होती रहे मौतें, सोते रहे हुक्मरान, देखते ही देखते चली गयी नौनिहालों की जान
भारतीय कफ सिरप घोटाला बच्चों की मौत और जिम्मेदारी का अभाव

◆ अनुज कुमार
भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा जेनेरिक दवा निर्यातक होने का दावा करता है, उसी देश की दवाओं ने बच्चों और बुजुर्गों की जान ले ली। 2022 से शुरू हुई यह त्रासदी सिर्फ मेडिकल गलती नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और लालच का ज्वलंत उदाहरण है। जम्मू में 12 बच्चों की मौत के बाद गाम्बिया, उज्बेकिस्तान, इंडोनेशिया, कैमरून और अन्य देशों में भारतीय दवाओं से सैकड़ों मासूमों की मौत हुई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की, लेकिन भारत की केंद्र और राज्य एजेंसियों की जवाबदेही कहीं खो गई। मौत के पीछे केवल कंपनियों की लागत बचाने की होड़ नहीं थी। यह नियामक ढांचे की सड़ांध, टेस्टिंग की कमी और लालची तंत्र की विफलता भी थी। जबकि दुनिया सड़कों पर, अदालतों में और मीडिया में इस घोटाले को देख रही थी, भारत में मौतों की रिपोर्ट धीमे कदमों और आधिकारिक अफसोस तक सिमट गई।
● भारतीय कफ सिरप की भयावह वास्तविकता
● जम्मू से शुरू हुई विषाक्त लहर 12 मासूमों की मौत
● गाम्बिया में हाहाकार 70 बच्चों की मृत्यु और सिस्टमेटिक विफलता
● मौतों की वैश्विक श्रृंखला उज़्बेकिस्तान और इंडोनेशिया
● विश्व स्वास्थ्य संगठन का अलर्ट और भारतीय एजेंसियों की सुस्ती
● कंपनियों की लापरवाही और लालच का खेल
● नियमन की कमजोरी और राज्य-केंद्र तंत्र का दोष
● न्याय, जवाबदेही और वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रश्न
मासूम मौतें, बेफिक्र सरकार! दवा के नाम पर पिलाया जहर, निकम्मी हो चुकी है डबल इंजन की सरकार
इलाज नहीं, जहर पिलाया गया भारतीय कफ सिरप की वास्तविकता
भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग ने दुनिया भर में अपनी जेनेरिक दवाओं के लिए सम्मान अर्जित किया है, लेकिन 2022 से यह गौरव संकट में है। एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल जैसे विषाक्त सॉल्वेंट्स का उपयोग मासूम बच्चों की जान लेने वाला साबित हुआ। सिर्फ 2022-23 में भारत के निर्मित कफ सिरप से 300 से अधिक मौतें हुईं, ज्यादातर 2-5 साल के बच्चों की। इन सिरप की लागत कम करने के लिए सुरक्षित प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल के स्थान पर विषाक्त औद्योगिक रसायन एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल का उपयोग किया गया। मासूमों के लिए यह सिरप इलाज था, लेकिन चिकित्सकों और माता-पिता के भरोसे को चकनाचूर कर दिया गया। एक सुरक्षित दवा के नाम पर जहर पिलाने की यह घटना भारतीय स्वास्थ्य तंत्र की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है।
जम्मू से शुरू हुई विषाक्त लहर
2022 की शुरुआत में जम्मू के रामनगर में 12 बच्चों की मौत ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय सिरप उद्योग केवल आर्थिक लाभ पर केन्द्रित है। डबल्यूएचओ की रिपोर्टों के अनुसार, यह पहला अलर्ट था, जिसने वैश्विक स्तर पर जांच की जरूरत जताई। सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल मिला हुआ था, जो गुर्दे को नुकसान पहुंचाता है। माता-पिता ने दवा डॉक्टर के भरोसे दी, और 48-72 घंटों में बच्चों की किडनी काम करना बंद कर गई।
गाम्बिया में हाहाकार
जुलाई-अक्टूबर 2022 में गाम्बिया में 70 से अधिक बच्चों की मौत हुई। ये बच्चे कफ और सर्दी के सिरप लेने के बाद एक्यूट किडनी इंजरी का शिकार हुए। डबल्यूएचओ ने तत्काल अलर्ट जारी किया, लेकिन कमजोर रेगुलेटरी ढांचे और आयात प्रक्रियाओं की कमजोरी के कारण विषाक्त दवा बाजार में घुसती रही। मृत बच्चों के परिवारों ने स्थानीय सरकार और मेडन फार्मा के खिलाफ 250,000 डॉलर मुआवजे की मांग की। यह एक वैश्विक न्याय संकट बन गया, जहां गरीब देशों की स्वास्थ्य विश्वसनीयता डगमगाई।
मौतों की वैश्विक श्रृंखला
दिसंबर 2022 में उज्बेकिस्तान में 65 बच्चों की मौत डॉक-1 मैक्स और एम्ब्रोनोल सिरप से हुई। जनवरी 2023 में डबल्यूएचओ ने दूसरा अलर्ट जारी किया। इसी क्रम में इंडोनेशिया में 200 से अधिक बच्चों की मौत हुई। इन देशों में भी एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल विषाक्त पाया गया। भारत ने जब तक प्रतिक्रिया दी, तब तक कई देशों में नुकसान हो चुका था। बुजुर्गों पर कम प्रभाव रहा, लेकिन कुछ देशों में वृद्ध नागरिक भी एक्यूट किडनी इंजरी के शिकार हुए।
* भारतीय कफ सिरप घोटाले में 2022-2023 में 300 से ज्यादा मौतें।
