
~ 140 करोड़ लोगों का देश, एक आदमी की दोस्ती में गिरवी क्यों?
~ ‘नमस्ते ट्रम्प’ से ‘हाऊडी मोदी’ तक कूटनीति या चुनावी एजेंडा
~ कोरोना काल में अमेरिकी राष्ट्रपति की झांकी, किसकी जिम्मेदारी
~ ट्रम्प की वापसी के बाद मोदी सरकार की बेचैनी क्यों बढ़ी
~ जो बाइडेन से मेलजोल बना, लेकिन ट्रम्प की धमकी में क्यों झुके
~ क्या अमेरिका की खुफिया फाइलों में कैद है मोदी राज का सच
~ अमेरिका से रिश्ते आत्मनिर्भर भारत या विदेशी रहमोकरम पर देश

देश के प्रधानमंत्री की विदेश नीति व्यक्तिगत यारियों पर नहीं, राष्ट्रहित की ठोस नींव पर टिकी होनी चाहिए। लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के रिश्ते जिस तरह से एक व्यक्ति डोनाल्ड ट्रम्प की दोस्ती में उलझे रहे, उसने न केवल भारतीय लोकतंत्र की साख को धूमिल किया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। जिस वक्त देश में कोरोना से मौतों का आंकड़ा बेकाबू था, उसी वक्त अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रम्प’ जैसा आयोजन क्यों कराया गया? क्या यह ट्रम्प की चुनावी नौटंकी थी या भारत की विदेश नीति का पतन? अब जब ट्रम्प फिर से अमेरिका की सत्ता के करीब हैं, तो मोदी सरकार की खामोशी और दब्बूपन किस डर का संकेत है। क्या ट्रम्प के पास मोदी राज की वो फाइलें हैं जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे को हिलाकर रख सकती हैं।
- नमस्ते ट्रम्प का आयोजन देश में महामारी की आहट, फिर भी लाखों की भीड़
- ‘हाऊडी मोदी’ में अमेरिकी चुनावी रणनीति का भारतीय समर्थन
- मोदी-ट्रम्प के रिश्ते व्यक्तिगत हितों की सार्वजनिक नुमाइश या रणनीतिक साझेदारी
- बाइडेन से बनती दूरी और ट्रम्प की वापसी पर तनाव
- व्हाइट हाउस में ट्रम्प के पिट्ठुओं द्वारा संसद पर हमला मोदी की चुप्पी
- क्या अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के पास मोदी सरकार की आंतरिक फाइलें हैं
- ट्रम्प की शर्तों पर काम कर रही है भारतीय सरकार
- फॉरेन पॉलिसी में हिंदुत्व एजेंडा का समावेश भारत की साख को खतरा
- ग्लोबल डिप्लोमेसी में भारत की स्वतंत्रता को अमेरिकी याराना लील गया
- ट्रम्प की वापसी के डर से अमेरिकी नीतियों पर चुप्पी ये कैसी आत्मनिर्भरता
यारी के पीछे छुपा इम्तिहान
देश के प्रधानमंत्री की विदेश नीति व्यक्तिगत यारियों पर नहीं, राष्ट्रहित की ठोस नींव पर टिकी होनी चाहिए। लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के रिश्ते जिस तरह से एक व्यक्ति डोनाल्ड ट्रम्प की दोस्ती में उलझे रहे, उसने न केवल भारतीय लोकतंत्र की साख को धूमिल किया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। जिस वक्त देश में कोरोना से मौतों का आंकड़ा बेकाबू था, उसी वक्त अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प जैसा आयोजन कराया गया।
‘नमस्ते ट्रम्प’ महामारी के बीच दोस्ती का महोत्सव
2020 की शुरुआत में जब चीन से फैला कोरोना वायरस दुनिया में तबाही मचा रहा था, तब भारत में सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए भव्य ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम आयोजित किया। अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में लाखों लोगों की भीड़, रंगीन स्वागत, सड़क सज्जा और करोड़ों रुपये खर्च कर एक ऐसा आयोजन किया गया जिसने वैश्विक महामारी की आहट को अनदेखा कर दिया। क्या यह आयोजन आवश्यक था या सिर्फ ट्रम्प की चुनावी छवि चमकाने के लिए भारत की सरकार द्वारा निभाया गया दोस्ती का किरदार। इस कार्यक्रम ने न केवल भारत के संसाधनों का दुरुपयोग किया, बल्कि बाद में यही भीड़ कोविड फैलाव का वाहक बनी।
हाऊडी मोदी अमेरिकी मंच से भारत की भूमिका
‘नमस्ते ट्रम्प’ से पहले 2019 में मोदी अमेरिका गए थे जहां उन्होंने ‘हाऊडी मोदी’ कार्यक्रम में ट्रम्प के लिए मंच साझा किया। यह आयोजन ह्यूस्टन, टेक्सास में हुआ जहां अप्रवासी भारतीयों की भारी भीड़ जुटाई गई और मोदी ने खुले मंच से ट्रम्प के लिए ‘अबकी बार, ट्रम्प सरकार’ का नारा दे डाला। यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री द्वारा किसी अन्य देश के चुनावों में की गई सीधी हस्तक्षेप मानी गई। मोदी सरकार ने इसे सांस्कृतिक कार्यक्रम बताया, लेकिन पूरी दुनिया ने इसे ट्रम्प की राजनीतिक रैली के रूप में देखा। क्या यह भारत की विदेश नीति की स्वायत्तता थी या व्यक्तिगत संबंधों में राष्ट्र को गिरवी रखने की शुरुआत!
