लोकतंत्र के तथाकथित पहरेदार या तानाशाही के गब्बर, मोदी जी विपक्ष के नेताओं के कैद करवा रहे उन्ही के घरों के अंदर
यूपी से कश्मीर तक विपक्षी नेताओं की नजरबंदी, लोकतंत्र पर ताले का खेल

~ यूपी से कश्मीर तक विपक्षी नेताओं की नजरबंदी, लोकतंत्र पर ताले का खेल
~ शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी बर्दाश्त नहीं, विपक्षी नेताओं और जनता पर पुलिसिया डंडा
~ वादा खिलाफी से भड़का असम, सड़क पर उतरे मोरान-कोच राज बोंगशी समुदाय
~ लद्दाख में अनसुनी आवाज सोनम वांगचुक फिर अनशन पर, छठी अनुसूची की मांग अधर में
~ पटना में भू-सर्वेक्षण कर्मियों पर लाठीचार्ज, लोकतंत्र की जगह ‘लाठी तंत्र’ की तस्वीर
◆ शुभम श्रीवास्तव
भारत का लोकतंत्र आज एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। जहां जनता की चुनी हुई सरकार का कर्तव्य नागरिकों की आवाज सुनना होना चाहिए, वहीं आज सत्ता का सबसे बड़ा काम उस आवाज को कुचलना बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी में विदेशी मेहमानों संग मंच साझा करते हैं, पर उसी वक्त देश के कई राज्यों में विपक्षी नेताओं, आंदोलनों और प्रदर्शनकारियों को पुलिस और प्रशासन की ताक़त से चुप कराया जा रहा है। कहीं कांग्रेस नेताओं को नज़रबंद किया जा रहा है, कहीं सांसदों और पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने तक की इजाजत नहीं दी जा रही, कहीं आदिवासी और जातीय समुदायों को आंदोलन करने पर लाठियों से पीटा जा रहा है। यह दृश्य साफ बताता है कि लोकतंत्र की जड़ें कमजोर करने का काम सत्ता ही कर रही है।
- वाराणसी दौरे के बीच यूपी में कांग्रेस नेताओं की नजरबंदी
- जम्मू-कश्मीर सांसद-सूबेदार तक नजरबंद, लोकतंत्र हुआ कैद
- लद्दाख सोनम वांगचुक का अनशन और सरकार की चुप्पी
- असम वादा खिलाफ से भड़के समुदाय, प्रदर्शनकारियों पर लाठियां
- लोकतंत्र या तानाशाही विपक्षी सवाल और जनता की बेचैनी
- यूपी में कांग्रेस नेताओं की नजरबंदी, अजय राय घर से बाहर नहीं निकल सके।
- जम्मू-कश्मीर में आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक की गिरफ्तारी, आप सांसद संजय सिंह और फारुख अब्दुल्ला तक को रोका।
- संजय सिंह की जुझारूपन भरी तस्वीर, गेस्ट हाउस की रेलिंग पर चढ़कर बातचीत।
- जनसुरक्षा अधिनियम का दुरुपयोग, निर्वाचित विधायक को आतंक समर्थक बताकर जेल भेजा गया।
- लद्दाख में सोनम वांगचुक का अनशन, भाजपा का वादा टूटा, छठी अनुसूची का दर्जा नहीं मिला।
- असम में मोरान और कोच राज बोंगशी समुदाय का आंदोलन, अनुसूचित जनजाति दर्जा न मिलने पर आक्रोश।
- प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज, 50 से ज्यादा घायल, हालात तनावपूर्ण।
- विपक्ष का आरोप मोदी सरकार लोकतंत्र को तानाशाही में बदल रही है।
वाराणसी दौरे के बीच यूपी में कांग्रेस नेताओं की नजरबंदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब वाराणसी में मॉरिशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र राम गुलाम के साथ विकास और अंतरराष्ट्रीय दोस्ती की तस्वीरें खिंचवा रहे थे, उसी वक्त उत्तरप्रदेश में लोकतंत्र की सबसे काली तस्वीर सामने आ रही थी। कांग्रेस नेताओं को जगह-जगह नजरबंद कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को पुलिस ने सुबह-सुबह ही घर में कैद कर लिया। उनका अपराध सिर्फ इतना था कि उन्होंने प्रदेश कार्यालय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाने की घोषणा की थी। 11:30 बजे पत्रकारों से मिलने का समय तय था, लेकिन पुलिस ने पहले ही दरवाजा खटखटाकर उन्हें बाहर निकलने से रोक दिया।
जम्मू-कश्मीर सांसद-सूबेदार तक नजरबंद, लोकतंत्र हुआ कैद
लोकतंत्र का गला घोंटने का दूसरा उदाहरण जम्मू-कश्मीर से आया। आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को जनसुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर कठुआ जेल भेज दिया गया। आरोपों की सूची लंबी है। आतंकियों का महिमामंडन, अफवाह फैलाना, डीसी को अपशब्द कहना। लेकिन जनता का सवाल है कि क्या किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को इस तरह खतरनाक अपराधी बताकर जेल भेज देना उचित है। उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ आप सांसद संजय सिंह जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पहुंचे तो उन्हें भी गेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया। और जब नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला संजय सिंह से मिलने आए, तो उन्हें भी पुलिस ने रोक दिया। यह दृश्य बेहद शर्मनाक था एक तरफ सांसद रेलिंग पर चढ़कर पूर्व मुख्यमंत्री से बात कर रहे थे, दूसरी तरफ पुलिस के पास कोई जवाब नहीं था कि आखिर मुलाकात क्यों रोकी गई। फारुख अब्दुल्ला का कहना था कि जम्मू-कश्मीर पहले ही आतंकी हमलों और बाढ़ जैसी मुसीबतों से जूझ रहा है, ऊपर से यह अलोकतांत्रिक हरकतें जनता की तकलीफ और बढ़ा रही हैं।