* मासूम बच्चों की जान पर लागत बचाने का उद्योग-राजनीति गठजोड़ जिम्मेदार।
* डबल्यूएचओ ने कई अलर्ट जारी किए, भारत की केंद्रीय एजेंसियों की प्रतिक्रिया धीमी।
* वैश्विक स्वास्थ्य संकट में अफ्रीकी देशों में दवा भरोसेमंद नहीं रही।
* भारत के दवा उद्योग में 60 फीसदी छोटी कंपनियां गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस का पालन नहीं करतीं।
डब्लूएचओ अलर्ट और भारतीय एजेंसियों की सुस्ती
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022-23 में लगातार चेतावनी जारी की। 5 अक्टूबर 2022 को पहला मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट जारी हुआ, जिसमें मेडन फार्मास्युटिकल्स और अन्य तीन सिरप को विषाक्त घोषित किया गया। डब्लूएचओ ने स्पष्ट किया कि इन सिरप्स में एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल जैसी औद्योगिक सॉल्वेंट्स मौजूद हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। लेकिन भारत में केंद्र सरकार और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की प्रतिक्रिया हफ्तों तक सुस्त रही। रिपोर्ट केंद्र को भेजी गई, लेकिन कोई तुरंत कार्रवाई नहीं हुई। मेडन का प्लांट अलर्ट के एक हफ्ते बाद सील किया गया। राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर जवाबदेही का अभाव स्पष्ट हुआ। इस सुस्ती की वजह से, विषाक्त सिरप अफ्रीका और एशिया के कई देशों में निर्यात हुआ। गाम्बिया, इंडोनेशिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की जान गई, जबकि भारत में केवल जांच शुरू होने की घोषणाएं हुई।
कंपनियों की लापरवाही और लालच का खेल
मेडन और मरियन जैसी कंपनियों ने सुरक्षित प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल के स्थान पर सस्ता एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल इस्तेमाल किया। यह केवल लागत बचाने की चाल थी। रॉयटर्स और डबल्यूएचओ की जांच से पता चला कि कंपनियों के टेस्टिंग रिकॉर्ड असत्य थे, रिपोर्टों को मनमाने ढंग से तैयार किया गया। कंपनियों का कहना था कि हमारी दवाएं सुरक्षित हैं, लेकिन डबल्यूएचओ और स्वतंत्र लैब रिपोर्ट ने इन दावों की पोल खोल दी। भारत का फार्मा उद्योग 42 लाख बिलियन का है, लेकिन छोटी कंपनियां जो 60 फीसदी निर्यात करती हैं गुड
मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस का पालन नहीं करतीं। इस लालच ने बच्चों के जीवन को व्यापार का मोहरा बना दिया। मासूमों की मौतें सिर्फ दवा की वजह से नहीं, नैतिक विफलता, लालच और जवाबदेही की कमी का परिणाम थीं। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर भारत की दवा उद्योग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे।
नियमन की कमजोरी और राज्य-केंद्र तंत्र का दोष
भारत में दवा नियमन राज्य-केंद्र केंद्रित है, जो भ्रष्टाचार और सुस्ती को बढ़ावा देता है। राज्य स्तर पर अधिकारी सैंपल बदल देते हैं, रिश्वत लेते हैं और केंद्र की एजेंसियां देरी करती हैं। डबल्यूएचओ की प्रीक्वालिफिकेशन प्रोग्राम केवल कुछ दवाओं को कवर करता है, जिससे गरीब देशों में आयातित दवाओं की सुरक्षा कम रही। अफ्रीका में 20 फीसदी दवाएं भारत से आती हैं, लेकिन निगरानी कम होने से विषाक्त दवाएं बाजार में पहुंच जाती हैं। वर्ष 2023 में क्यूआर कोड अनिवार्य किया गया, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अपर्याप्त है। जांच, लाइसेंसिंग और निर्यात निगरानी की कमजोरियां बच्चों की मौत की मुख्य वजह हैं।
* न्याय, जवाबदेही और वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रश्न
* कफ सिरप घोटाले ने बच्चों की जान ले ली, परिवारों को तोड़ा व स्वास्थ्य तंत्र को शर्मसार किया।
* भारत में देरी और सुस्ती केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर कार्रवाई धीमी।
* कंपनियों की लापरवाही लागत बचाने के लिए घातक औद्योगिक रसायन।
* नियमन का दोष राज्य-केंद्र तंत्र में भ्रष्टाचार और निगरानी की कमी।
* वैश्विक प्रभाव गाम्बिया, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, कैमरून में मौतें, स्वास्थ्य विश्वास डगमगाया।
* डबल्यूएचओ ने 2022-23 में छह अलर्ट जारी किए और 15 भारतीय कंपनियों को चिन्हित किया।
* भारत की केंद्रीय और राज्य एजेंसियों की सुस्ती से वैश्विक मौतें।
* नियमन और निगरानी की कमजोरी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण से मासूमों की जान जोखिम में रही।
* वैश्विक स्वास्थ्य संकट में गरीब देशों की दवा सुरक्षा कमजोर हुई।




