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अमित शाह की बुद्धि का हो गया सत्यानाश, कहा मोदी जी 3 दिन नही जाते संडास

देश शंका ना करे, क्योंकि प्रधानमंत्री भी शंका नहीं करते

~ जब शासन शौचालय से बड़ा सिद्धांत बन जाए

~ अमित शाह का खुलासा तीन दिन तक पीएम मोदी पार्टी अधिवेशन में ‘नहीं उठे’

~ सच और चुटकुलों में फर्क करना अब हो गया है नामुमकिन

~ 15 लाख का जुमला, अब शंका-त्याग की नई मिसाल

~ तीन दिन की योग साधना, बाबा रामदेव भी रह गए पीछे

~ करोड़ों शौचालय जनता के लिए, खुद अधिवेशन में आत्मसंयम का प्रदर्शन

~ पार्टी अधिवेशन देश से बड़ा, नागरिक से छोटा, निपटान से ऊंचा

~ कब्ज़ की दवा बेचने वालों में दहशत ‘मोदी’ बन जाएं तो धंधा ठप्प

~ सरकारी चुटकुलों के सामने कुणाल कामरा भी आउट ऑफ मार्केट

 

◆ तुषार मौर्य

 

भारतीय राजनीति अब गंभीर विमर्श से आगे बढ़कर सरकारी चुटकुलों की फैक्ट्री बन चुकी है। कभी 15 लाख का सपना जुमला बनकर निकलता है, तो कभी प्रधानमंत्री की जैविक जरूरतें भी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बना दी जाती हैं। अमित शाह का हालिया बयान मोदीजी तीन दिन तक अधिवेशन में बैठे रहे, फ्रेश होने तक के लिए भी नहीं उठे। इस लोकतंत्र का नया घोषणापत्र है। यह सिर्फ बयान नहीं, बल्कि नागरिकों के लिए राष्ट्रीय शंका त्याग नीति का खाका है। अब जनता पर नैतिक दबाव है कि अगर प्रधानमंत्री अपनी शंकाएं रोक सकते हैं, तो आप अपनी शंकाएं क्यों नहीं रोक सकते।

  • सच और जुमले के बीच जनता की हालत हमेशा कन्फ्यूज।
  • अमित शाह का नया बयान पीएम तीन दिन तक शंका-मुक्त रहे।
  • शौचालय क्रांति जनता के लिए, आत्मसंयम की क्रांति नेता के लिए।
  • राजनीतिक अधिवेशन अब योग साधना शिविर में तब्दील।
  • कब्ज की दवा बेचने वालों पर मंडराया संकट।
  • ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के बाद नया नारा, ना जाऊंगा, ना जाने दूंगा।
  • गैर-मानवीय बन चुके हैं मोदीजी नॉन-बायोलॉजिकल का नया राजनीतिक विमर्श।
  • सरकारी चुटकुलों के युग में स्टैंडअप कॉमेडी बेकार।

सच और चुटकुले की प्रतिस्पर्धा

देश में सच और चुटकुले अब एक ही मंच पर मुकाबला कर रहे हैं। हर खाते में 15 लाख का वादा जब किया गया था, तो जनता ने उसे बैंक मैसेज की तरह गंभीरता से लिया। बाद में अमित शाह ने यह कहकर उसे ‘जुमला’ बताया कि यह राजनीति की उच्च कोटि का हास्य था। अब सवाल यह है कि जब पार्टी अध्यक्ष ही वादों को चुटकुला बताने लगे, तो जनता को कैसे समझ आए कि वह प्रधानमंत्री की घोषणा सुन रही है या कॉमेडी नाइट्स विद मोदी का नया एपिसोड देख रही है।

अधिवेशन और महान शंका-त्याग नियंत्रण

अमित शाह का बयान आया कि मोदीजी तीन दिन तक पार्टी अधिवेशन में बैठे रहे, फ्रेश होने तक के लिए भी नहीं उठे। पहले लगा किसी ट्रोल आर्मी का मजाक है। लेकिन जब वीडियो सामने आया, तो देश स्तब्ध रह गया। लोकतंत्र की असली ताकत अब भाषण या विकास योजनाओं में नहीं, बल्कि जैविक नियंत्रण में आंकी जाएगी। पार्टी अधिवेशन, जहां नीतियों पर बहस होनी चाहिए थी, अब वह आत्मसंयम की ओलंपिक प्रतियोगिता बन गया।