लद्दाख सोनम वांगचुक का अनशन और सरकार की चुप्पी
लद्दाख में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 10 सितंबर से एक और अनशन शुरू किया है। उनकी मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संरक्षण दिया जाए। भाजपा ने यह वादा 2019 और फिर पिछले काउंसिल चुनाव में किया था, लेकिन अब तक पूरा नहीं किया। वांगचुक ने कहा कि पिछले दो महीने से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी मांगों पर कोई बैठक तक नहीं बुलाई। यह वादाख़िलाफ़ी सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे लद्दाख के लोगों का अपमान है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा चुनाव जीतने के लिए वादे करती है और बाद में भूल जाती है।
असम वादा खिलाफ से भड़के समुदाय, प्रदर्शनकारियों पर लाठियां
असम में भी विरोध की आग धधक रही है। मोरान और कोच राज बोंगशी समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। ये वादे खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में किए थे। लेकिन साल 2025 आते-आते भी यह वादे कागजों पर ही हैं। नतीजा लोग सड़कों पर उतर आए। तिनसुकिया, धुबरी, तालाप, मार्गेरिटा और काकोपाथर की सड़कों पर हजारों प्रदर्शनकारी उमड़े। उन्होंने चेतावनी दी कि 15 सितंबर से राज्यव्यापी आर्थिक नाकेबंदी शुरू करेंगे। जब पुलिस और सीआरपीएफ ने भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की तो लाठीचार्ज किया गया। महिलाओं और छात्र नेताओं सहित 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए। लोकतांत्रिक आंदोलन का जवाब लाठियों से दिया गया।
लोकतंत्र या तानाशाही विपक्षी सवाल और जनता की बेचैनी
इन घटनाओं की कड़ी तस्वीर साफ करती है कि विपक्ष को नजरबंद करना, नेताओं को जेल भेजना, जनता की मांगों को अनसुना करना और प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाना मोदी सरकार का नया शासन मॉडल बन गया है। विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री लोकतंत्र की आत्मा को कुचलकर एक ‘नए तानाशाही युग’ की नींव रख रहे हैं। सवाल पूछने वालों की आवाज़ दबाई जा रही है, और विरोध को राष्ट्र विरोध या कानून-व्यवस्था का मुद्दा बताकर बंद किया जा रहा है। यह वही तरीका है जिससे लोकतंत्र धीरे-धीरे खत्म होता है। जनता से चुनी हुई सरकार अगर जनता की सुनने को तैयार नहीं, तो फिर लोकतंत्र का अर्थ क्या बचा। उत्तर प्रदेश से लेकर जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और असम तक की घटनाएं यह साबित करती हैं कि लोकतंत्र अब कागज पर बचा है। जमीनी हकीकत है कि विरोध की हर आवाज को पुलिस, जेल और लाठियों से चुप कराना। यह लोकतंत्र या तानाशाही का नया दौर है। आने वाली पीढ़ियां यही पूछेंगी कि 2025 में भारत ने अपने लोकतंत्र को क्यों तिलांजलि दे दी।
मोदी राज में जनता की आवाज कुचलने की नई पटकथा
देश का संविधान जनता को बोलने, सवाल करने और विरोध दर्ज कराने का अधिकार देता है, लेकिन मोदी शासन में ये अधिकार ‘अघोषित आपातकाल’ की गिरफ्त में दिख रहा है। एक ओर प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लोकतंत्र का गुणगान करते हैं, दूसरी ओर उनके ही राज में विपक्षी नेता घरों में कैद किए जा रहे हैं, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाई जा रही हैं और संवैधानिक वादों को दरकिनार किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश से लेकर कश्मीर, लद्दाख, असम और बिहार तक की घटनाएं गवाही दे रही हैं कि देश में लोकतंत्र की जगह लाठी तंत्र को नया हथियार बनाया जा रहा है।
यूपी में कांग्रेस नेताओं की नजरबंदी
