्ण की सबसे बड़ी ताकत है उनका स्पष्ट दृष्टिकोण। वे न तो भाषण देते हैं, न बड़े वादे करते हैं, बल्कि नीति से संदेश देते हैं। उनकी यह नीति कि ईमानदारों को सम्मान, दोषियों को सजा, आज पूरे पुलिस तंत्र में गूंज रही है। इस नीति के दो उद्देश्य है कि ईमानदार पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाना और भ्रष्टाचारियों पर कानूनी कार्रवाई करना। पुलिस महकमे में अब तक जो सबसे बड़ी समस्या थी, वह थी भले लोगों की चुप्पी और बुरे लोगों का नेटवर्क थी, जिसे डीजीपी ने तोड़ने की ओर कदम बढ़ा दिया है। हर जिले के एसएसपी से कहा अगर आपकी टीम में एक भी भ्रष्ट कर्मचारी है, तो आप जवाबदेह हैं। यह शब्द सिर्फ निर्देश नहीं, एक संदेश हैं कि अब जवाबदेही व्यक्तिगत नहीं, संस्थागत होगी।

शिकायत से कार्रवाई तक दिख रहा पारदर्शी तंत्र

उत्तर प्रदेश पुलिस अब सुधार शब्द को नए अर्थों में जी रही है। डीजीपी मुख्यालय ने शिकायत मॉनिटरिंग सिस्टम को डिजिटल और त्वरित बनाया है। किसी भी नागरिक की शिकायत सीधे संबंधित एसपी और डीजीपी स्तर तक पहुंच सकती है। राजीव कृष्ण का उद्देश्य है कि कार्रवाई से पहले ही सुधार की प्रक्रिया शुरू हो। इसीलिए उन्होंने हर जिले में इंटीग्रिटी ऑडिट शुरू कराया है, जिसमें अधिकारियों के कार्य व्यवहार, जनसंपर्क और शिकायतों की संख्या का विश्लेषण किया जा रहा है। यह मॉडल अब प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी के लिए ‘सुधार बनाम सजा’ का नया संतुलन पेश कर रहा है। पहले जहां भ्रष्टाचार पर कार्रवाई का अर्थ केवल निलंबन होता था, अब सुधारात्मक प्रशिक्षण और संवेदनशीलता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
कई जिलों में ईमानदारी सप्ताह आयोजित किए जा रहे हैं।

जनता का भरोसा लौटाने की पहल

राजीव कृष्ण की इस नीति का सबसे सकारात्मक असर जनता के मनोविज्ञान पर पड़ा है। पहले शिकायत दर्ज कराने में भय या निराशा होती थी, अब उम्मीद और भरोसा लौट रहा है। शून्य सहिष्णुता की नीति केवल भ्रष्टाचार विरोधी नारा नहीं है, यह भरोसे की वापसी का अभियान बन चुकी है। डीजीपी का कहना है कि अगर जनता को पुलिस पर भरोसा नहीं रहेगा, तो कानून किताबों में रह जाएगा। इसलिए उनका पूरा ध्यान विश्वास आधारित शासन पर है। यूपी पुलिस अब ‘फोर्स’ नहीं, ‘फ्रेंड’ बनने की ओर बढ़ रही है। इस नीति के चलते अब कई जिलों में नागरिक पुलिस के साथ मिलकर सुरक्षा समितियां बना रहे हैं। थाने में जाकर लोग अपनी समस्याएं साझा कर रहे हैं।

‘राजधर्म’ की परंपरा, डीजीपी ने दिखाया आधुनिक रूप

उत्तर प्रदेश की सभ्यता में ‘राजधर्म’ का अर्थ रहा है सत्य, न्याय और करुणा के साथ शासन करना। रामराज्य की कल्पना, कबीर की वाणी और तुलसी की मर्यादा सभी इसी विचारधारा के प्रतीक हैं। डीजीपी राजीव कृष्ण ने उसी अवधारणा को आधुनिक रूप में पुलिसिंग के सिद्धांत में जोड़ा है। उनकी सोच है कि पुलिस सिर्फ कानून की रखवाली न करे, बल्कि न्याय की भावना का संवाहक बने। इसलिए उन्होंने हर जिले में संवेदना वर्कशॉप शुरू की। पुलिसकर्मी को यह समझाया जाता है कि कानून से पहले इंसान को देखो। यह बदलाव किसी आदेश का नहीं, बल्कि संस्कृति का पुनर्जागरण है, जहां वर्दी का अर्थ डर नहीं, भरोसा हो। थाना जनता का शत्रु नहीं, सहयोगी केंद्र बने और यही कारण है कि इस अभियान को लोग राजधर्म पुनर्स्थापन की पहल कहने लगे हैं।

