ASG आई हॉस्पिटल का डॉक्टर प्रत्युष रंजन चोर लुटेरा कसाई, अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से मासूम अनाया ने अपनी जान गवाई
आंख की इलाज के लिये परिजनों ने लगाई थी आस मासूम की लौट आई लाश!

● काशी में इलाज नहीं ‘मौत का कारोबार’ फल-फूल रहा है!
● काशी की पावन मिट्टी में कब तक बिकती रहेगी इंसानियत?
● चिकित्सा शब्द अब सरकारी संरक्षण में चल रहे ‘प्राण हरने के उद्योग’ का नया नाम है
● काशी में अब बचा क्या? आस्था, मौत और अस्पताल की ठगी?
● इलाज की आड़ में लाशों का बाजार लाइसेंसधारी कत्लखाने
● अनाया की चीख सिस्टम की बहरापन साबित!
● सफेद कोट सेवा नहीं, मौत की डील का प्रतीक
● तीन अस्पताल एक साजिश सबूत मिटाने का खेल
● मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट निजी अस्पतालों का सुरक्षा कवच
● भ्रष्ट सीएमओ उद्योग चल रहा है, कार्रवाई सो रही है

वाराणसी। काशी जहां मरने को मोक्ष कहा जाता है, वही काशी आज मौत बेचने वाले सफेद कोट वालों का नया क्रीड़ा-स्थल बन चुकी है। यहां इलाज की उम्मीद में अस्पताल जाना, अब जीवन से जुआ खेलने जैसा है। राम भक्तों की नगरी में अस्पतालों में भगवान नहीं, लाशों पर गिनती का खेल खेलते सौदागर बैठ चुके हैं।
जहां कभी ममता के लिए गंगा बहती थी, अब उन धारा के तटों पर अनाया जैसी मासूम बच्चियां रक्त बनकर बह रही हैं। आंख की रोशनी बचाने गए थे…पर पूरी जिंदगी की रोशनी क्यों बुझा दी गई? कुछ ऐसा ही वाकया बनारस में विगत दिवस एएसजी आई हॉस्पिटल महमूरगंज में में हुआ।
आप को बताते चले कि इसका संचालक डॉक्टर प्रत्युष रंजन है जिसकी लापरवाही से मासूम अनाया रिजवान की जान चली गयी। ऐसे प्रत्युष रंजन डाक्टर को चोर लुटेरा कसाई कहना कही से गलत प्रतीत नही होता है
काशी में ‘चिकित्सा’ का नया नाम व्यवसाय, लालच और मौत
वाराणसी आज प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। स्मार्ट सिटी, मेडिकल हब, पर्यटन नगरी…लेकिन अस्पतालों की हकीकत इन चमकदार नारों की मौत का ताना-बाना है। पूरी काशी में निजी अस्पतालों की एक माफिया व्यवस्था खड़ी हो चुकी है, कौन सा ऑपरेशन होगा, कब होगा, कितना पैसा लगेगा, जिंदा रोगी बाहर आएगा या लाश? इसका फैसला डॉक्टर नहीं कमाई निर्धारण विभाग करता है। मरीज एटीएम है यही नीति है! जब बैलेंस खत्म, तो मरीज भी खत्म।ये हृदय विदारक घटना बनारस में 16 अक्टूबर को एएसजी आई हॉस्पिटल महमूरगंज में हुई,जहां पर डॉक्टर प्रत्युष रंजन की कुकर्मो से हँसती खेलती गुड़िया अनाया रिजवान काल के गाल में समा गई।