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मॉरिशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र राम गुलाम का दौरा था। इसके पहले ही पूरे उत्तरप्रदेश में कांग्रेस नेताओं की नजरबंदी का सिलसिला शुरू हो गया। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को लखनऊ में उनके घर से बाहर निकलने ही नहीं दिया गया। पुलिस ने उस वक्त दस्तक दी, जब वे 11.30 बजे प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे। अजय राय ने कहा कि सरकार इतनी डरी हुई क्यों है कि हमें जनता के बीच अपनी बात भी नहीं रखने देती।यह कोई पहला मौका नहीं है। प्रदेश में हर बड़े अवसर पर विपक्षी नेताओं को नजरबंद करना पुलिस की आदत बन चुकी है। सवाल यह है कि क्या जनता से चुनी हुई सरकार का काम विपक्ष की आवाज दबाना है या उनकी बातों को सुनकर लोकतांत्रिक बहस को आगे बढ़ाना।
जम्मू-कश्मीर नजरबंदी और अघोषित कर्फ्यू
जम्मू-कश्मीर में भी लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है। आप के विधायक मेहराज मलिक की गिरफ्तारी के खिलाफ जब आप सांसद संजय सिंह शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए पहुंचे, तो उन्हें भी गेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया। इससे भी बड़ी विडंबना तब हुई, जब पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारुख अब्दुल्ला, संजय सिंह से मिलने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया। संजय सिंह का पुलिस से सवाल मैं सांसद हूं और वे पूर्व मुख्यमंत्री हैं। हमें मिलने क्यों नहीं दिया जा रहा है। जवाब पुलिस के पास भी नहीं था। यह नजारा लोकतंत्र की हत्या का जीता-जागता सबूत था। गौरतलब है कि मेहराज मलिक को 8 सितंबर को जनसुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर कठुआ जेल भेजा गया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने आतंकियों का महिमामंडन किया और अफवाहें फैलाई। लेकिन जनता का सवाल साफ है। अगर एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को जनता की सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर जेल भेजा जाएगा, तो फिर लोकतंत्र और जनादेश का क्या मतलब बचा।
असम में वादा खिलाफी से भड़का गुस्सा
असम में भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्सा चरम पर है। मोरान और कोच राज बोंगशी समुदाय ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा और छठी अनुसूची की स्वायत्तता की मांग को लेकर तिनसुकिया और धुबरी जिलों में जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि 2016 में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह वादा किया था। लेकिन नौ साल बीत गए, वादा पूरा नहीं हुआ। 15 सितंबर से राज्यव्यापी आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। प्रदर्शनकारियों पर सीआरपीएफ ने लाठीचार्ज किया, जिसमें 50 से ज्यादा लोग घायल हुए। इनमें महिलाएं और छात्र नेता भी शामिल थे। सवाल यह है कि जनता अपनी जायज़ मांग रखे और सरकार जवाब देने के बजाय डंडे बरसाए, तो यह लोकतंत्र कहलाएगा या तानाशाही
पटना में भू-सर्वेक्षण कर्मियों पर लाठीचार्ज
बिहार की राजधानी पटना में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के संविदाकर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। करीब 9 हज़ार कर्मी एक महीने से गर्दनी बाग धरना स्थल पर आंदोलन कर रहे थे। बुधवार को जब वे भाजपा कार्यालय का घेराव करने पहुंचे, तो पुलिस ने उन पर लाठियां बरसा दीं। ये वही कर्मचारी हैं जिन्होंने राज्य की ज़मीन सर्वेक्षण का काम किया। अब उनकी नौकरी छीन ली गई और बकाया वेतन भी नहीं दिया गया।
लोकतंत्र बनाम लाठी तंत्र
इन घटनाओं की कड़ी साफ बताती है कि भाजपा शासित केंद्र और राज्य सरकारें विपक्ष और जनता की आवाज से बुरी तरह डर चुकी हैं। लोकतंत्र संवाद और बहस से मजबूत होता है, लेकिन मोदी सरकार संवाद से भाग रही है। आज सवाल उठाना, आंदोलन करना या विरोध दर्ज कराना सत्ता की नज़र में अपराध बन गया है। जनता के मूल अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। लेकिन इतिहास गवाह है जितना दमन बढ़ता है, उतना ही आंदोलन प्रबल होता है।
- यूपी में अजय राय समेत कांग्रेस नेताओं की नज़रबंदी।
- जम्मू-कश्मीर में आप सांसद संजय सिंह और फारुख अब्दुल्ला को मिलने नहीं दिया गया।
- आप विधायक मेहराज मलिक के तहत जेल भेजे गए, जनता में गुस्सा।
- लद्दाख में सोनम वांगचुक ने छठी अनुसूची की मांग पर फिर अनशन शुरू किया।
- असम में एसटी दर्जे और स्वायत्तता को लेकर मोरान-कोच राज बोंगशी समुदाय का प्रदर्शन।
- सीआरपीएफ लाठीचार्ज में 50 से ज्यादा प्रदर्शनकारी घायल।
- पटना में भू-सर्वेक्षण संविदाकर्मियों पर पुलिस की लाठियां, बकाया वेतन और नौकरी की मांग।
- मोदी सरकार लोकतंत्र को दबा रही है, जनता को प्रजा बनाने की साजिश।
- लोकतंत्र की जगह ‘लाठी तंत्र’ को नया चेहरा दिया जा रहा है।