योग गुरु भी मात खा गए

बाबा रामदेव ने अब तक टीवी पर करोड़ों दर्शकों को यह भरोसा दिलाया था कि उनकी योग विधि से इंसान कब्ज पर काबू पा सकता है। लेकिन मोदीजी ने तीन दिन तक अधिवेशन में बैठकर जो किया, वह रामदेव की पूरी ‘डाइजेशन मार्केटिंग’ को चुनौती है। अब रामदेव को अपनी किताबों में नया अध्याय जोड़ना होगा कि मोदी-आसन अधिवेशन में तीन दिन की अडिग स्थिति।

शौचालय जनता के लिए, आत्मसंयम नेता के लिए

प्रधानमंत्री का दावा था कि उन्होंने देश में करोड़ों शौचालय बनवाए। लेकिन खुद अधिवेशन के दौरान उन्होंने यह साबित कर दिया कि असली महानता शौचालय न बनवाने में नहीं, बल्कि शौचालय की जरूरत ही न पड़ने में है। यहां रहीम का दोहा याद आता है कि ‘तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियही न पान।
नेता भी उसी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।

कब्ज की दवा बेचने वालों की चिंता

मोदीजी के इस नए कारनामे के बाद कब्ज़ की दवा बेचने वालों के बीच खलबली है। उनका डर है कि अगर देश के लोग भी संकल्प की मुट्ठी बांधकर कि मैं भी मोदी कहने लगे तो उनके धंधे का क्या होगा। ‘इसबगोल’ और ‘जुलाब चूर्ण’ की फैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर पहुंच सकती हैं। अब सरकार चाहे तो इसे ‘मेक इन इंडिया’ के तहत नए निर्यात अवसर में बदल सकती है। ‘भारतीय नेता-शैली का आत्मसंयम’ विदेशों में बेचा जा सकता है।

अधिवेशन : देश छोटा, पार्टी बड़ी

अमित शाह के बयान से यह भी साफ हो गया कि पार्टी ही असली देश है। क्योंकि अगर प्रधानमंत्री अधिवेशन में तीन दिन तक अपनी जैविक जरूरतों को रोक सकते हैं, तो इसका मतलब यही है कि पार्टी के लिए सब कुछ कुर्बान है। लोकतंत्र अब पार्टी के अधिवेशनों में सिमट गया है। बाकी देश? वह तो बस टीवी पर तालियां बजाने वाला दर्शक है।

नया नारा : ना जाऊंगा, ना जाने दूंगा

मोदीजी ने कहा था कि ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा। लेकिन अब जनता यह सवाल कर रही है कि क्यों न नारा बदलकर यह कर दिया जाए ‘ना जाऊंगा, ना जाने दूंगा।’ इस नारे में पार्टी अनुशासन भी झलकेगा और नेता की महानता भी। यह नारा 2026 के चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया जा सकता है।

‘नॉन-बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री का विमर्श

देश में बहस छिड़ गई है कि मोदीजी इंसान हैं या नहीं। क्योंकि तीन दिन तक किसी भी प्राकृतिक क्रिया पर नियंत्रण करना साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं। अमित शाह का दावा यही संकेत देता है कि प्रधानमंत्री जैविक प्राणी नहीं, बल्कि नॉन-बायोलॉजिकल सत्ता मशीन हैं। इस बहस को हवा देने वाले लोग कहते हैं कि यह वही मशीन है जो 24×7 चुनाव प्रचार कर सकती है, बिना थके और बिना रुके।

सरकारी चुटकुले बनाम स्टैंडअप कॉमेडी

कुणाल कामरा और अन्य स्टैंडअप कॉमेडियन पर बैन लगाया गया। लेकिन सवाल उठता है कि जब सरकार खुद चुटकुले मुहैया करा रही है, तो फिर पिटे हुए कॉमेडियन के शो की जरूरत किसे है। जुमला-उत्पादन मंत्रालय की स्थापना कर दी जाए, और हर महीने जनता को नए-नए चुटकुले मिलते रहें। इससे लोकतंत्र भी मनोरंजक रहेगा और जनता भी हंसते-हंसते अपनी समस्याएं भूल जाएगी।

शंका रहित देश का सपना

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा संदेश यही है कि देश को अपने प्रधानमंत्री की तरह शंका रहित बनना होगा। जनता सवाल न करे, आलोचना न करे, और न ही नेताओं से जवाब मांगे। अगर पीएम तीन दिन तक अपनी शंकाएं रोक सकते हैं, तो जनता से भी अपेक्षा है कि वह वर्षों तक अपनी राजनीतिक शंकाएं दबाए रखे। यही है ‘नया भारत’ जहां सच और चुटकुला एक ही मंच पर बैठकर नागरिकों की समझदारी का मजाक उड़ाते हैं।

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