बाइडेन की जीत मोदी के लिए संकट की शुरुआत
2020 में अमेरिकी जनता ने ट्रम्प को नकारते हुए जो बाइडेन को राष्ट्रपति चुना। लेकिन यह पराजय केवल ट्रम्प की नहीं थी, बल्कि कहीं न कहीं मोदी सरकार की विदेश नीति की भी थी। बाइडेन के सत्ता में आते ही भारत-अमेरिका संबंधों में ठंडापन दिखने लगा। किसान आंदोलन पर बाइडेन प्रशासन की चिंताओं से लेकर मानवाधिकार मुद्दों पर भारत सरकार की आलोचना, सबने मोदी सरकार को असहज कर दिया। मोदी ने कोशिशें कीं, फोन कॉल, मीटिंग, संयुक्त बयान लेकिन वो सहजता और आत्मीयता नहीं लौटी जो ट्रम्प राज में थी।
ट्रम्प की वापसी की आहट और भारतीय खामोशी
वर्ष 2024-25 में जब ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति पद की दौड़ मेंआगे बढ़े और वापसी की संभावना प्रबल हो गई तो भारत सरकार असमंजस में आ गई। ट्रम्प ने जब राजनीतिक पुनर्वापसी की तो मोदी सरकार की अमेरिका नीति में एक खास किस्म की चुप्पी और दब्बूपन दिखाई देने लगा। कोई आधिकारिक रणनीति नहीं, कोई आलोचना नहीं, न ही कोई स्पष्ट पक्ष। मोदी सरकार अमेरिका को आंख नहीं दिखा पा रही ना ट्रम्प के अनावश्यक बयानों पर प्रतिक्रिया, ना उनके हिंदू राष्ट्रवाद समर्थक संगठनों से बढ़ते संबंधों पर टिप्पणी कर पा रही है।
क्या ट्रम्प के पास हैं मोदी सरकार के गोपनीय राज!
सूत्रों के अनुसार ट्रम्प के साथ मोदी के रिश्ते सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि बेहद व्यक्तिगत थे। उनकी कई निजी बातचीतें, अघोषित सौदे और समझौते केवल सीमित अधिकारियों तक ही सीमित रहे। ऐसा माना जाता है कि ट्रम्प की टीम के पास मोदी सरकार से जुड़े कई संवेदनशील दस्तावेज, बातचीत की रिकॉर्डिंग, चुनावी डेटा साझेदारी और खुफिया नेटवर्क तक की जानकारी हो सकती है। यदि ऐसा है, तो यह सिर्फ एक कूटनीतिक संकट नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता पर भी सवाल है। क्या भारत की नीतियां एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की निजी फाइलों के चलते तय हो रही हैं।
बाइडेन प्रशासन और भारत की सीमित पकड़
जो बाइडेन के शासनकाल में अमेरिका ने भारत के साथ कई रणनीतिक साझेदारियां कीं क्वाड, इंडो-पैसिफिक रणनीति, रक्षा सौदे लेकिन इन सबमें भारत की भूमिका अक्सर गौण रही। ट्रम्प के समय जो ‘दोस्ताना दिखावा’ था, उसकी जगह बाइडेन ने पेशेवर दूरी रखी। मोदी सरकार की बाइडेन टीम से मेलजोल की कोशिशें भी असहज रहीं। कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका की रिपोर्टें, धार्मिक स्वतंत्रता पर आलोचनाएं और लोकतंत्र पर सवाल, ये सब भारत सरकार को असहज करते रहे।
विदेश नीति में यारी की घुसपैठ भारत की हार
एक प्रधानमंत्री की विदेश नीति देश के सामरिक हितों पर आधारित होती है। लेकिन जब वह व्यक्तिगत संबंधों, ‘मित्रता’, और प्रचार केंद्रित आयोजनों पर टिकी हो, तो देश का नुकसान तय होता है। ट्रम्प के लिए सजाए गए मंच, उनके चुनाव प्रचार में अप्रत्यक्ष सहयोग, और अब ट्रम्प की धमकियों के आगे झुकी सरकार क्या यही है न्यू इंडिया की विदेश नीति। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र को आज जरूरत है स्पष्ट नीति, सार्वजनिक जवाबदेही और संसदीय संवाद की न कि ट्रम्प-मोदी याराना नीति की।
यारी से ऊपर हो राष्ट्रहित
आज जब विश्व बहुध्रुवीय हो रहा है, चीन आक्रामक है, रूस अस्थिर है, और अमेरिका अपनी चुनावी राजनीति में उलझा है, तब भारत को चाहिए रणनीतिक स्पष्टता और आत्मनिर्भर विदेश नीति। लेकिन दुर्भाग्य से भारत की कूटनीति आज ट्रम्प की मर्जी पर टिकी दिखती है। 140 करोड़ की आबादी वाला देश, जो ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और लोकतंत्र की ताकत से विश्व को राह दिखा सकता है, वह अगर एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की फाइलों से डरकर विदेश नीति तय कर रहा है, तो यह पूरे देश के आत्मसम्मान पर चोट है। सवाल है कि हमारी विदेश नीति राष्ट्र के लिए है या प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत यारी के लिए! अब समय है ट्रम्प के रिश्तों से बाहर निकलने और भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को फिर से स्थापित करने का।