संवेदना, सेवा और सत्य के पथ पर बढ़ता उत्तर प्रदेश

यूपी पुलिस का चेहरा बदल रहा है। कभी सिस्टम की कठोरता चर्चा में रहती थी, आज सुधार की संवेदना मुख्य विषय है। राजीव कृष्ण के विजन डॉक्यूमेंट में तीन शब्द केंद्रीय हैं संवेदना, सेवा और सत्य। इन तीनों को मिलाकर ही बनता है नया पुलिस चरित्र। संवेदना मतलब नागरिक की पीड़ा को समझना, सेवा मतलब बिना भेदभाव सहायता देना, और सत्य जो गलत है, उसके खिलाफ खड़ा होना चाहे वह अपनों में ही क्यों न हो। 11 पुलिसकर्मियों के निलंबन की खबर केवल एक समाचार नहीं है। बल्कि यह उस लंबी प्रक्रिया का आरंभ है जो उत्तर प्रदेश पुलिस को 21वीं सदी की सबसे जवाबदेह, तकनीकी और मानवीय पुलिस फोर्स बनाने की दिशा में ले जाएगी। राजीव कृष्ण का यह अभियान बताता है कि सुधार तब सफल होता है जब नेतृत्व निडर हो और नीयत साफ। यूपी पुलिस की इस नई कहानी में जनता केवल दर्शक नहीं, सहभागी है। शायद यही वह बिंदु है जहां सत्ता प्रशासन से, प्रशासन जवाबदेही से, और जवाबदेही जन विश्वास से जुड़ जाती है।

उत्तर प्रदेश की नई पुलिस संस्कृति

उत्तर प्रदेश की धरती ने हमेशा यह सिखाया है कि धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि कर्तव्य है। डीजीपी राजीव कृष्ण ने उसी कर्तव्य बोध को आधुनिक प्रशासनिक रूप में पुनर्जीवित किया है। उनका संदेश साफ है कि हम व्यवस्था नहीं, विश्वास की रक्षा कर रहे हैं। आज पुलिस विभाग में पारदर्शिता, संवेदना और जवाबदेही का संगम दिख रहा है, तो यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश केवल कानून नहीं, नैतिकता के मार्ग पर भी अग्रसर है। यह वही परिवर्तन है जिसकी प्रतीक्षा जनता दशकों से कर रही थी। एक ऐसी पुलिस जो भय नहीं, भरोसा दे, रिश्वत नहीं, राहत दे, जो शासन का नहीं, समाज का प्रहरी बने। राजधर्म के मार्ग पर चलती पुलिस उत्तर प्रदेश की नई पहचान बने।

● डीजीपी राजीव कृष्ण ने रिश्वतखोरी पर बड़ा एक्शन लेते हुए 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया।

● चित्रकूट, बांदा और कौशांबी में हुई कार्रवाई ने भ्रष्टाचार पर सख्ती का नया मानक तय किया।

● वायरल वीडियो को सत्य का दस्तावेज मानते हुए जांच और दंड की त्वरित प्रक्रिया अपनाई गई।

● डीजीपी ने कहा कि ईमानदारों को सम्मान, दोषियों को सजा यही हमारी नीति है।

● यूपी पुलिस में शुरू हुआ आत्मशुद्धि अभियान सुधार भीतर से, आदेश से नहीं।

● इंटीग्रिटी ऑडिट सिस्टम और डिजिटल शिकायत मॉनिटरिंग से बढ़ी पारदर्शिता।

● जनता का भरोसा लौटाने के लिए हर जिले में शुरू हुए संवेदना वर्कशॉप और ईमानदारी सप्ताह।

● डीजीपी ने पुलिस को राजधर्म की भावना से जोड़ते हुए कहा कि कानून से पहले इंसान को देखो।

● 11 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई सिर्फ दंड नहीं, बल्कि भरोसे की वापसी का अभियान है।

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