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मुख्य चिकित्साधिकारी वाराणसी की कलंक कथा: सीएमओ डॉ. सन्दीप चौधरी के छापेमारी के हाल, विधि विरुद्ध अस्पताल संचालको से काट रहे “माल”

~ पंजीकरण के नाम पर जिले में चल रही ‘स्वास्थ्य वसूली योजना’

~ डिप्टी सीएमओ डॉ. पीयूष राय के साथ गढ़ा गया भ्रष्टाचार का नया मॉडल

~ 907 अस्पताल पंजीकृत, बाकी से ली जा रही सुविधा शुल्क

~ परिवहन आयुक्त बी.एन. सिंह की राह पर सीएमओ ने बना डाला वसूली का रेट कार्ड

~ अवैध अस्पतालों की फाइलों में भी नोटों की गंध

~ रिटायरमेंट की दहलीज पर भी जिले का प्रभार संभाले हैं चौधरी

~ पंजीकरण निरीक्षण के नाम पर हो रही मोटी उगाही

~ 52 क्लीनिक बंद, सैकड़ों से वसूली कर दी गई ‘मान्यता’

~ स्वास्थ्य तंत्र में जमीं वसूली की जड़ें, अफसरों का वरदहस्त कायम

 

◆ संजय पटेल

 

वाराणसी। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.संदीप चौधरी ने जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने का दावा तो जरूर किया, लेकिन अंदरखाने जो खेल चल रहा है वह किसी वसूली तंत्र से कम नहीं। जिले में चल रहे हजारों निजी अस्पतालों, नर्सिंग होमों और पैथोलॉजी लैबों की आड़ में पंजीकरण और निरीक्षण का एक ऐसा कारोबार पनप चुका है, जिसे खुद स्वास्थ्य महकमे के अधिकारी ही संरक्षण दे रहे हैं। डॉ. चौधरी और उनके सहयोगी डिप्टी सीएमओ डॉ. पीयूष राय के गठजोड़ ने अब इस वसूली को प्रक्रिया का नाम दे दिया है। जो अस्पताल मानक के अनुरूप नहीं मिले, वे कुछ ही दिनों में नियमित घोषित कर दिए गए। बशर्ते फाइलों के पन्नों के बीच कुछ हरे नोटों का उपचार कर दिया गया।

907 पंजीकृत, 56 पर कार्रवाई का दावा आंकड़ों में गड़बड़झाला

सीएमओ ने बताया कि जिले में अब तक 907 चिकित्सा प्रतिष्ठानों का पंजीकरण और नवीनीकरण पूरा किया जा चुका है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 1016 अस्पतालों का पंजीयन की फाइलें प्राप्त हुई। जिसमें से 907 अस्पतालों का पंजीयन कर दिया गया। 56 अस्पतालों के कागज मानक के अनुरूप नहीं पाए जाने पर कार्रवाई हुई। सूत्रों की मानें तो यह विसंगति दरअसल नवीनीकरण फाइलों में खेली गई गिनती का परिणाम है। पहले अंतरिम अनुमति के नाम पर, फिर नवीनीकरण के नाम पर ताकि रकम की दोहरी वसूली हो सके।

पंजीकरण के नाम पर तय ‘रेट कार्ड’ परिवहन आयुक्त बी.एन. सिंह की तर्ज पर भ्रष्टाचार

डॉ.चौधरी ने प्रशासनिक तंत्र में परिवहन आयुक्त बी.एन. सिंह की तरह वसूली की दरें तय कर रखी हैं। स्थानीय अस्पताल संचालकों की मानें तो छोटे क्लीनिक से 25 से 50 हजार रुपए, मध्यम दर्जे के नर्सिंग होम से 50 से एक लाख रुपए व बड़े मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों से दो से पांच लाख तक की मांग की जाती है। भुगतान न करने वालों की फाइलें लंबित रख दी जाती हैं।

