सुप्रीम कोर्ट की ईडी को कड़ी फटकार, सत्ता के इशारे पर न बनिये राजनैतिक हथियार

~ सुप्रीम और मद्रास हाईकोर्ट की फटकार से उठा बड़ा सवाल
~ ईडी का इस्तेमाल राजनीतिक लड़ाइयों के लिए क्यों, सुप्रीम कोर्ट का ‘सुप्रीम सवाल’
~ कर्नाटक के सीएम की पत्नी व मंत्री के खिलाफ समन रद्द, ईडी की अपील खारिज
~ सीजेआई बीआर गवई ने कहा हमें मजबूर न करें, हमें ईडी पर सख्त टिप्पणी करनी पड़ेगी
~ मद्रास हाईकोर्ट ने कहा ईडी कोई ‘सुपर कॉप’ या ‘ड्रोन मिसाइल’ नहीं
~ पीएमएलए के तहत ‘प्रोसीड्स ऑफ क्राइम’ के बिना कार्रवाई अवैध
~ आरकेएम पावरजन केस में मद्रास हाईकोर्ट ने 901 करोड़ की एफडी फ्रीजिंग को अवैध बताया
~ कोर्ट ने कहा ईडी का दायरा सीमित, ‘मर्यादाहीन शक्ति’ नहीं
~ ईडी की मनमानी पर हाईकोर्ट ने दिया तीखा तंज ‘जहाज नहीं तो माइन कैसे फटेगी’

देश की शीर्ष अदालतें अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्यशैली पर तीखे सवाल उठा रही हैं। राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप, बिना पर्याप्त सबूतों के संपत्तियों को सील करना, और जांच के नाम पर मनमाने समन जारी करना। इन सब पर सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट ने एक के बाद एक टिप्पणियां करते हुए ईडी की जवाबदेही और कानूनी सीमाओं की याद दिलाई है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां सीधे पूछा कि ईडी राजनीतिक लड़ाइयों के लिए क्यों इस्तेमाल हो रहा है, वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि यह एजेंसी कोई ‘सुपर कॉप’ या ‘ड्रोन मिसाइल’ नहीं जो अपनी मर्जी से कहीं भी हमला कर दे। कहा कि ईडी एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है, या फिर यह सत्ताधारी दल का राजनीतिक उपकरण बन गई है।
सुप्रीम कोर्ट की ‘सुप्रीम’ फटकार ‘हिंसा पूरे देश में न दोहराएं’
21 जुलाई सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के.विनोद चंद्रन शामिल थे, ने एक अहम टिप्पणी करते हुए प्रवर्तन निदेशालय को चेतावनी दी। मामला था कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बी.एम.पार्वती और मंत्री बायरथी सुरेश के खिलाफ ईडी द्वारा भेजे गए समन को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी। एएसजी एसवी राजू जब ईडी की तरफ से दलीलें रख रहे थे, तो सीजेआई ने कहा राजू साहब, कृपया हमें मजबूर न करें कि हम ईडी पर सख्त टिप्पणी करें… राजनीतिक लड़ाइयां जनता के बीच लड़ी जानी चाहिए, ईडी के जरिए नहीं। न्यायालय की टिप्पणी न केवल ईडी की भूमिका पर सवाल उठाती है बल्कि राजनीतिक माहौल की ओर इशारा करती है जिसमें जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के रूप में किया जा रहा है।
मामला कर्नाटक की जमीन आवंटन विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा जमीनों के आवंटन में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है। आरोप था कि यह जमीनें नियमों को दरकिनार कर लाभार्थियों को दी गईं। इस पर ईडी ने समन जारी कर जांच शुरू की। हाईकोर्ट ने पाया कि यह ईडी के अधिकार क्षेत्र से बाहर है क्योंकि पीएमएलए की शर्तों के मुताबिक ‘प्रोसीड्स ऑफ क्राइम’ की स्पष्ट मौजूदगी होनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कोई अनियमितता, कोई अपराध साबित नहीं
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस आधार पर समन रद्द किया कि ईडी ने किसी अपराध से जुड़े हुए धन या संपत्ति की मौजूदगी का पुख्ता प्रमाण नहीं दिया। यह प्रवर्तन निदेशालय अधिनियम पीएमएलए के तहत अनिवार्य है कि किसी कार्रवाई से पहले प्राथमिक अपराध और उससे उत्पन्न आय दोनों की पुष्टि हो।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा ‘ड्रोन मिसाइल नहीं है ईडी’
ईडी को हाल के महीनों में दूसरी बार फटकार मद्रास हाईकोर्ट से मिली। 17 जुलाई के आदेश में अदालत ने ईडी की उस कार्रवाई को अवैध बताया जिसमें आरकेएम पावरजन नामक कंपनी के 901 करोड़ रुपए की एफडी को फ्रीज कर दिया गया था। यह मामला कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़ा था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट पहले ही आवंटन को रद्द कर चुका था। सीबीआई जांच के बावजूद ईडी ने स्वतंत्र जांच शुरू कर बैंक खातों और एफडी फ्रीज कर दी।
जहाज नहीं तो माइन कैसे फटेगी
अदालत ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा, यह उस लिम्पेट माइन जैसा है जो जहाज से चिपक कर ही फटता है। यदि जहाज ही नहीं, तो माइन का कोई असर नहीं होगा। कोर्ट के अनुसार, जब तक ‘अपराध की कमाई’ साबित न हो, ईडी की कार्रवाई असंवैधानिक मानी जाएगी।
ईडी की मनमानी कार्यालय सील किया बिना किसी अधिकार के
17 जून 2025 को मद्रास हाईकोर्ट ने ईडी के अधिकारियों को आड़े हाथों लिया। फिल्म निर्माता आकाश भास्करन की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा कि किस अधिकार से ईडी ने बंद ऑफिस और आवासीय परिसर को सील किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीएमएलए के तहत ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो ईडी को ये अधिकार देता हो। यह कानूनी सीमा के उल्लंघन का गंभीर मामला है।
ईडी की साख राजनीति बनाम जांच एजेंसी
सवाल उठता है कि जब शीर्ष न्यायालयों को बार-बार ईडी की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करनी पड़ रही है, तो यह संस्था स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रह गई है। पिछले कुछ वर्षों में विपक्षी नेताओं, राज्य सरकारों, मुख्यमंत्रियों, यहां तक कि नौकरशाहों के खिलाफ जिस तरह ईडी ने कार्रवाई की है, वह इसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पश्चिम बंगाल, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र हर राज्य में जहां गैर-बीजेपी सरकार है, वहां ईडी की सक्रियता अधिक रही है। इससे यह धारणा बनी है कि एजेंसी को ‘टारगेटेड पॉलिटिकल टूल’ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
जवाबदेही तय होगी या सिर्फ फटकार मिलेगी
सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियां कोई सामान्य चेतावनी नहीं हैं। यह देश की न्यायिक व्यवस्था की उस बेचैनी को दिखाती हैं, जो जांच एजेंसियों की ‘बेलगाम कार्यशैली’ से उपजी है। जब न्यायपालिका को कहना पड़े कि ‘ईडी को राजनीतिक लड़ाइयों के लिए इस्तेमाल न किया जाए’ तो इसका सीधा अर्थ है लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है। यह चेतावनियां ईडी को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करेंगी, या फिर यह सियासत की रेत में दहन हो जाएगी।




