वाराणसी

अवैध निर्माण पर वीडीए कैसे करे कार्यवाही, जब ठेका ले रहे भाजपाई 

विकास की दलाली में भाजपाई हस्तक्षेप से पस्त वीडीए अफसर 

बन रहे बलि का ‘बकरा’ अधिकारी, जन प्रतिनिधि बने ‘ठेकेदार’

भाजपा नेताओं का मंच से झूठा दावा ‘जनप्रतिनिधि हस्तक्षेप नहीं करते’

हकीकत हर टेंडर, हर फाइल में सत्ताधारी नेता की छाया

वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग की विनम्रता का भरपूर दोहन

अभिषेक गोयल के ट्रांसफर की असली वजह ‘भाजपाई आदेशों’ की अनदेखी

निगम व प्राधिकरण में भाजपाई ‘ठेकेदारी मॉडल’

विरोध करने वाले अफसरों का स्थानांतरण

हर योजना में ‘सिफारिश’, हर ठेके में ‘कमीशन’

मंच पर नैतिकता, जमीन पर ठगी काशी का भाजपा मॉडल

 

वाराणसी। काशी की गलियों में विकास की गूंज कम, सत्ता की गूंज ज्यादा सुनाई देती है। मंचों से नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले भाजपाई जनप्रतिनिधि पर्दे के पीछे सरकारी तंत्र को अपनी जेब की घड़ी बना चुके हैं। नगर निगम से लेकर वीडीए तक, हर विभाग में हस्तक्षेप का ऐसा सिलसिला चल पड़ा है कि अधिकारी आंखें मूंदकर काम करने को विवश हैं। मंचों पर दावा ‘हम हस्तक्षेप नहीं करते’, जमीन पर हकीकत ‘बिना नेताओं की सिफारिश पत्ता भी नहीं हिलता’ काशी में विकास नहीं, दलाली का ढांचा खड़ा हो रहा है।

मंच पर नैतिकता का नाटक, पीछे से पूरी सत्ता की पकड़

काशी में आयोजित वीडीए की कार्यशाला में भाजपा के मंत्री रविन्द्र जायसवाल, मंत्री दया शंकर मिश्र ‘दयालू’, मेयर अशोक तिवारी, मुगलसराय के विधायक रमेश जायसवाल, कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव, एमएलसी व जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा, साधना वेदांती, प्रदीप अग्रहरि सहित तमाम नेता मंच पर विराजमान थे, तो उनके शब्दों में ‘विकास की पारदर्शिता’ और ‘जनप्रतिनिधियों की निष्कलुषता’ की गूंज थी। मंच से लगभग एक सुर में सभी नेताओं ने कहा ‘हम सरकारी काम में हस्तक्षेप नहीं करते।’ यदि ऐसा है तो काशी के विकास कार्यों में अधिकारी किसके इशारे पर फाइलें रोकते हैं? वीडीए की हर फाइल ‘फोन पर आदेश’ से हिलती है। नगर निगम का टेंडर, पार्किंग का ठेका या सड़कों की मरम्मत का कार्य बिना नेताजी की सिफारिश के नहीं चलता।

वीडीए विकास नहीं, ‘विधायक दबाव एजेंसी’

वीडीए को आजकल लोग ‘विधायक दबाव एजेंसी’ कहने लगे हैं। क्योंकि यहां योजनाओं का नक्शा वास्तुशास्त्र नहीं, नेताशास्त्र से बनता है। एक कॉलोनाइजर की योजना पास हो या अवैध निर्माण पर कार्रवाई सब में भाजपा नेता की ‘सिफारिश’ जरूरी होती है। यह दावा तब झूठा लगता है जब मंत्री से लेकर पार्षद तक फोन घुमा-घुमाकर अधिकारियों पर दबाव डालते हैं। भाई साहब, देख लीजिए, इनका काम हो जाए।

