बकौल जस्टिस न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी: बनारस से मिला स्नेह और अधिवक्ताओं का सहयोग कभी नहीं भूल पाऊंगा रहूंगा सबका आभारी
सेन्ट्रल बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में पदोन्नत न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी को दी भावभीनी विदाई

~ अधिवक्ता समाज मेरा परिवार है, किसी भी दमन को स्वीकार नहीं करूंगा
~ बार-बेंच के बीच विश्वास की मिसाल कायम करने वाले न्यायमूर्ति को मिला सम्मान
~ कार्यक्रम की अध्यक्षता मंगलेश दुबे व संचालन राजेश गुप्ता ने किया
~ काशीवासियों से मिला प्रेम और अपनापन मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी
~ अधिवक्ताओं ने माल्यार्पण, सरस्वती वंदना और मंत्रोच्चारण से किया अभिनंदन
~ अध्यक्ष मंगलेश दुबे बोले तिवारी जी ने न्यायपालिका की गरिमा को ऊंचाई दी
~ समारोह में न्यायिक अधिकारियों व वरिष्ठ अधिवक्ताओं की रही गरिमामई उपस्थिति
वाराणसी। कभी-कभी किसी विदाई में भी अपनापन झलकता है, और किसी औपचारिक समारोह में भी परिवार का भाव महसूस होता है। 4 अक्टूबर 2025 वाराणसी की न्यायिक बिरादरी के लिए ऐसा ही दिन था। दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में जब हाईकोर्ट के लिए नवनियुक्त न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी मंच पर पहुंचे, तो माहौल में औपचारिकता नहीं, आत्मीयता तैर रही थी। अधिवक्ताओं ने माल्यार्पण किया, सरस्वती वंदना से सभागार गुंज उठा, और भावनाओं के बीच काशी के इस विद्वान न्यायाधिकारी को सम्मानपूर्वक विदा किया गया। मंच पर न्यायमूर्ति तिवारी के साथ न्यायिक अधिकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, सेन्ट्रल बार के पदाधिकारी और बड़ी संख्या में अधिवक्ता मौजूद थे। यह कोई साधारण समारोह नहीं था। यह एक ऐसे व्यक्ति के लिए था जिसने न्याय को केवल आदेशों में नहीं, बल्कि संवेदना और व्यवहार में जिया
काशी से जुड़ाव और अपनापन की अनुभूति
न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि जब वे पहली बार वाराणसी आए, तो उन्हें लगा कि यह शहर उनके लिए नया है। लेकिन कुछ ही दिनों में यह अहसास मिट गया। शुरुआत में काशीवासियों को पहचानने में थोड़ा समय लगा, परंतु मुझे कभी यह एहसास नहीं हुआ कि मैं यहां पराया हूं। इस शहर ने मुझे अपने परिवार के सदस्य की तरह स्वीकार किया। मुझे जो सम्मान, सहयोग और स्नेह यहां के अधिवक्ताओं से मिला, वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने कहा कि काशी की मिट्टी में एक ऐसी दिव्यता है जो हर व्यक्ति को अपने भीतर समेट लेती है। काशी से मुझे केवल एक ताकत नहीं, बल्कि एक असीम शक्ति की अनुभूति होती है। यहां न्याय करना केवल दायित्व नहीं, बल्कि साधना जैसा अनुभव था।
सम्मान, सराहना और सौहार्द
दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में हुआ यह आयोजन विधिक समाज की एकता और सौहार्द का अद्भुत उदाहरण था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मंगलेश दुबे ने व संचालन राजेश गुप्ता ने किया। समारोह की शुरुआत सरस्वती वंदना और मंत्रोच्चारण के साथ हुई, इसके बाद अधिवक्ताओं ने न्यायमूर्ति तिवारी का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया। सामाजिक समरसता और सम्मान से भरे माहौल में जब न्यायमूर्ति तिवारी मंच पर आए, तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की आंखों में भावनाओं की नमी थी। यह नमी उस व्यक्ति के प्रति सम्मान की थी जिसने प्रशासन और न्यायपालिका के बीच संवाद और संवेदना का सेतु बनाया था।