सीएमओ कार्यालय से निरीक्षण टीम का दौरा तभी तय होता है जब फाइल के साथ ‘शुक्रिया राशि’ का उल्लेख हो। यही वजह है कि कई प्रतिष्ठानों ने वर्षों से नवीनीकरण नहीं कराया, फिर भी खुलेआम संचालन कर रहे हैं।

डिप्टी सीएमओ का फलता-फूलता कारोबार

डॉ. पीयूष राय, जो डिप्टी सीएमओ के पद पर हैं, अब इस तंत्र के अघोषित वित्तीय प्रबंधक माने जा रहे हैं। उनके नाम पर कई एजेंट और बिचौलिए खुलेआम काम कर रहे हैं। इन एजेंटों का काम है फाइल जमा कराना, निरीक्षण टीम को मैनेज करना और तय रकम ऊपर तक पहुंचाना। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार डिप्टी सीएमओ के इशारे के बिना कोई भी पंजीकरण मंजूर नहीं होता। निरीक्षण रिपोर्ट में कमियां तभी दिखती हैं जब पैसा नहीं पहुंचता। यह खेल महीनों से जारी है, अचूक संघर्ष में छपी खबरों के बाद डॉ.पीयूष राय से दिखाने के लिए चार्ज वापस ले लिया गया है, लेकिन सीएमओ की मूक स्वीकृति से अभी भी अस्पतालों के पंजीयन का कार्य वो देख रहे हैं। सीएमओ चौधरी खुद सब जानते हुए भी मौन हैं, क्योंकि वसूली की आधी रकम सीएमओ तक जाती है।

अवैध अस्पतालों की फाइलों पर भी चली ‘मालिश’

आश्चर्य की बात यह है कि सीएमओ कार्यालय ने प्रेस को बताया 109 आवेदनों को रिजेक्ट किया गया, जिनमें से 52 पर कार्रवाई पूरी कर दी गई है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। डुमरी, पिंडरा, लंका, शिवपुर, अर्दली बाजार, पांडेयपुर, पहाड़िया क्षेत्रों में ऐसे दर्जनों अवैध अस्पताल और पैथोलॉजी लैब आज भी चल रहे हैं जो उन्हीं के रिजेक्टेड लिस्ट में शामिल हैं। निरीक्षण के नाम पर पहले नोट गिने जाते हैं, फिर रिपोर्ट तैयार होती है। कई जगहों पर मानक उपकरण या प्रशिक्षित नर्स तक नहीं, पर फिर भी बोर्ड पर लिखा होता है राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त।

रिटायरमेंट की दहलीज पर भी जिले का प्रभार

डॉ. चौधरी जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, फिर भी उन्हें जिले का पूरा प्रभार दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के पुराने अफसर बताते हैं कि सेवानिवृत्ति से ठीक पहले
वसूली का यह आखिरी चरण होता है। यानी जितनी जल्दी संभव हो, उतनी अधिक फाइलें निपटा दो और रकम निकाल लो। इसी क्रम में हाल के महीनों में अचानक पंजीकरण नवीनीकरण की फाइलें तेजी से निपटाई गईं। कई अस्पतालों को 24 घंटे में ‘मानक अनुरूप’ घोषित कर दिया गया, बिना किसी वास्तविक निरीक्षण के।

‘स्वास्थ्य निरीक्षण’ बना धंधा, फील्ड अफसरों की मौज

सीएमओ कार्यालय से जुड़े निरीक्षण अधिकारी अब स्वास्थ्य सेवाओं से ज्यादा मुआवजा सेवाओं में व्यस्त हैं।
हर क्षेत्र में दो-दो निरीक्षक तय हैं, जो निरीक्षण यात्रा के नाम पर फील्ड में जाते हैं। लेकिन असल में यह यात्रा केवल ‘वसूली दौरा’ होती है। क्लीनिक संचालक बताते हैं कि निरीक्षण के लिए अधिकारी आते हैं, नोटबुक में कुछ लिखते हैं और जाते समय ‘डॉक्टर साहब का खर्चा’ बोलकर पैसे मांगते हैं। अगर मना किया जाए तो रिपोर्ट में ‘मानक अपूर्ण’ लिख देते हैं। इस तंत्र में नर्सिंग होम एसोसिएशन के कुछ सदस्य भी शामिल हैं, जो फाइल मंजूरी के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं।