अनाया एक मासूम जिसे इस सिस्टम ने बेरहमी से खत्म किया
सात साल की नन्हीं परी अनाया रिजवान। कक्षा दो की छात्रा सपनों से भरी जिंदगी। समस्या आंख की रेटीना का छोटा-सा ऑपरेशन था,एएसजी आई हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर प्रत्युष रंजन समेत अन्य डॉक्टरों ने कहा कुछ नहीं है, एक घंटे में सब ठीक हो जायेगा परन्तु 16 अक्टूबर का वह दिन काशी के इस यमराज सरीखे अस्पताल में अब तक की सबसे भयावह तारीखों में दर्ज हो गया। परिवार को बार-बार भरोसा दिया गया सब ठीक है। जबकि अंदर
सब खत्म हो चुका था।
ऑपरेशन थिएटर में मौत… और बाहर झूठ की लाइव कहानी
अनाया की मां आफरीन जब एएसजी आई हॉस्पिटल के अंदर जहाँ उनकी मासूम बेटी अनाया ऐडमिट थी पहुंचीं तो आंखों के सामने दृश्य ने मां का कलेजा फाड़ दिया। बच्ची उल्टी स्थिति में पड़ी आसपास कोई डॉक्टर, नर्स नहीं थी, मशीनें तक बंद, बच्ची तड़पती और अकेली यह लापरवाही नहीं हत्या की क्रूर पटकथा थी।
मौत छिपाने की साजिश तीन अस्पतालों की ‘लाश रिलॉन्च प्रक्रिया’
एएसजी आई हॉस्पिटल के डॉक्टर प्रत्युष रंजन समेत वहां पर मौजूद अन्य डॉक्टरों ने परिजनों से कहा कि आप की बेटी को दूसरे अस्पताल ले जाएंगे। फिर शुरू हुई नई लूट योजना आशीर्वाद पहला झूठ सिर्फ भटकाने के लिए पॉपुलर अस्पताल दूसरा झूठ न दस्तावेज, न मरीज मैट केयर अस्पताल 20 हजार पहले वेंटिलेटर बाद में मौत तत्काल अनाया की नब्ज पहले ही थम चुकी थी…बाकी सिर्फ पैसे की नब्ज चालू थी।
मां का बयान दिल दहला देने वाला आरोप
अनाया की मां ने बताया कि मेरी बेटी मर चुकी थी पर हमें बताया गया कि सब ठीक है। डॉक्टर हमें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजते रहे। हम रोते रहे और हमारी बच्ची मरती रही।
डॉक्टर का फोन अपराध को बचाने की आखिरी चाल
जब मामला थाने पहुंचा, अचानक एएसजी आई हॉस्पिटल से डॉ. कार्तिकेय का फोन अनाया की मां आफरीन के पास आता है कि अस्पताल आ जाइए कुछ बात करना है। आफरीन ने कहा कैसी बात? तो कहा गया कि अनाया के संबंध में।
संरक्षण प्राप्त हत्यारे मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट का काला सच
हर निजी अस्पताल में लिखा मिलता है Hospital Protected Under Medical Protection Act
लेकिन कहीं यह नहीं लिखा मिलता है कि यह अस्पताल Patient Protection Act के तहत सुरक्षित है। मौत की मशीन को सरकारी ढाल मिल चुकी है और मरीजों की सुरक्षा को भेड़ियों के हवाले कर दिया गया।
काशी की आत्मा को झकझोरता सवाल
काशी मोक्ष का द्वार है पर यह किसने कहा कि
उस मोक्ष को अस्पताल में पहले ही दे दिया जाए? यह शहर भगवान शिव का है पर क्या शिव भी इन मौत के दलालों के आगे बेबस हैं? पीएम मोदी के क्षेत्र में जीवन की कीमत इतनी सस्ती हो चुकी है और सीएमओ कार्यालय का काम अस्पतालों की दलाली करना है। सीएमओ डॉ.संदीप चौधरी व डिप्टी सीएमओ डॉ.पीयूष राय इस इंतजार में रहते हैं कि किसी अस्पताल की शिकायत प्राप्त हो और वसूली शुरू की जाए। इनका उद्देश्य प्रतिदिन कम से कम 10 से 20 लाख वसूली करना है।
न्याय की मांग सबूत सुरक्षित हों, दोषियों पर हत्या का मामला दर्ज करने हेतु परिवार व अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी ने मांग की है। एएसजी और मैट केयर अस्पताल का सीसीटीवी फुटेज, एनेस्थीसिया रिकॉर्ड, वेंटिलेटर रिपोर्ट, ऑपरेशन रिपोर्ट सभी जब्त किए जाएं। जिससे स्पष्ट हो कि यह एक हत्या है। लापरवाही साबित करने की साजिश न की जाए। यह सिर्फ एक बच्ची की मौत नहीं पूरी मानवता की हत्या है! काशी में मृत्यु का सौदागर बैठा है, वह रेट तय करता है कौन कितना देकर मरेगा। अनाया की आंख की रोशनी बचाने निकली मां आज पूछ रही है भगवान कहां है? काशी की गंगा आज भी बह रही है लेकिन उसके जल में अनाया का खून बहकर पूछ रहा है कब रुकेगा यह मौत का व्यापार?
● सात वर्षीय अनाया की आंख की रेटीना का ‘साधारण ऑपरेशन’ बना मौत का कारण
●एएसजी आई हॉस्पिटल की लापरवाही, मां को घंटों भ्रम में रखा
● तीन-तीन अस्पतालों का चक्कर, नोट और नेग्लिजेंस
● मैट केयर में वेंटिलेटर पर डालते ही मौत, 20 हजार रुपए तत्काल जमा कराया
● परिजनों द्वारा सीसीटीवी, एनेस्थीसिया रिकॉर्ड व मेडिको-लीगल जांच की मांग
● मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट निजी अस्पतालों की ढाल, मरीजों के लिए कोई कवच नहीं
● सीएमओ कार्यालय में भ्रष्टाचार, कार्रवाई नाम की औपचारिकता भी नहीं
● काशी में स्वास्थ्य सेवा या मृत्यु का अड्डा?
● न्याय की लड़ाई शुरू परिजनों ने पीएम, डीएम व स्वास्थ्य सचिव को लिखा पत्र
भेलूपुर थाना प्रभारी की हीलाहवाली
आजादी के बाद आज भी पुलिस का चेहरा आम आदमी के लिये क्रूर ही है इतनी दुःखद घटना के बाद भी भेलूपुर थाना प्रभारी सुधीर कुमार त्रिपाठी द्वारा घटना का हवाला दूसरे हॉस्पिटल का बताकर मामले की लीपापोती का कुत्सित प्रयास किया गया, जबकि देखा जाय तो घटना के मूल में ही एएसजी आई हॉस्पिटल की मुख्य भूमिका है, लेकिन वो कहावत है न बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रूपइया। ईश्वर न करे कि यही घटना थाना प्रभारी की बेटी का हुई होती तो तो शायद अस्पताल संचालक जेल में होता। वो कहावत है जेकर न फटे पैर बेवाई उ का जाने पीर पराई । कोई भी घटना घटने के बाद एफआईआर लिखा जाना पीड़ित का संवैधानिक अधिकार है।

मुख्यमंत्री हो या डीजीपी चाहे लाख नसीहत नीचे के अधिकारियों को दे कि पीड़ित की बात सुनी जाए उसपर विधिसम्मत कार्रवाई की जाए लेकिन नीचे की अधिकारी व थाना प्रभारियों के कान पर जु नही रेंगती इनकी तो एक ही कार्यप्रणाली है मैं चाहे ये करु मैं चाहे वो करु मेरी मर्जी । सवाल बार -बार यही उठता है कि पुलिस का रवैया आम जनता के लिये कब बदलेगा फिलहाल दूर दूर तक गुड पुलिसिंग की सम्भावना नगण्य प्रतीत होती नजर आ रही है।