पुलकित गर्ग भलमनसाहत के शिकार

वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग अपनी सादगी, नियमबद्धता और विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। लेकिन काशी में ऐसे अधिकारियों की हालत ‘भेड़ियों के बीच बकरी’ जैसी हो जाती है। भाजपा के सभी जनप्रतिनिधि उनकी सादगी का लाभ उठाते हैं। कोई नक्शा पास कराने के लिए तो कोई अवैध निर्माण को वैध ठहराने के लिए दबाव बनाता है। पुलकित गर्ग की मजबूरी यह है कि वे सीधे मना भी नहीं कर पाते और नियमों से भी नहीं हटते। नतीजा वे जनप्रतिनिधियों के दबाव में आंख मूंदकर काम करने को मजबूर होते हैं।

अभिषेक गोयल सीधा अफसर, ट्रांसफर की भेंट चढ़ा

जब वीडीए में उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल थे तो भाजपा के नेता भी उनके नाम से खौफ खाते थे। न तो सिफारिश चलती थी, न दबाव। किसी भी अवैध निर्माण पर तत्काल कार्रवाई होती थी और टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता को सर्वोपरि रखा जाता था। लेकिन यही बात भाजपा के जनप्रतिनिधियों को रास नहीं आई। लगातार उनके खिलाफ शासन स्तर पर लॉबिंग की गई और अंततः उनका स्थानांतरण करा दिया गया।

जनप्रतिनिधि या दलाल? विकास की ठेकेदारी पर सवाल

कई भाजपा नेता और पार्षद तो सीधे अपने लोगों के लिए काम रुकवाते हैं, टेंडर में नाम डलवाते हैं या निर्माण में लगी एजेंसी को बदलवाने का प्रयास करते हैं। कई बार तो वीडीए के अफसरों को धमकी भी दी जाती है। अगर काम नहीं हुआ, तो ऊपर बात करेंगे यही कारण है कि अब अधिकारी फाइल पर कार्रवाई से पहले नेताजी को फोन करते हैं।

शासन में चुप्पी, अफसरों की बलि

राज्य सरकार विकास की बात तो करती है लेकिन जब जनप्रतिनिधि ही अफसरों को धमकाते, डराते और निर्देशित करते हैं, तो सिस्टम में पारदर्शिता कैसे आएगी? शासन भी जानता है कि वाराणसी में विकास योजनाएं भाजपा के राजनीतिक हितों की बंधक बन चुकी हैं। यही कारण है कि कोई अफसर यदि नियमानुसार काम करे, तो उसका ट्रांसफर तय है।

राजनीतिक हस्तक्षेप से योजनाएं बंधक

गंगा पाथवे हो या सिगरा पुनर्विकास, हेरिटेज कॉरिडोर हो या रिंग रोड प्रोजेक्ट हर योजना में कोई न कोई नेता अपनी ‘सिफारिशी मुहर’ लगवाना चाहता है। यह हस्तक्षेप सिर्फ योजनाओं की गुणवत्ता ही नहीं, सरकारी धन की बर्बादी भी सुनिश्चित करता है। अफसर अगर बोलें, तो उनके खिलाफ मीडिया में ‘लीक प्लांट’ करवा दिए जाते हैं।

काशी को चाहिए विकास, न कि ‘विकास के दलाल’

काशी को वास्तव में अगर स्मार्ट और सुंदर बनाना है तो सबसे पहले जनप्रतिनिधियों को हस्तक्षेप से रोकना होगा। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि विकास के नाम पर ठेके और सिफारिशें सत्ता की सेवा नहीं, जनता के साथ धोखा हैं। अफसरों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता और सुरक्षा नहीं दी गई, तो काशी कभी विकास के असली स्वरूप को नहीं पा सकेगी। काशी में विकास नहीं, दबाव नीति चल रही है।

ये सब संस्कारी पार्टी के नेता जी लोग है जो आए दिन वीडीए के अधिकारियों को फोन कर के बोलते रहते है कि मेरा कार्यकर्ता है बन जाने दीजिए कही-कही तो माल लेकर भी अवैध निर्माण की पैरवी करते है। कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव तो सबसे अधिक अवैध निर्माण की पैरवी करते है। इनके दबाव में पूर्व जोनल अधिकारी प्रमोद कुमार तिवारी को उच्च न्यायालय तक मे जवाब देना पड़ा गया मामला आगे न बढ़े इसलिये इनको नगवा भेलूपुर वार्ड से हटा दिया गया।

 

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