काशी की शक्ति से मिला विश्वास : न्यायमूर्ति
न्यायमूर्ति श्री तिवारी ने अपने भाषण में कहा कि काशी में न्याय देना मात्र एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव था। उन्होंने कहा जब-जब मैं अदालत में बैठता था, तब-तब मुझे यह महसूस होता था कि यहां का हर अधिवक्ता, हर मुवक्किल, हर नागरिक मुझसे केवल फैसला नहीं, बल्कि न्याय की उम्मीद रखता है। यह जिम्मेदारी मुझे सदैव प्रेरित करती रही। कहा कि काशी की धरती पर न्याय करते हुए मैंने केवल कानून की किताबें नहीं देखीं, बल्कि मनुष्यता का चेहरा देखा। यहां मुझे जो स्नेह मिला, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
अधिवक्ता समाज को बताया ‘परिवार’
न्यायमूर्ति तिवारी ने अपने वक्तव्य में उस प्रकरण का उल्लेख किया जिसमें कुछ सप्ताह पूर्व अधिवक्ता समाज और जिला प्रशासन के बीच टकराव हुआ था। उन्होंने कहा कि जब अधिवक्ता समाज और जिला प्रशासन के बीच मतभेद हुआ था, तब मैंने प्रशासन से स्पष्ट कहा कि यह अधिवक्ता समाज मेरा परिवार है। इनके साथ किसी भी प्रकार का अन्याय या दमन मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। उनकी यह बात सुनकर पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। न्यायमूर्ति तिवारी के इस वक्तव्य ने अधिवक्ताओं के दिलों में गहरी छाप छोड़ी, क्योंकि वर्षों बाद किसी न्यायिक अधिकारी ने इतनी स्पष्टता से अधिवक्ता समाज के प्रति अपने भाव प्रकट किए थे।
बार और बेंच के बीच विश्वास की मिसाल
न्यायमूर्ति तिवारी ने कहा कि वाराणसी की बार और बेंच के बीच जो संबंध बना, वह पूरे प्रदेश में एक आदर्श उदाहरण है। यहां कार्य करते हुए मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं बेंच पर हूं और अधिवक्ता बार में हैं। हमारे बीच संवाद, सहयोग और परस्पर सम्मान की भावना ने न्यायिक व्यवस्था को मजबूत किया। उन्होंने सेन्ट्रल बार के पदाधिकारियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके सहयोग के बिना न्यायिक प्रक्रिया इतनी सहज और पारदर्शी नहीं हो सकती थी। कहा कि आप सबने जिस अनुशासन और सम्मान के साथ न्यायालयीन कार्यों में सहयोग दिया, उसने मुझे हमेशा प्रभावित किया। यही बार-बेंच की सच्ची आत्मा है।
सेन्ट्रल बार के अध्यक्ष और पदाधिकारियों के वक्तव्य
सेन्ट्रल बार अध्यक्ष मंगलेश दुबे ने कहा कि न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी जैसे अधिकारी के साथ कार्य करना अपने आप में गौरवपूर्ण रहा। उन्होंने वाराणसी की न्यायपालिका में एक नई परंपरा स्थापित की निष्पक्षता, अनुशासन और संवेदनशीलता की। अधिवक्ता समाज के साथ उनका व्यवहार हमेशा सम्मानपूर्ण रहा। उन्होंने हर अधिवक्ता को एक सहयोगी के रूप में देखा, न कि केवल एक पेशेवर प्रतिनिधि के रूप में।
राजेश गुप्ता ने कहा कि तिवारी जी का कार्यकाल वाराणसी में अधिवक्ताओं के लिए प्रेरक रहा है। उन्होंने हर अधिवक्ता की बात सुनी, हर मामले में न्याय को सर्वोपरि रखा और हमेशा कहा ‘कोर्ट जनता का है, अधिवक्ता उसकी आवाज हैं।
कार्यक्रम में मंच पर सीजेएम मनीष कुमार, न्यायाधीश रविन्द्र श्रीवास्तव, सतीश तिवारी, शशांक श्रीवास्तव, और राजेश गुप्ता, अजय श्रीवास्तव, घनश्याम पटेल, अशोक सिंह प्रिन्स, डॉ. उमाकांत सिंह यादव, कन्हैया पटेल, रोहित मौर्या, रामअवतार पाण्डेय, प्रभात सिंह चौहान, वासुदेव पटेल, समीर सिंह, आशीष सिंह, अरविन्द राय, अजय विक्रम सिंह, प्रभा शंकर मिश्रा, सुरेश श्रीवास्तव, राधेश्याम सिंह, मीरा यादव, अविनाश गुप्ता, सत्य प्रकाश सिंह, दीपक राय, शाहनवाज खान, विनय जायसवाल, आनंद पटेल सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता सहित न्यायिक परिवार के कई सदस्य मौजूद रहे। सभागार में अधिवक्ताओं का जोश देखते ही बनता था।