वसूली के डर से चुप हैं संचालक, नुकसान भुगत रहे मरीज

जिन अस्पताल संचालकों ने खुलकर विरोध करने की कोशिश की, उनकी फाइलें महीनों तक लंबित रख दी गईं। कई जगहों पर निरीक्षण टीम ने बिना पूर्व सूचना के पहुंचकर सीलिंग की धमकी दी, और अंततः समझौता करवाया। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मरीज हो रहे हैं। जिन्हें घटिया सुविधाओं और महंगी फीस का सामना करना पड़ रहा है। जिन अस्पतालों ने वसूली कर पंजीकरण हासिल किया है, वे अब प्रशासनिक सुरक्षा कवच के तले काम कर रहे हैं। किसी मरीज की शिकायत पर भी कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि ऊपर तक सब ‘सिस्टम सेट’ है।

मानक केवल कागज पर, डिस्प्ले बोर्ड से दिखावा

सीएमओ ने कहा कि हर संस्थान को डिस्प्ले बोर्ड लगाना अनिवार्य है। लेकिन इन बोर्डों का इस्तेमाल ‘वैधता की ढाल’ के रूप में हो रहा है। अंदर के हालात देखकर लगता है कि बोर्ड सिर्फ दिखावा है कहीं रजिस्ट्रेशन नंबर फर्जी हैं, कहीं नर्सिंग स्टाफ अपात्र। कई जगहों पर तो क्लीनिक उसी जगह संचालित हैं जहां कभी किराने की दुकान थी। परंतु जब सीएमओ की फाइल में निरीक्षण पूर्ण लिखा गया है, तो प्रशासन की आंखें बंद हो जाती हैं।

जनता का स्वास्थ्य तंत्र बना लूट का अड्डा

वाराणसी जैसे धार्मिक और पर्यटन केंद्र में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत चिंताजनक है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ और निजी अस्पतालों में लूट, दोनों के बीच आम नागरिक असहाय है। डॉ.चौधरी के नेतृत्व में यह तंत्र जनता के स्वास्थ्य पर चल रही संगठित कमाई का जरिया बन गया है। हर फाइल, हर रिपोर्ट और हर मंजूरी में सुविधा शुल्क की गंध है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग अब ‘जनसेवा नहीं, जन वसूली का विभाग’ बन गया है।

  • सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी और डिप्टी सीएमओ डॉ. पीयूष राय के गठजोड़ से वसूली तंत्र सक्रिय।
  • 907 अस्पतालों के पंजीकरण का दावा, 56 पर कार्रवाई, आंकड़ों में बड़ा झोल।
  • निरीक्षण और नवीनीकरण के नाम पर तय ‘रेट कार्ड’, क्लीनिक से लाखों की वसूली।
  • रिजेक्टेड 109 में से 52 पर कार्रवाई का दावा, लेकिन कई अवैध अस्पताल खुलेआम चालू।
  • रिटायरमेंट से पहले फाइल निपटाने की जल्दबाजी में भारी वसूली।
  • निरीक्षण टीम बनी वसूली टीम, फील्ड दौरे पर ‘डॉक्टर साहब का खर्चा’ तय।
  • मरीजों की सुरक्षा और सेवा दोनों खतरे में, भ्रष्टाचार की जड़ें ऊपर तक फैलीं।
  • स्वास्थ्य विभाग बन चुका है ‘जनसेवा नहीं, जन वसूली’ का नया केंद्र।

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