काशी और न्याय एक आत्मिक रिश्ता
काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवित दर्शन है और न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी ने इस दर्शन को अपने कार्य में उतारा। न्यायालय के भीतर उनके निर्णयों में संवेदना और दृढ़ता का संतुलन झलकता रहा। उन्होंने कभी न्याय को केवल कानून की धारा नहीं माना, बल्कि उसे नैतिक जिम्मेदारी की तरह निभाया। काशी में उनके कार्यकाल के दौरान कई जटिल मामलों का निपटारा हुआ, लेकिन हर फैसले में न्याय की गरिमा और मानवीयता का संतुलन दिखा। यही कारण है कि अधिवक्ता समाज उन्हें केवल न्यायाधीश नहीं, बल्कि संवेदना के प्रतीक के रूप में याद करता है।
- काशी से मिला स्नेह मेरी सबसे बड़ी पूंजी है : न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी
- अधिवक्ता समाज मेरा परिवार है, उस पर कोई भी दमन स्वीकार नहीं करूंगा
- यहां न्याय करना केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि एक साधना जैसा अनुभव
- बार और बेंच के बीच जो विश्वास बना, वह काशी की न्यायिक परंपरा की पहचान है
- तिवारी जी ने न्यायपालिका की गरिमा को नई ऊंचाई दी। मंगलेश दुबे, अध्यक्ष, सेन्ट्रल बार एसोसिएशन
न्याय की परंपरा और काशी की गरिमा
वाराणसी का न्यायिक इतिहास बहुत पुराना है यह शहर हमेशा से धर्म, नीति और न्याय का संगम रहा है। ऐसे में न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी का कार्यकाल इस परंपरा का विस्तार बन गया। उन्होंने अधिवक्ताओं, नागरिकों और प्रशासन तीनों के बीच विश्वास का पुल बनाया।उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी संवाद का तरीका। उन्होंने किसी भी विवाद को टकराव में नहीं, बल्कि संवाद में हल करने का प्रयास किया। यही कारण है कि उनके न्यायिक कार्यकाल को संवेदनशील न्याय का दौर कहा जा सकता है।
अधिवक्ताओं की प्रतिक्रियाएं
समारोह के बाद अधिवक्ताओं में भावनात्मक माहौल था। कई अधिवक्ताओं ने कहा कि तिवारी जी जैसे अधिकारी बार-बार नहीं आते। वरिष्ठ अधिवक्ता अजय विक्रम सिंह ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध कर दिया कि न्याय केवल किताबों से नहीं, व्यवहार और दृष्टिकोण से मिलता है। उनकी विदाई एक युग की समाप्ति जैसी लग रही है। अधिवक्ता अरविन्द राय ने कहा कि उनकी सादगी, सहजता और अधिवक्ता समाज के प्रति सम्मान हमें हमेशा प्रेरित करेगा।
एक भावनात्मक विराम
समारोह के अंत में जब न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी ने कहा कि मुझे जब-जब आप बुलाएंगे, मैं आपके साथ खड़ा रहूंगा, तो सभागार तालियों से गूंज उठा। यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि एक रिश्ते की थी। न्याय और अधिवक्ता समाज के बीच उस संबंध की, जो काशी की आत्मा का हिस्सा है। काशी की धरती से जाते हुए उन्होंने पीछे छोड़ा एक प्रेरणा, एक विश्वास और एक मिसाल कि न्याय का चेहरा केवल कठोर नहीं, बल्कि करुण भी हो सकता है।
- दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन ने किया विदाई समारोह
- न्यायमूर्ति जयप्रकाश तिवारी हुए हाईकोर्ट में पदोन्नत
- बोले काशी ने मुझे अपनापन दिया, मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा, अधिवक्ता समाज को बताया ‘परिवार’
- बार-बेंच संबंधों में विश्वास की नई मिसाल
- अध्यक्ष मंगलेश दुबे ने कहा कि तिवारी जी ने न्यायपालिका की गरिमा बढ़ाई




